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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 26 अक्टूबर 2013

श्याम स्मृति--चिकित्सक-रोगी संबंध-- डा श्याम गुप्त ....


                              ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


                     श्याम स्मृति--चिकित्सक-रोगी संबंध--
                           वैज्ञानिक,सामाजिक, साहित्यिक,मनोवैज्ञानिक,प्रशासनिक चिकित्सा आदि समाज के लगभग सभी मन्चों सरोकारों से विचार मन्थित यह विषय उतना ही प्राचीन है जितनी मानव सभ्यता। आज के आपाधापी के युग में मानव -मूल्यों की महान क्षति हुई है; भौतिकता की अन्धी दौढ से चिकित्सा -जगत भी अछूता नहीं रहा है। अतः यह विषय समाज चिकित्सा जगत के लिये और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। आज जहां चिकित्सक वर्ग में व्यबसायीकरण समाज़ के अति-आर्थिकीकरण के कारण तमाम भ्रष्टाचरण कदाचरणों का दौर प्रारम्भ हुआ है वहीं समाज़ में भी मानव-मूल्यों के ह्रास के कारण, सर्वदा सम्मानित वर्गों के प्रति,ईर्ष्या,असम्मान,लापरवाही पैसे के बल पर खरीद लेने की प्रव्रत्ति बढी है, जो समाज, मनुष्य,रोगी चिकित्सक के मधुर सम्बंधों में विष की भांति पैठ कर गई है। विभिन्न क्षेत्रों में चिकित्सकों की लापरवाही, धन पद लिप्सा , चिकित्सा का अधिक व्यवसायीकरण की घटनायें यत्र-तत्र समाचार बनतीं रहती हैं। वहीं चिकित्सकों के प्रति असम्मानजनक भाव,झूठे कदाचरण आरोप,मुकदमे आदि के समाचार भी कम नहीं हैं।
                     अतःजहां चिकित्सक-रोगी सम्बन्धों की व्याख्या समाज़ चिकित्सक जगत के पारस्परिक तादाम्य, प्रत्येक युग की आवश्यकता है,साथ ही निरोगी जीवन स्वस्थ्य समाज की भी। आज आवश्यकता इस बात की है कि चिकित्सक-जगत, समाज रोगी सम्बन्धों की पुनर्व्याख्या की जाय ,इसमें तादाम्य बैठाकर इस पावन परम्परा को पुनर्जीवन दिया जाय ताकि समाज को गति के साथ-साथ द्रढता मधुरता मिले। संस्कृति   समाज़ में काल के प्रभावानुसार उत्पन्न जडता , गतिहीनता दिशाहीनता को मिटाने के लिये समय-समय पर इतिहास के काल-प्रमाणित महान विचारों ,संरक्षित कलापों को वर्तमान से तादाम्य की आवश्यकता होतीहै। इतिहास, पुराणों, शास्त्रों का यही महत्त्व है |
                 यदि आज का  चिकित्सा जगत, रोगी, तीमारदार, समाज, शासन  सभी इन तथ्यों को आत्मसात करें, व्यवहार में लायें, तो आज के दुष्कर युग में भी आपसी मधुरता युक्त-युक्त रोगी-चिकित्सक सम्बन्धों को जिया जासकता है, यह कोई कठिन कार्य नहीं,  आवश्यकता है सभी को आत्म-मंथन करके तादाम्य स्थापित करने की।


 

4 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

भरोसे की पराकाष्ठा है यह संबंध..सुन्दर विचार..

shyam gupta ने कहा…

भरोसे पर ही तो कायनात स्थिर है ....

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

उम्दा...बहुत बहुत बधाई...

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद प्रसन्न जी.....