....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
उपरोक्त चित्रों में देखिये .....क्या इनमें कोई भी सेलेब्रिटी है ??? अधिकांश युवा -पीढी के वे लोग हैं जो फिल्म, या उल-जुलूल ड्रामा, कला, फैशन, संगीत वाले हैं...जिनके लिए वस्त्र-पहनने व वस्त्रहीन होने में कोई अंतर नहीं...... या फिर तथाकथित एक्टिविस्ट हैं;....जिन्होंने अभी जीवन का अर्थ भी नहीं जाना है, वास्तविक ज्ञान से जिनका कोइ लेना-देना नहीं है ...जो इंडिया में रहते हैं भारत में नहीं ....इंडिया में भी बस रहते हैं पर अमेरिका, योरोप से ज्ञान व सीख लेते हैं | जिनके लिए अमेरिकन व विदेशी ही ज्ञानी एवं आदर्श हैं| विदेशी नियम, व्यवहार यहाँ तक कोर्ट -क़ानून भी उनके लिए मिशाल की भाँति हैं| इनके लिए भारतीय सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी 'बारबेरिक' है( यह शब्द भी विदेशी है भारतीय शब्द कोश में कहीं नहीं है ) वे खाते भारत का हैं और गुण इंडिया के या विदेशों के गाते हैं...अथवा अधिकांश विदेशी हैं जिनके लिए नंगे होना, रहना कोई द्विधा की बात नहीं है | कहाँ है बड़े-बड़े.....न्यायविद ..साहित्यकार...गुरु...ज्ञानी...पंडित...राजनैतिज्ञ ..वैज्ञानिक...शास्त्रकार...दार्शनिक.....चिकित्सक ..विचारक ..आदि .....
एसे लोग ... 'आज गे कल न्यूड '...के लिए चिल्लाने लगें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी | वे मनुस्मृति की बात करेंगे जैसे मनु कोई अवांछनीय व्यक्ति या संस्था हो| ये लोग खजुराहो, शिखंडी, युवनाश्व, विष्णु व कृष्ण का मोहिनी रूप, महादेव का रास-लीला हेतु बनाया गया स्त्रीवेष, कृष्ण का नारी रूप आदि-आदि का उदाहरण खोजने व देने लगेंगे ... ....चाहे वे इन शास्त्र-पुराणों को वास्तव में कपोल-कल्पित ही मानते होंगे | ..... वे भूल जाते हैं कि इन सबमें गे-सेक्स की कोइ बात नहीं है ..न गे-विवाह की ....अपितु सभी में रूप बदलने के तथ्य हैं | अथवा अत्यंत उच्च दार्शनिक बातें हैं | खजुराहो के भी सभी मूर्ति-कृत्य क्या व्यवहारिक जीवन में अपनाए जाते हैं ? अथवा क्या हम पुनः प्राचीन-युग में जाना चाहते हैं ?
लोग भूल जाते हैं कि ---
१.इस कृत्य को कानूनी जामा पहनाने का अर्थ होगा कि हम अपने सेना, स्कूल, कालिज, केम्पों आदि संस्थाओं में जहां समान-लिंग के अथवा सभी व्यक्ति, बच्चे, युवा आदि समूह में रहते हैं उनमें अनुचित व गलत समाचार जाएगा और वे दुष्कृत्यों हेतु स्वतंत्र होंगे |( चुपचाप तो आज भी सबकुछ होता है परन्तु उस गलत अप्राकृतिक तथ्य को सही करार देने की क्या आवश्यकता है| खुले में करने की क्या आवश्यकता है )
२.क्या यह महिलाओं व पुरुषों के लिए बेईज्ज़ती की बात नहीं है | महिला द्वारा महिला से सेक्स... महिला द्वारा पुरुष का, पौरुष का अनादर है इसी प्रकार पुरुष द्वारा स्त्रीत्व व स्त्री का भी अनादर है |
३.स्वयं प्रेम व सेक्स का तो यह अनादर है ही...प्रकृति का भी अनादर है अन्यथा प्रकृति क्यों स्त्री-पुरुष अलग अलग सृजित करती |
