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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

श्याम स्मृति ....सकारात्मक सोच व तथ्यों के गुण और दोष ......डा श्याम गुप्त .

                            ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


            प्रायः यह कहा जाता है कि वस्तु, व्यक्ति व तथ्य के गुणों को देखना चाहिए, अवगुणों पर ध्यान नहीं देना चाहिए  |  इसे पोजिटिव थिंकिंग( सकारात्मक सोच ) भी कहा जाता है |
          वस्तुतः प्रत्येक तथ्य को प्रथमत: नकारात्मक पहलू से जानना चाहिए | तथाकथित सिर्फ सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति वास्तव में जीवन के बुरे आयामों से डरते हैं अतः वे नकारात्मक तथ्य को सोचना- जानना ही नहीं  चाहते | वस्तुओं के व तथ्यों के सकारात्मक पक्ष सदैव ही खुले रूप में  होते हैं एवं वे शीघ्र ध्यानाकर्षक भी होते हैं विशेषतः इस  विज्ञापनों की आकर्षक व भ्रामक दुनिया में |
               क्योंकि यह मानव-मन जो है वह वायु तत्व से निर्मित है और स्वभावतः अत्यंत ही द्रवित-भाव तत्व है , शीघ्र ही सबसे आसान राहों पर दौड़ पड़ता है | अतः सिर्फ सकारात्मक पक्ष ही देखने से त्रुटियों की  अधिक संभावनाएं होती हैं| अतः तथ्यों के नकारात्मक पक्षों को पहले देखना आवश्यक व महत्वपूर्ण  है| जीवन व्यवहार के उदाहरण स्वरुप यह देखें कि जब कभी भी हम अपना कम्प्युटर पर किसी फ़ाइल को क्लिक करते हैं तो बहुधा सुरक्षित या असुरक्षित एवं अनचाहे करप्ट सन्देश का एक सावधानी का सन्देश मिलता है | सावधानी अर्थात नकारात्मक पहलू पर गौर ...अतः निश्चय ही सकारात्मक सोच वाले विचारकों  का 'पानी से आधा भरा गिलास'  बहु-प्रचारित  वाला मुहावरे   के विपरीत किसी  भी तथ्य को स्वीकार करने से पहले  सभी  को यह सोचना चाहिए कि गिलास आधा खाली क्यों है ?           
                 अतः  मेरे विचार में गुणों को देखकर, सुनकर, जानकर ..उन पर मुग्ध होने से पहले  उसके दोषों पर पूर्ण रूप से दृष्टि डालना अत्यावश्यक है कि वह कहीं 'सुवर्ण से भरा हुआ कलश' तो नहीं है | यही तथ्य सकारात्मक सोच --नकारात्मक सोच के लिए सत्य है | सोच सकारात्मक नहीं गुणात्मक होनी चाहिए, अर्थात नकारात्मकता से अभिरंजित सकारात्मक | क्योंकि .......".सुबरन कलश सुरा भरा साधू निंदा सोय |"


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2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

दोनों को ही समुचित ध्यान देना चाहिये, अन्यथा धोखा खाने की संभावना बनी रहती है।

shyam gupta ने कहा…

सही कहा ..धन्यवाद पांडे जी...