....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
हम्पी बादामी यात्रा
वृत्त-१०...ऐहोल ....
ऐहोल, पत्तदकल के
पूर्व में लगभग १६ किमी दूर बागलकोट जिला के हुंगुंड में मलयप्रभा नदी के किनारे एक प्राचीन गाँव है जो
अपने विश्व-प्रसिद्द मंदिरों के समूह हेतु जाना जाता है | इसे विश्व धरोहर
स्थलों में सम्मिलित किया गया है | मलयप्रभा नदी घाटी अपने प्राक-एतिहासिक
पुरातत्व उत्खनन स्थलों के लिए प्रसिद्द है | मलयप्रभा नदी पार करके लगभग १.३० बजे
हम ऐहोल पहुँच गए |
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मार्ग में अराध्य का गीत |
ऐहोल कर्नाटक के इतिहास में
एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है| यह चालुक्यों की प्रथम राजधानी एवं शिल्प व कला का
मुख्य क्षेत्र रहा है| ऐहोल एक संस्थान था जहां भवनों व मंदिरों की अभियांत्रिकी में ‘संरचनागत
मैकेनिक्स’ का विकास हुआ था। यह शहर मंदिरों के प्रयोग का पहला केंद्र माना जाता रहा है। अतः यह हिन्दू
व भारतीय शिल्पकला का पालना भी कहा जाता है| अपने विविध प्रकार के मंदिर-शिल्प
के कारण यह शिल्पकला की प्रयोगशाला भी कहा जाता है| यही वो जगह है
जहां प्राचीन अग्रहारम व्यवस्था से भिन्न नगरीय विकास के स्वरुप ( जो
आधुनिक स्वरुप के समनुसार है) मंदिर को मध्य में रखकर उसके चारों ओर शहर को विकसित
करने की कोशिश की गई। शायद तमाम भारतीय शैलियों के मिश्रण के कारण ही इसे वास्तु की जन्मस्थली कहा जाता है। पर
इसे वास्तु की धर्मस्थली कहना बेहतर होगा क्योंकि यहां इतनी सारी शैलियों का संगम ही नहीं हुआ बल्कि उनके संयोग से वास्तु की नई सोच की शुरुआत
भी हुई। कि इमारतें ऊंची और चौड़ी होने के बजाय लंबी हैं। दीवारों
के बजाय छत पर मूर्तिकारी की
प्रधानता और बड़ी मूर्तियों की कमी साफ दिखाई देती है। अब ये प्राचीन इमारतें खंडहरों में बदल चुकी हैं, फिर भी इनके भग्नावशेष देखकर निर्माता की विराट
कल्पना का पता लगता है।
दक्षिण भारत के पठारी इलाके में ऊंचे टीलों और उथली घाटियों में बने इन खंडहरों के बीच उभर आए गांव अतीत के वैभव को
वर्तमान की जीवंतता प्रदान करते हैं। आज भी यहां मंदिरों, प्रसादों और घरों के सुरक्षित साक्ष्य मौजूद हैं।
इसे अय्यावोले, आर्यवोल, , आर्यपुरा, भी कहा जाता है| अय्या या
आर्य का अर्थ ब्राह्मण व विद्वान् अर्थात ब्राहमणों-पंडितों का निवास स्थान,
ब्राह्मणों का क्षेत्र |
प्रसिद्ध वैदिक ब्राह्मण विद्वान् वसिष्ठ आपव एवं उनकी पत्नी अरुंधती का यह प्राचीन अग्रहारम था| अतः यह अरुंधती
क्षेत्र भी है| जो यहाँ के शासक कार्तवीर्य अर्जुन ( सहस्रवाहु) के समकालीन थे | इसे अहिहोल या अहिच्छत्र भी कहते हैं जो शायद आर्यों
से पहले नाग-वंश की प्रधानता के कारण रखा गया होगा |
चालुक्यों के समय
में भी ऐहोल एक अग्रहार ( विद्या का केंद्र) एवं चतुर्वेदी विद्वानों का
ग्राम था| कवि मग्गे-मायिदेव के ग्रन्थ ‘एपुरेश्वर शतक’ के
अनुसार इसे एपुरी भी कहा जाता था एवं संत अडवश्वर ने यहाँ तप किया
था| यह लगभग १२५ छोटे बड़े मंदिरों का समूह है जो सारे ग्राम में फैले हुए हैं|
यहाँ से चालुक्य नरेश पुल्केशिन द्धितीय का 634
ई के प्रसिद्द ऐहोल-अभिलेख में भारतीय
इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएं वर्णित हैं उदाहरणार्थ----यह बताया गया है कि भारत