४. यह दुष्कृत्य मानवता व मानव-विकास का भी अनादर है ...... जीव जगत में कहीं भी समान लिंग में सेक्स नहीं देखा जाता ..... एक लिंगी जीव अलिंगी-फ़रटिलाइज़शन करते हैं या अन्य लिंगी से ....अथवा वे जीव स्वयं द्विलिंगी( यथा केंचुआ आदि ) होते हैं जो आपस में निषेचन करते हैं|
उपरोक्त चित्रों में देखिये .....क्या इनमें कोई भी सेलेब्रिटी है ??? अधिकांश युवा -पीढी के वे लोग हैं जो फिल्म, या उल-जुलूल ड्रामा, कला, फैशन, संगीत वाले हैं...जिनके लिए वस्त्र-पहनने व वस्त्रहीन होने में कोई अंतर नहीं...... या फिर तथाकथित एक्टिविस्ट हैं;....जिन्होंने अभी जीवन का अर्थ भी नहीं जाना है, वास्तविक ज्ञान से जिनका कोइ लेना-देना नहीं है ...जो इंडिया में रहते हैं भारत में नहीं ....इंडिया में भी बस रहते हैं पर अमेरिका, योरोप से ज्ञान व सीख लेते हैं | जिनके लिए अमेरिकन व विदेशी ही ज्ञानी एवं आदर्श हैं| विदेशी नियम, व्यवहार यहाँ तक कोर्ट -क़ानून भी उनके लिए मिशाल की भाँति हैं| इनके लिए भारतीय सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी 'बारबेरिक' है( यह शब्द भी विदेशी है भारतीय शब्द कोश में कहीं नहीं है ) वे खाते भारत का हैं और गुण इंडिया के या विदेशों के गाते हैं...अथवा अधिकांश विदेशी हैं जिनके लिए नंगे होना, रहना कोई द्विधा की बात नहीं है | कहाँ है बड़े-बड़े.....न्यायविद ..साहित्यकार...गुरु...ज्ञानी...पंडित...राजनैतिज्ञ ..वैज्ञानिक...शास्त्रकार...दार्शनिक.....चिकित्सक ..विचारक ..आदि .....
IS THIS LOVE ..OR HUMAN..OR RIGHT ?????? |
लोग भूल जाते हैं कि ---
१.इस कृत्य को कानूनी जामा पहनाने का अर्थ होगा कि हम अपने सेना, स्कूल, कालिज, केम्पों आदि संस्थाओं में जहां समान-लिंग के अथवा सभी व्यक्ति, बच्चे, युवा आदि समूह में रहते हैं उनमें अनुचित व गलत समाचार जाएगा और वे दुष्कृत्यों हेतु स्वतंत्र होंगे |( चुपचाप तो आज भी सबकुछ होता है परन्तु उस गलत अप्राकृतिक तथ्य को सही करार देने की क्या आवश्यकता है| खुले में करने की क्या आवश्यकता है )
२.क्या यह महिलाओं व पुरुषों के लिए बेईज्ज़ती की बात नहीं है | महिला द्वारा महिला से सेक्स... महिला द्वारा पुरुष का, पौरुष का अनादर है इसी प्रकार पुरुष द्वारा स्त्रीत्व व स्त्री का भी अनादर है |
३.स्वयं प्रेम व सेक्स का तो यह अनादर है ही...प्रकृति का भी अनादर है अन्यथा प्रकृति क्यों स्त्री-पुरुष अलग अलग सृजित करती |
४. यह दुष्कृत्य मानवता व मानव-विकास का भी अनादर है ...... जीव जगत में कहीं भी समान लिंग में सेक्स नहीं देखा जाता ..... एक लिंगी जीव अलिंगी-फ़रटिलाइज़शन करते हैं या अन्य लिंगी से ....अथवा वे जीव स्वयं द्विलिंगी( यथा केंचुआ आदि ) होते हैं जो आपस में निषेचन करते हैं|
8 टिप्पणियां:
केंचुल कामी का चुवे, धरे केंचुवा यौनि |
द्विलिंगी गुट *गेगले, गन्दी करते औनि |
गन्दी करते औनि, बनाये तन मन रोगी |
पशुचर्या पशु-काम, हुवे हैं पशुवत भोगी |
सरेआम व्यवहार, गेंगटे रविकर गेंदुल |
दन्त उरोज द्वि-पंख, गेगले छोड़ें केंचुल ||
गेगले=*मूर्ख
गेंदुल=चमगादड़
गेंगटे=केकड़े
वाह वाह क्या कुण्डली मारी है फैंक कर ...क्या बात है ..श्रीमान आचार्य कुन्डली-कर जी ...सुन्दर ....
