....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
विवाह पूर्व यौन
संबंध में स्त्री विवेक के साथ पुरुष विवेक भी आवश्यक है ---------
उच्च न्यायालय का द्वारा अभी पुरुष द्वारा शादी का झांसा देकर पर सम्बन्ध बनाने फिर शादी से मुकर जाने पर महिला द्वारा वलात्कार का मुकदमा दायर करने के एक प्रकरण में दिया गया फैसला बिलकुल सही है कि सहमति से संबंध बनाने पर इसे वलात्कार नहीं माना जायगा| यह फैसला दूरगामी प्रभाव वाला एवं समाज के व्यापक हित तथा स्वयं यह स्त्री हित के अनुकूल ही है| आज
के बदलते सामाजिक परिप्रेक्ष्य में जहां स्त्री-पुरुष की संगति के मौके अधिक हैं,
शादी पूर्व यौन सम्बन्ध आवश्यक तो नहीं, जो कभी नहीं रहे, परन्तु यदि स्त्री स्वयं
यौन-सम्बन्ध बनाती है तो उसका अपना दायित्व है, अतः स्त्री को अपनी स्वयं की एक
सीमा रेखा बनानी होगी | ……. यदि पढी-लिखी, वालिग़ लड़की अपना हर फैसला लेने में स्वतंत्र लड़की-महिला अपनी इच्छा से सम्बन्ध
बनाती है तो वह उसके परिणामों से भली
भांति परिचित है ..उसे या तो स्वयं पर कंट्रोल
करना चाहिए अथवा परिणाम को स्पोर्टिंग-स्वस्थ-भाव से लेना चाहिए……विवाह से मुकरजाना आदि सदा से ही होता आया है जो उभयपक्षीय
स्वभाव है| पौराणिक गंगा-शांतनु...उर्वशी–पुरुरवा ..आदि स्त्रियों के पुरुष को
त्याग कर स्वयं ही सम्बन्ध आगे न निभाने के उदाहारण हैं, और आज भी स्त्रियाँ भी
ऐसा करती हैं|
पौराणिक संबंधों में अर्जुन-चित्रांगदा,
अर्जुन-उलूपी, भीम-हिडिम्बा, कुंती-सूर्य, मेनका-विश्वामित्र, दुष्यंत-शकुन्तला
जैसे स्त्रियों की त्रुटियों के तमाम उदहारण हैं परन्तु किसी भी स्त्री ने अपनी
त्रुटि को पुरुष पर लादने की प्रयत्न नहीं किया, न स्वयं को कमजोर साबित होने दिया
..अपितु स्वयं को समर्थ व पुरुष की सहायता के बिना भी जीकर दिखाया एवं समय पड़ने पर
अपनी संतान को पिता की सहायता हेतु प्रस्तुत करके पुरुष से स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध
किया |
राधा ने कब कृष्ण से शिकायत की अपितु
अपने प्रेम को बंधन न बनने देने हेतु स्वयं उन्हें कर्तव्य पथ पर चलने को प्रेरित
किया जिसके फलस्वरूप कृष्ण ...श्रीकृष्ण बने एवं विश्व को गीता जैसा कर्मयोग का
सिद्धांत प्राप्त हुआ| आज भी कुछ महिलायें ऐसी होती हैं|
इसके साथ ही एक अन्य मूलभूत बिंदु
पुरुष-दायित्व का भी है| यद्यपि आज की सशक्त-शिक्षित महिला को भावनात्मक आधार पर
पुरुष द्वारा भरमाये जाने का आधार व आसार कम ही हैं फिर भी शादी से पूर्व यौन
संबंधों में स्त्री को पुरुष द्वारा भावनात्मक रूप से भरमाये जाने की शंका सदैव
रहती है | अतः पुरुष को भी अपना सामजिक दायित्व समझना चाहिये एवं ऐसे प्रकरण से बचना
चाहिए | यदि स्त्री
भावुकता की कमजोरी में या त्रुटिवश या नासमझी में त्रुटि करती है तो उन्हें अपने
उस पुरुष- दायित्व को समझना चाहिए जिसे वे अपना पुरुषत्व
कहते हैं एवं स्वयं को श्रेष्ठ समझते हैं |…… आज भी ऐसे दायित्व बोध-युत पुरुष होते हैं|
पुरुष दायित्व के पौराणिक उदाहरण लें तो विश्व का सबसे पहला उदाहरण ऋग्वेद
के यम-यमी प्रकरण का है | यम-यमी सूर्य की संतान हैं| किसी एकांत स्थल में
यमी, यम से सम्बन्ध बनाने का आग्रह करती है | वह काल स्त्री की स्वतन्त्रता एवं
स्वेच्छा का काल था, स्त्री की इच्छा का आदर करना पुरुष का कर्तव्य माना जाता था |
परन्तु यम ने विभिन्न तर्कों से यमी को इस त्रुटिपूर्ण कृत्य से विरत किया |
इसीलिये यम बाद में नियमों एवं अनुशासन के देवता हुए ..जिन्हें आज
भी यमानुशासन एवं नियमानुशासन कहा जाता है |
अन्य उदाहरणों में.... ताड़का-विश्वामित्र प्रकरण...शूर्पणखा–राम
प्रकरण....अर्जुन-उत्तरा प्रकरण आदि पुरुष की दृड़ता के उदहारण हैं|
2 टिप्पणियां:
स्वेच्छा और अनुशासन के बीच बहता जीवन का सत्य।
हाँ यही स्वानुशासन है....आत्मानुशासन ...योगानुशासन..सेल्फ कंट्रोल ..
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