....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
आजकल विशेषज्ञों चिकित्सकों का कर्म व
कृतित्व केवल ‘चिड़िया की आँख’ की भाँति रह गया है, अर्थात वे सिर्फ अपनी
विशेषज्ञता से सम्बंधित विषय वस्तु व रोग पर ही ध्यान देते हैं..रोगी पर
नहीं, शेष अपने सामान्य या घरेलू चिकित्सक
पर छोड़ देते हैं | यह तथ्य शिक्षित वर्ग-समाज में भी भटकाव पैदा कर रहा है |
पहले सामान्य प्रेक्टिशनर
विशेषज्ञ के पास रोगी को संदर्भित करता था तो उसका अर्थ होता था कि अब रोगी
विशेषज्ञ की निगरानी में रहेगा जब तक वह सम्पूर्ण रूप से ठीक होकर पुनः
अपने चिकित्सक के पास सम्पूर्ण जानकारी एवं सुझावों के साथ वापस नहीं भेजा जाता |
परन्तु आज विशेषज्ञ सिर्फ जिसके लिए उसके पास भेजा गया है रोग के उसी भाग को
चिड़िया की आँख की भाँति देखकर सिर्फ यह कह कर भेज देते हैं कि शेष आपका चिकित्सक
जाने, वही बताएगा| अतः इन दोनों के मध्य रोगी को अपने रोग, चिकित्सा, आदि के
बारे में भटकाव रहता है |
कल भी रोगी को भटकाव रहता था...अपने अज्ञान, अंग्रेज़ी भाषा
के अज्ञान आदि के कारण ...आज भी रोगी भटकाव में रहता है...क्योंकि चिकित्सा
विषय महा-विशेषज्ञता का विषय है अतः पूर्ण रूप से शिक्षित व्यक्ति भी इस बारे में
सामान्य मनुष्य ही होता है, पूरी फीस लेकर भी चिकित्सकों द्वारा पूरा समय व पूरी
जानकारी न दिए जाने एवं भिन्न-भिन्न संस्थानों, चिकित्सकों के भिन्न-भिन्न तौर,
तरीके, सुझाव....इंटरनेट पर जानकारी एवं चिकित्सकों के बारे में राय, रिव्यूज़,
अखबारों, पत्रिकाओं में दिए गए आलेखों ..सुझावों आदि जिन्हें प्रायः चिकित्सक न
मानने का परामर्श भी देते हैं, के कारण रोगी भटकाव में रहता है |
अतः चिकित्सकों को यह दायित्व समझना होगा कि टीवी, इंटरनेट,
पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, मीडिया आदि
में ऐसे आलेखों आदि का प्रकाशन न करें सिवाय चिकित्सा- जर्नल्स के |
विशेषज्ञ चिकित्सक अपने रोग को चिड़िया की आँख की तरह देखने की बजाय सम्पूर्ण
रोगी-रोग को देखें एवं रोगी व रोग से सम्बन्धित सारी उचित सूचनाएं व निर्देश स्वयं
ही रोगी को दें ...सामान्य चिकित्सकों पर न छोड़ें |
अन्य सभी क्षेत्र के विशेषज्ञों के सन्दर्भ में भी यही तथ्य व कृतित्व उचित
है|
1 टिप्पणी:
जब विकल्प उपस्थित हैं तो विचार कर लेना चाहिये।
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