....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
हम्पी-बादामी यात्रा वृत्त—९ … पत्तदकल ( पट्टाडाकल )
पत्तदकल ग्राम बादामी से २२ किमी पूर्व की ओर
उत्तरी कर्नाटक के बागलकोट जिला, बादामी तालुके में मालप्रभा ( मलयप्रभा) नदी के
बाएं तट पर स्थित है एवं चालुक्यों की धार्मिक एवं सांस्कृतिक राजधानी रहा है, यहाँ
की मिट्टी व बलुआपत्थर लाल आभा लिये हुए होने के कारण इसे पट्टकिसुवोलल या
रक्त-पुरा भी कहा जाता है| हम्मीर-काव्य( १५४०) एवं सिंगीराजपुराण ( १२
वीं सदी) आदि काव्य-कृतियों के अनुसार यहाँ चालुक्य सम्राटों का राज्याभिषेक होता
था | इसे पट्टशिलापुर व हम्मीरपुर भी कहा गया है| दूसरी शताब्दी में आये हुए विदेशी ग्रीक यात्री टालेमी ने
इसे पेट्रिगल कहा है| हम लोग प्रातःकाल नाश्ते के पश्चात् कार से ही पत्तदकल के लिए चल दिए और लगभग १० बजे पहुँच गए |
यह वही प्राचीन पट्टशिलापुर है जहां शिव ने
अंधकासुर का वध किया था | पत्तदकल में
मुख्यत: दस मंदिर स्थापित हैं जिनमें से एक मंदिर जैन धर्मशाला रूप में निर्मित है चार मंदिर दक्षिण भारतीय शैली के बने हुए हैं| मंदिरो का विश्व-धरोहर परम्परा में स्थान है| ज्ञान शिवाचार्य जो संभवत: उत्तर भारत से आये
हुए कहे जाते हैं उन्होंने उत्तर व दक्षिण भारत की संस्कृति व देवालय कला को
पत्तदकल में स्थापित किया| पत्तकदल के एक अभिलेख में ज्ञानशिव की चर्चा है जो गंगा तट पर स्थित किसी ‘मृगथानिकाहार’ से वहां
आए थे और चालुक्य महारानी त्रैलोक्य महादेवी द्वारा उनका स्वागत किया गया था। हो
सकता है वह कर्नाटक आने वाले आरंभिक शैव सम्प्रदायों ..कालमुखों
या पाशुपत सम्प्रदाय में से एक हों या लकुलशैव पंथ के अनुयायी रहे हों । बादामी के चालुक्यों के समय में शुरू हुआ कालमुख-पाशुपत
आन्दोलन राष्ट्रकूटों के समय में भी
जारी रहा| बौद्ध एवं जैन धर्म की सक्रियता
के कारण मंद पड़ने पर भी चालुक्यों के स्वर्णिम काल में इस क्षेत्र में कालमुख और
पाशुपत शैव संप्रदाय की काफी उन्नति हुई। जो मंदिरों की कला वे मूर्तियों से
स्पष्ट होता है|
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गज-मोक्ष -विम |
पत्तकदल
मंदिर समूह विविध देवालय वास्तु-कला प्रस्तुत करते हैं जो उत्तर भारतीय, दक्षिण
भारतीय एवं इंडो-आर्यन वास्तु कला का मिश्रण है| यहाँ के मुख्य मंदिर हैं .. विरूपाक्ष मंदिर, गलगनाथ
मंदिर, काड-सिद्देश्वर म., जम्बूलिंग म., मल्लिकार्जुन म., संगमेश्वर
म., काशी विश्वेश्वर म., पापनाथ मंदिर | जैन नारायण मंदिर बादामी –पत्तदकल रोड पर स्थित है||
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विरूपाक्ष म. |
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रावण अनुग्रह -वि.म. |
विरूपाक्ष मंदिर ...यहाँ का सबसे बड़ा मंदिर है | यह लोकेश्वर शिव मंदिर
है | प्रवेश पर दोनों ओर द्वारपाल हैं एवं त्रिशूलधारी शिव, नंदी-मंडप में काले
ग्रेनाईट की बहुत बड़ी नंदी नंदी की मूर्ति
है| भवन १८ भारी खम्भों पर है जिन पर विविध पौराणिक शिप-कालाक्रितियो एवं श्रंगारिक
मूर्तियों का चित्रण है जिनमें नरसिंह, रावण-अनुग्रह, गजेन्द्र मोक्ष आदि चित्रित
हैं|
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नंदी मंडप -वि.म.
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शिव-अंधकासुर को त्रिशूल पर टाँगे हुए व लकुलीश वि.म. |
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शिव गण --वि.म.पत्तदकल |
गलगनाथ मंदिर ...इसके प्रवेश द्वार पर नटराज की कलाकृति है | इसी स्थान
पर शिव द्वारा अंधकासुर का वध किया गया था जिसका चित्रण मुख्य द्वार पर है| कुबेर,
गज-लक्ष्मी का भी चित्रं है|| गर्भ गृह में शिव-लिंग है
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कुबेर -गलग.म. |
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गल.म.--द्वार पर अन्धाकासुर को त्रिशूल पर टाँगे हुए शिव |
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गलग नाथ मंदिर |
जम्बूलिंग मंदिर....सुन्दर कलाकृति का छोटा मन्दिर है प्रवेश के शिखर पर
नंदी सहित शिव-पार्वती हैं| विष्णु
व शिव की एवं वीरभद्र की मूर्तियाँ भी हैं|
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शिव-लिंग -जम्बू-लिंग म. |
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जम्बूलिंग मंदिर |
मल्लिकार्जुन मंदिर ...विरुपाक्ष म. के समीप है | स्तंभों और सभामंड़प में
पुराण, महाकाव्य,गीता व पंचतंत्र की कलाकृतियाँ उकेरी गए हैं| शिव-पार्वती,
लकुलीश, हरिहर ,महिषासुर मर्दिनी , नृसिंह द्वारा हिरन्यकश्यप वध एवं दो
स्त्री-मूर्तियाँ एवं सामाजिक जीवन की मूर्तियाँ भी हैं|
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युगल---मल्लिका.म. |
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दैनिकचर्या --मल्लिका..म. |
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नृसिंह -हिरान्याक्ष्याप -मल्लिका.म. |
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मल्लिकार्जुन मंदिर |
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काशी विश्वेश्वर म. |
काशी विश्वेश्वर
मंदिर...बाहरी सजावट काले बलुआ पत्थर से है | नृत्यरत
शिव एवं विविध प्रकार की अन्य कलाकृतियों का निर्माण हुआ है|
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पापनाथ मंदिर |
पापनाथ मंदिर .... विरूपाक्ष म. के दक्षिण में है| विष्णु के चित्र, गज-लक्षमी आदि होने से विष्णु मंदिर रहा होगा|.
रामायण व महाभारत के
दृश्य उकेरे गए हैं|
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चंद्रशेखर मंदिर |
चन्द्र शेखर मंदिर ...संगमेश्वर म. के वायीं ओर एक छोटे से हाल में शिव-लिंग
स्थापित है|
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2 टिप्पणियां:
संस्कृति का वृहद पक्ष, इतिहास के पृष्ठों से स्वयं को हटाने के षड़यन्त्र का उद्घाटन करता हुआ।
सत्य बचन---- पुस्तकों में इतिहास से षडयंत्र किया जा सकता है परन्तु पत्थर सच्चा-सहज संगीत गा देते हैं..
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