युद्ध को हुए ३, ७३५ वर्ष बीत गए है, इस दृष्टिकोण से महाभारत
का युद्ध ३१०० ईसा पूर्व लड़ा गया होगा। यह प्रशस्ति के रूप में है और संस्कृत काव्य परम्परा
में लिखा गया है। इसका रचयिता जैन कवि रविकीर्ति था। है। सम्पूर्ण उत्तर-मध्य व पश्चिम भारत के प्रसिद्द अंतिम
गुप्त वंशी सम्राट हर्ष को बादामी के चालुक्यवंशी शासक पुलकेशिन द्वितीय से पराजित
होना पड़ा। (ऐहोल प्रशस्ति (634
ई.) में इसका उल्लेख मिलता
है।) जो भारतीय भूभाग के इतिहास व संस्कृति-सभ्यता का एक अत्यंत प्रभावी व
निर्णायक मोड़ सिद्ध हुआ | इस युद्ध से पश्च-महाभारत युग के भारतवर्ष के विखंडन का
प्रारम्भ हुआ तथा उत्तर-पश्चिम से विदेशी शक्तियों के इस भूमि पर आक्रमण व अधिकार
का क्रम |
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रावण फड़ी-भगीरथ का तप
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रावण फड़ी- रौक कट गुफा मंदिर |
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मातृकाएं |
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मातृकाएं |
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नटराज -साथ में नृत्यरत गणेश, नंदी, सप्तमातृकाएं |
प्राक-एतिहासिक तथ्य
--- मेगुटी पहाडी पर मोरेरा अंगाडिंगालू
नामक स्थान पर पुरा-काल के तमाम मानव गुफा-स्थल
एवं शव-स्थल पाए गए हैं| ऐहोल एक
अग्रहारम था, मानव-सभ्यता की सबसे
प्राचीन कालोनी–व्यवस्था ‘अग्रहारम’ है, जिसमें एक स्थान के दोनों ओर
पंक्तियों में निवास स्थान होते हैं एवं एक सिरे पर एक देवस्थान |
पौराणिक कथा के अनुसार --इस भयंकर अरण्य प्रदेश में कार्तवीर्य
अर्जुन ( सहस्रवाहु) का साम्राज्य था | जिसने कामधेनु गाय प्राप्ति हेतु परशुराम
के पिता जमदग्नि का वध कर दिया था| ऐहोल यह वह स्थान है जहाँ भगवान् परशुराम
ने २१ बार क्षत्रियों का विनाश करके अपना मुख्य अस्त्र फरसा या कुल्हाड़ी (परशु) मालप्रभा
नदी में धोया था| जिससे नदी का जल लाल होजाने पर स्थानीय स्त्रियाँ ‘एहोले
..एहोले ..यह क्या है...कहती हुई भयभीत होगई थीं अतः इसका नाम ऐहोल हुआ|
परशुराम
ने यहाँ घने वन या गुफाओं एवं भूमिगत होकर नाग की भाँति गुप्त निवास-स्थान
...बिल.. बनाकर स्वयं को संगठित करके गुरिल्ला-युद्ध द्वारा २१ बार क्षत्रिय
शासकों का विनाश किया था अतः इसलिए भी इसे अहि-होले ..नाग की
बाम्बी या बिल कहा गया होगा जो बाद में ऐहोल होगया| यह सम्पूर्ण क्षेत्र नागों की शिला-मूर्तियों व स्थानीय ग्राम-देवता -नाग मंदिरों से संपन्न है | ऐहोल के संग्रहालय में तमाम नागराज, नाग-मानव एवं नाग-नागिन के युगल दृश्यों के शिला शिल्प देखने को मिलते हैं| अत: यह पुराकाल में नागजाति का क्षेत्र रहा होगा |
यह परशुराम-क्षेत्र
व परशुराम की मां रेणुका का क्षेत्र
भी है जहां जमदग्नि व रेणुका बेलगाँव जिला के सवाद्त्ती क्षेत्र में मालप्रभा (
मलयप्रभा ) नदी के किनारे रहते थे| रेणुका यहाँ के राजा रेणुकराज की
पुत्री थी, बालू के कच्चे घड़े को अपने हाथों से बनाकर पति जमदग्नि
मुनि के लिए जल लाने के कारण वह रेणुका नाम हुई, अब तक सभी नदी-सर आदि स्वयं
दैनिक क्रिया हेतु जाया करते थे, जल-संचयन की कोइ प्रक्रिया या नियम विकसित नहीं
था, रेणुका द्वारा प्रथम बार यह प्रक्रिया प्रारम्भ करने के कारण उसे
