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..कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
हम्पी-बादामी यात्रा
वृत्त...भाग ३....हम्पी.....विरूपाक्ष मंदिर....
प्राचीन भारत में तत्कालीन विश्व के सबसे
शक्तिशाली एवं समृद्धतम साम्राज्य ‘विजय नगर’ जो रोम से भी अधिक समृद्ध था, जहां
की गलियों में हीरे-जबाहरात की बिक्री खुले आम हुआ करती थी, की अंतिम राजधानी हम्पी....
जो सम्राट कृष्णदेव राय के समय पूरे उत्थान पर थी, जिसे रामराजा राय के समय ई.१५६५
में पांच मुस्लिम सल्तनतों- बीदर, बीजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर एवं बेरूर- द्वारा मिलकर पराजित किया गया एवं छह माह तक लूटा व महाविनाश किया जाता रहा जो
असंस्कारित मानव की असभ्यता,विचारहीनतापूर्ण
विरोधात्मक एवं हिंसात्मक प्रवृत्ति का प्रतीक है ...आज एक खंडहरों के नगर
तक सीमित है | जिसका हर घर –मंदिर-द्वार शिल्पकला से अलंकृत था । अनेगुंडी-राज्य
के हरिहर एवं बुक्का भाइयों द्वारा १३ वीं सदी में स्थापित विजयनगर साम्राज्य
शीघ्र ही अपने सक्षम व शानदार शासन-प्रशासन तथा विज्ञान व तकनीकी कौशल के कारण
समस्त दक्षिण भारत का ही नहीं अपितु विश्व में सर्व-श्रेष्ठ साम्राज्य हुआ एवं
समुद्र पार व्यापार एवं नयी-नयी तकनीकी क्षमताओं से इतिहास का समृद्धतम साम्राज्य
होगया, जिसका व्यापार व प्रभुत्व का पूर्व में चीन से लेकर पश्चिम में वेनिस तक
डंका बजता था | विनाश की लीला झेले हुए खंडहर हुए इस साम्राज्य में अब प्रायः भवनों-मंदिरों
में मूर्तियाँ नहीं हैं या खंडित हैं । वे मूर्तियाँ यूरोप के किसी घर के ड्राइंग-रूम
या किसी मयूज़ियम की शोभा बढ़ा रही होंगी । उन मूर्तियों खंडित हिस्से हम्पी मयूज़ियम में देखे जा सकते
हैं । परन्तु वे पत्थर आज
भी अपने वैभव की गाथा गाते हुए प्रतीत होते हैं|
२३-१२-१३को प्रातःकाल में ही कार द्वारा अनेगुंडी होते हुए
तुंगभद्रा के दूसरे तट पर हम्पी के लिए प्रस्थान किया | कार को
विरूपाक्ष मंदिर के सम्मुख नदी के तट पर स्थित अनेकों रेज़ोर्ट्स व होटलों के समूह
के समीप कार स्टेंड पर छोड़कर बोट द्वारा नदी को पार करके हम्पी पहुंचे | जहां आगे
का भ्रमण ऑटो-रिक्शा द्वारा किया गया |
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अनेगुंडी घाट से विरूपाक्ष मंदिर |
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हम्पी मस्कट |
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विरूपाक्ष मंदिर |
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अनेगुंडी घाट तुंगभद्रा |
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विरूपाक्ष मंदिर |
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विरूपाक्ष मंदिर शिखर व इरोटिक कला कृतियाँ |
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हम्पी बाज़ार |
विरूपाक्ष मंदिर.... तुंगभद्रा के किनारे यह हम्पी का सबसे बड़ा मंदिर है जहां
अभी भी पूजा होती है| इसी स्थान पर शिव का ब्रह्मा-पुत्री पम्पा से विवाह हुआ था,
अतः इसे पंपापति मंदिर भी कहा जाता है| तीसरी आँख से कामदेव भष्म होने के
कारण शिव का नाम विरूपाक्ष हुआ | यहाँ पम्पादेवी, भुवनेश्वरी एवं दुर्गा के मंदिर भी हैं| इसके समीप ही मन्मथ-सरोवर
है जहां से कामदेव ने देवी पम्पा के शिव
से विवाह हेतु तप से सहानुभूति हेतु हेमकूट
पर्वत पर तपोलीन शिव के ऊपर पुष्पवाण का संधान किया था, तप भंग करने पर उसे शिव की क्रोधाग्नि में भस्म होना पडा था
| यहाँ पंपादेवी एवं भुवनेश्वरी की मूर्तियाँ
भी हैं एवं तीन सिर वाले नंदी की भी
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तीन सिर के नंदी |
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मन्मथ सरोवर |
चित्र... अनेगुंडी घाट तुंगभद्रा ...विरूपाक्ष मंदिर-
मन्मथ सरोवर, हम्पी बाज़ार, हम्पी राज-चिन्ह, इरोटिक-मूर्तियाँ विरूपाक्ष मंदिर ...
