....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
गाय
और कृष्ण का तादाम्य ..गो व .गोपाल का निहितार्थ ....
द्रौपदी ने जब प्रथम मुलाक़ात में कृष्ण
से पूछा कि तुम वास्तव में कौन हो ? कृष्ण का कथन था ‘ मैं कौन हूँ !...मैं तो एक
ग्वाला हूँ ..गाय चराने वाला ...लोग मुझे गोविन्द कहते हैं |
गोविन्द अर्थात यो विन्दते गो ..जो
गौऔं को आनंद देता है...जिसे गौऔं में आनंद प्राप्त होता है, उनकी वन्दना करता है
| गोपाल ...जो गायों का पालक है |
उपनिषदों के बारे में एक कथन है ..”सर्वोपनिषद
गावो दोग्धा नन्द नन्दनम “ अर्थात सारी उपनिषद् गायें हैं और उनके दुहने
वाले एवं उन्हें आनंदित करने वाले नन्द नंदन गोपाल श्री कृष्ण हैं|
वस्तुतः तात्विक अर्थ में
गाय का अर्थ गाय व पृथ्वी के अतिरिक्त ज्ञान व बुद्धि भी
होता है | अतः तात्विक अर्थ है कि सभी उपनिषद् ( साथ में अन्य शास्त्रों को भी
लिया जा सकता है ) गो अर्थात ज्ञान का भण्डार हैं उन्हें श्रीकृष्ण ने सार रूप में
दुह कर विश्व को गीता प्रदान की ..इसीलिये वे गोपाल हैं..गोविन्द हैं |
ऋग्वेद के मन्त्र ५/५२/४०९४
में कथन है....
गवामपि ब्रजं वृधि कृणुष्व
राधो अद्रिव:
नहिं त्वा रोदसी उभे
ऋघायमाणमिन्वंत:
ब्रज में गौ ...अर्थात समस्त ज्ञान, सभ्यता,
संस्कृति की उन्नति व वृद्धि ..राधा-कृष्ण ..दोनों के सम्मिलित सेवा, प्रयासों व
विविध अन्वेषणों द्वारा हुई |
कृ
= कर्म.., कर्तव्य, कृष्ण, सेवा .....राधो = आराधना, साधना, राधन( रांधना,गूंथना
) राधा ...नियमित शोध..शोधन ...अर्थात कर्म व साधना द्वारा की हुए शोधों से हुई
....
तथा....”यमुनामयादि
श्रुतमुद्राधो गव्यं म्रजे निराधो अश्व्यं म्रजे “.अर्थात यमुना के किनारे
गाय, घोड़े आदि धनों का वर्धन (वृद्धि व उत्पादन-पालन ) आराधना सहित करें या होता
है |
---अर्थात ज्ञान को कर्म
एवं साधना द्वारा ही प्राप्त व उन्नत, विकिरित, प्रसारित किया जा सकता है |
एतिहासिकता व तथ्यानुसार
गोकुल वैदिक काल से ही विश्व का प्रमुख गौ ( = समस्त गोवंश एवं घोड़े आदि पालतू पशु
) का प्रजनन व वर्धन केंद्र रहा है | गोपालक समूह के प्रमुख नन्द द्वारा पालित
श्रीकृष्ण अपने क्षेत्र की आर्थिक-शक्ति को मथुरा नगर व साम्राज्य को नहीं भोगने
देना चाहते थे | मथुरा-गोकुल.... श्रीकृष्ण–राधा–गोकुल के गोपालकों तथा कंस के
मध्य यही तो झगड़ा था ...दुग्ध वितरण व उसके अर्थशास्त्र का | देखिये एक
कुण्डली छंद...
गोकुल वासी क्यों
गये, अर्थशास्त्र में भूल,
माखन दुग्ध नगर
चला,गांव में उडती धूल ।
गांव में उडती धूल, गोप बछडे सब भूखे,
नगर होंय सम्पन्न, खांय हम रूखे सूखे ।
गगरी देंगे तोड, श्याम’ सुनलें ब्रज वासी,
यदि मथुरा लेजायें, गोधन गोकुल वासी॥
----ब्रज बांसुरी से ( डा श्याम गुप्त... )
सामान्य जीवन व्यवहार में ......मानव जीवन का मूल लक्ष्य क्या है ?...जीवन
व्यवहार क्या व कैसे और क्यों होना चाहिए
? इसी पर तो सिर्फ मानव का ही नहीं अपितु प्राणी, वनस्पति, जीव-जगत एवं
जड़-जंगम सभी का भूत, भविष्य व वर्तमान टिका है | कर्म, धर्म, वैराग्य, संसार,
ज्ञान, मोक्ष सभी कुछ इसी प्रश्न पर टिके हैं| और उत्तर जाने कितने हैं---‘कर्म
किये जा फल की इच्छा मत कर’... कर्मण्येवाधिकारस्ते....परमार्थ ही जीवन है...सत्यं
वद धर्मं चर...ईश्वर की राह ...आदि आदि ..
पर क्यों ? क्योंकि आराधना, साधना,
प्रसन्नता, परिश्रम से गो पालन के बिना कुछ भी नहीं किया जा सकता....बिना
संस्कारित बुद्धि, ज्ञान, विवेक के साधनामय कृतित्व व कर्म के बिना जीवन लक्ष्य
प्राप्त नहीं हो सकता जैसा यजुर्वेद के अध्याय ४० –ईशोपनिषद के मन्त्र ११ में
निहित है...
विद्यांचाविद्यां च यस्तत वेदोभय सह |
अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते ||..----अर्थात ज्ञान एवं संसार दोनों को जो व्यक्ति साथ-साथ
बुद्धि व विवेक पूर्णता से साधता है वह सांसारिक ज्ञान से मृत्यु को जीत कर
आध्यामिक ज्ञान से जीवन लक्ष्य...मुक्ति प्राप्त करता है |
यही
तो कृष्ण गीता में कहते हैं....
श्रुति विप्रतिपन्ना ते यदा
स्थास्यति निश्चला|
समाधावचला बुद्धिस्तदा
योगमवाप्स्यसि || गीता २/53....
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अर्थात भान्तियों से युक्त बुद्धि जब समाधि में अचल निश्चल होती है तभी
साधक को योग की प्राप्ति होती है| एवं...
सर्वभूतस्थमात्मानं सर्व भूतानि
चात्मनि |
ईक्षते योग युक्तात्मा सर्वत्र
समदर्शन:|
---- अर्थात जो सब भूतों ( संसार में जो कुछ भी
है ) को स्थिर बुद्धि ( वास्तविक ज्ञान व साधना युत कर्म ) से मुझ परमात्मा में
देखता है वह समाधि अवस्था के सुख ( जीवन लक्ष्य पूर्ति का सुख ) को अनुभव करता है
|
अतः जो ज्ञान व बुद्धि के उपयोग से कठोर श्रम, आराधना व साधना के साथ कर्म करते हैं वे ही जीवन
लक्ष्य प्राप्त करते हैं|
यही कृष्ण और गाय का तादाम्य एवं ..गोपाल..गोविन्द का निहितार्थ
है......|
2 टिप्पणियां:
लोग कहते हैं कि हम गाय नहीं पालते, गाय हमें पालती है।
क्या बात है पांडेजी ...एक दम सत्य...
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