देवी का अवतार एवं महान पतिव्रता कहा गया | | ( शायद मिट्टी के
कच्चे घड़े, वर्तन आदि भी, बनाने व प्रयोग की
तकनीक यहीं प्रारम्भ हुई तथा अभी मिट्टी के वर्तनों को पकाने की तकनीक नहीं
थी )...|
रेणुका यज्ञ से उत्पन्न हुई थी अतः तेजस्वी महिला थी,
उसे काली का अवतार भी कहते हैं जिसका अर्थ अहं की मृत्यु की देवी है| दक्षिण भारत
की प्रसिद्ध देवी येल्लम्मा भी रेणुका ही है| जिसे ब्रह्माण्ड की माता –जगदम्बा कहा जाता है एवं महाराष्ट्र में एकवीरा | देवी येल्लम्मा के अन्य नाम ....जोगम्मा,, सोमालम्मा,
गुन्डम्मा, पोचम्मा, मायसम्मा, होलीयम्मा, रेनुकामाता, मरियम्मा, एलियाम्मा भी हैं
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रेणुका के पांच पुत्र वासु, विश्वावशु,
ब्रिहद्यानु, ब्रुतवकन्व एवं रामभद्र | सबसे छोटे रामभद्र - शिव-पार्वती के
महान भक्त होकर परशुराम कहलाये | जो विष्णु के छटवें अवतार
कहे गए|
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मेगुटी म. ऐहोले |
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मल्लिकार्जुन मंदिर -ऐहोल |
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बौद्ध देवालय -ऐहोल |
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कुन्ती देवालय -ऐहोल |
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चक्र देवालय -द्वार पर गरुड़ |
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कुटीर मंदिर-ऐहोल |
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बदिगेर म. |
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लाड
खान म..ऐहोल |
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दुर्गा मंदिर- ऐहोल |
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महिषासुर मर्दिनी -दुर्गा म. |
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छत पर उत्कीर्णित शेषनाग -ऐहोल |
ऐहोल
में ....रावण पहाडी का सबसे प्राचीन रौक-कट मंदिर, दुर्गा मंदिर,
लाडखान मंदिर, हुच्चिमल्ली मंदिर समूह, अम्बिगेरा,म., मल्लिकार्जुन
म., एनियार मंदिर समूह, मेगुटी बुद्धिस्ट मंदर, विरूपाक्ष या
गौरी मंदिर, जैन मंदिर समूह, त्र्यम्बकेश्वर मंदिर, गलगनाथ म.,
रामलिंगेश्वर म.,कुन्ती मंदिर, अम्बिगेरा गुडी, अम्बिगे गुडी, चिक्की व राची आदि
विभिन्न शैली व बनावट के लगभग १२५ छोटे-बड़े मंदिर २२ समूहों में बंटे हैं जिनमें
विभिन्न धार्मिक व पौराणिक एवं श्रंगारिक शिल्पकारियाँ छतों, खम्भों, दीवारों एवं
शिखरों पर उत्कीर्णित हैं|
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हचीमल्ली मंदिर -ऐहोल |
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बावडी-हचीमल्ली म.म. |
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श्रंगारिक शिल्प-चित्र-हचिमल्ली म.ऐहोल |
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ऐहोल संग्रहालय-पौराणिक कथाएं व लज्जा गौरी प्रतिमा |
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किरातार्जुन प्रसंग -हचीमल्ली म. |
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ऐहोल संग्रहालय-नागराज, नाग युगल एवं नाग-मानव |
---------- क्रमश: यात्रा वृत्त ११.... जोग फाल्स व होनेमराडू.....
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