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उग्र नरसिंह
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उग्र नरसिंह....
उग्र नरसिंह.... हेमकूट पर्वत के पास ही भगवान विष्णु के नरसिंह स्वरूप की
हिरण्यकश्यप वध के पश्चात
उग्र भाव में विशाल मूर्ति है | करीब सात मीटर ऊंची यह मूर्ति एक ही चट्टान को तराशकर
बनाई गई है। इसके ऊपर सात मुख वाले सर्प का छत्र है | यह वास्तव में लक्ष्मी-नरसिंह मंदिर है जिसमें नरसंह की बाईं
गोद में ललितासन में लक्ष्मी बैठी हुई थीं जिसे तोड़ दिया गया है लक्ष्मी का बचा
हुआ एक खंडित हाथ नरसिंह की कमर में लपेटा हुआ दिखाई देता है | भूलवश इसे सिर्फ उग्र नरसिंह कहा जाने लगा|
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वाडव लिंग |
वडव लिंग...
हम्पी में सबसे बड़ा शिव लिंग
है जिसमें मंदिर के अन्दर होकर ही लगातार जल बहता रहता है| बड़व लिंग, एक 9 फुट ऊंचा मंदिर, लक्ष्मी नरसिंह मंदिर के निकट स्थित है। बड़व लिंग का एक अनोखा तथ्य यह है कि
इस संरचना के आसपास एक प्राचीन नहर का पानी नित्य बहता है। इस अखंड़ लिंग पर तीन आंखें उत्कीर्ण हैं, जो भगवान शिव की तीनों आंखों का प्रतिनिधित्व करती हैं। यह हम्पी
का सबसे बड़ा शिवलिंग है| .अधिकाँश मंदिर आदि अमीर लोगों द्वाराबनवाये जाते हैं
परन्तु यह सामान्य जन द्वारा बनाया गया शिवलिंग है अतः बिना किसी विशेष साज सज्जा
के साधारण मंदिर है | स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, हम्पी नामक एक गरीब आदिवासी ने अपनी इच्छा पूर्ण होने पर एक शिव लिंग बनाने का वादा किया था। इस भक्त ने भगवान शिव को समर्पित एक बड़े
से पत्थर को काटकर बड़व लिंग बनाया। एक अन्य कथा के अनुसार, इस लिंग को एक देहाती महिला द्वारा स्थापित किया था, जिसने इसका नाम बड़व लिंग रखा और स्थानीय
भाषा में बड़व का अर्थ है गरीब।
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भूमोगत शिव मंदिर पर निर्विकार-रीना |
भूमिगत शिव मंदिर--
यह भूमि
के नीचे शिवमंदिर है लगभग एक पूरी मंजिल जल के अन्दर है जो वर्षा के जल से ऊपर तक
भी भर जाता है ...मंदिर में विभिन्न मूर्तियाँ एवं शिलाओं पर उत्कीर्णित मूर्तियाँ
है | इसे प्रसन्न
विरूपाक्ष मंदिर
भी कहा जाता है |
साथ में ही शिव की अर्धांगिनी पम्पा का
भी एक छोटा मंदिर है एवं एक कल्यान्मंड़प भी है| यह हम्पी का सबसे प्राचीन मंदिर
है|
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भूमिगत शिव मंदिर में नागराज मूर्ति व नाग शिलाएं |
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----- क्रमश..... हम्पी-बादामी यात्रा
वृत्त...भाग ४ ....हम्पी......हेमकूट पर्वत ....
2 टिप्पणियां:
भव्य संस्कृति के शेषांश।
धन्यवाद पांडेजी ....वास्तव में भव्य ......
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