....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
यदि तुम आजाते जीवन में,
निश्वासों में बस कर मन में |
कितने सौरभ कण से हे प्रिय!
बिखरा जाते इस जीवन में |
गाते रहते मधुरिम पल-छिन,
तेरे ही गीतों का विहान |
जाने कितने वे इन्द्रधनुष,
खिल उठते नभ में बन वितान |
खिल उठतीं कलियाँ उपवन में|
यदि तुम आजाते जीवन में ||
महका महका आता सावन,
लहरा लहरा गाता सावन |
तन मन पींगें भरता नभ में,
नयनों मद भर लाता सावन |
जाने कितने वर्षा-वसंत,
आते जाते पुष्पित होकर |
पुलकित होजाता जीवन का,
कोना कोना सुरभित होकर |
उल्लास समाता कण कण में,
यदि तुम आजाते जीवन में ||
संसृति भर के सन्दर्भ सभी,
प्राणों की भाषा बन् जाते |
जाने कितने नव-समीकरण,
जीवन की परिभाषा गाते |
पथ में जाने कितने दीपक,
जल उठते बनकर दीप-राग |
5 टिप्पणियां:
बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति....
:-)
बहुत ही बेहतरीन अभिव्यक्ति....
:-)
धन्यवाद रीनाजी एवं रविकर .....
आदरणीय श्री श्याम सर , वास्तविकता में शानदार शब्दों से अलंकृत आपकी ये सुन्दर रचना , धन्यवाद
सूत्र आपके लिए अगर समय मिले तो --: श्री राम तेरे कितने रूप , लेकिन ?
* जै श्री हरि: *
धनवाद आशीश...
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