कुक्कुर के पीछे लगा, कुक्कुर कहाँ दिखाय |
कुतिया भी देखी नहीं, कुतिया के मन भाय |
कुतिया के मन भाय, नहीं पाठा को देखा |
पढ़ते उलटा पाठ, बदल कुदरत का लेखा |
पशु से ही कुछ सीख, पाय के विद्या वक्कुर |
गुप्त कर्म रख गुप्त, अन्यथा सीखें कुक्कुर ||
हा...हा....हा....क्या बात है रविकर------
'रविकर की क्या बात,कहे जो तनकर रविकर,
एक सुहानी उक्ति, वही रह जाए बनकर|
रवि भी पहुंचे नहीं, जहाँ पर कवि रवि पहुंचे-
कुछ तो बुद्धि दिखाय, मनुज कुक्कुर से सीखे |
समाज हेतुक समस्त सवाल आपने इस पोस्ट में उठाये हैं। लगता है देश आत्मघातियों के "हाथ "में आगया है धन्य है संकर -गांधियों की पीढ़ी। व्यंग्य चित्र खुद सब कुछ बयान करते हैं।
चुनावों में बुरी तरह पिटी कांग्रेस को एक मुद्दा तो मिला। चुनावों का मूल आधार तो वोट है और वोटों पर इस समय दबदबा नौजवानों का है। तो ऐसे में नौजवानों का वोट हासिल करने के लिए यदि समलैंगिकों को समर्थन दिया जाता है तो कांग्रेस के लिए यह घाटे का सौदा नहीं है और खासकर तब जब टाइम्स आफ इंडिया जैसे प्रतिष्ठित अखबार के सम्पादक -मंडल का कोई व्यक्ति ऐसा परामर्श और प्रेरणा दे रहा हो। उनका सुझाव बहुत बढ़िया है। सोना तो सोना है ,चाहे कीचड़ या मल में क्यों न पड़ा हो उसे उठा ही लेना चाहिए। हर समझदार आदमी यही करता है। कांग्रेस में कोई समझदारों की कमी नहीं है।
सचमुच की समझ होना और राजनीतिक दृष्टि से समझ होना ये दो अलग बातें हैं। लोग तो सार्वजनिक जीवन में कपड़े पहन कर आते हैं पर टाइम्स आफ इंडिया के सम्पादक ने तो सारे कपड़े उतार दिए हैं । हो सकता है कि उन्होंने अपने सम्पादकीय में कहीं व्यंग्य छिपा रखा हो पर उन्हें ये नहीं पता है कि कांग्रेसी तो शुरू से ही नंगे हैं। खद्दर भी कोई कपड़ा होता है क्या?आदमी नंगा होने पर आ जाए तो खद्दर तो क्या पूरा कंबल भी नंगेपन को ढ़क नहीं सकता। टाइम्स आफ इंडिआ के सम्पादक को यह नहीं पता है कि यदि वह अपना सुझाव न भी देता तो भी कांग्रेस के नंगनाथ क्या चुप बैठ रहते। अभी तो चार ही सामने आये हैं। एक एक करके सभी चालीस चोर सामने आयेंगें। समलैंगिक होना कोई अपराध थोड़ी न है.वोट मिलेंगे तो चोरी और डकैती को भी अपराधों से बाहर किया जा सकता है। शरीर अपना है जो कुछ चाहे करें। उम्मीद तो यह भी है कि कांग्रेसी केवल सिद्धांत तक सीमित नहीं रहेंगे। खुद भी प्रक्टिकल करेंगे। आगे बढ़कर निदर्शन करेंगे।
विज्ञान तो ऐसे किसी सिद्धांत को नहीं मानता जो प्रयोग में खरा न उतरता हो फिर समलिंगी घर्षण के तो कई क्षेत्र हैं। अनेकों प्रयोग हो सकते हैं। फिर कांग्रेस में विचारकों और विज्ञानियों की कोई कमी है क्या जो टाइम्स आफ इंडिया का सम्पादक श्रेय लेना चाहता है।लोगों को विश्वास है कि कांग्रेसी नाहक में उस सम्पादक को श्रेय नहीं दे सकते।
न बन्धन की उबकायी,
न उन्मुक्त छिछोरापन,
कहीं व्यक्ति पुलकित होता यदि,
मध्य व्यवस्थित पाकर मन।
धन्यवाद वीरेन्द्र जी....इतने लंबे सार्थक कमेन्ट के लिए ...
मध्य व्यवस्थित पाकर मन।..
---.मध्यम मार्ग ...क्या बात है पांडे जी...सचमुच ...
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