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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

श्रुतियों व पुराण-कथाओं में वैज्ञानिक तथ्य .-- अंक-३ ..वायुयान का निर्माण ------ ...डा श्याम गुप्त ...



         श्रुतियों व पुराण-कथाओं में भक्ति-पक्ष के साथ व्यवहारिक-वैज्ञानिक तथ्य --अंक-३
                

         श्रुतियों व पुराणों एवं अन्य भारतीय शास्त्रों में जो कथाएं भक्ति भाव से परिपूर्ण व अतिरंजित लगती हैं उनके मूल में वस्तुतः वैज्ञानिक एवं व्यवहारिक पक्ष निहित है परन्तु वे भारतीय जीवन-दर्शन के मूल वैदिक सूत्र ...’ईशावास्यम इदं सर्वं.....’ के आधार पर सब कुछ ईश्वर को याद करते हुए, उसी को समर्पित करते हुए, उसी के आप न्यासी हैं यह समझते हुए ही करना चाहिए .....की भाव-भूमि पर सांकेतिक व उदाहरण रूप में काव्यात्मकता के साथ वर्णित हैं, ताकि विज्ञजन,सर्वजन व सामान्य जन सभी उन्हें जीवन–व्यवस्था का अंग मानकर उन्हें व्यवहार में लायें |...... स्पष्ट करने हेतु..... कुछ उदाहरण एवं उनका वैज्ञानिक पक्ष यहाँ क्रमिक रूप में प्रस्तुत किया जायगा.... अंक ३.... वायुयान का निर्माण ------


                         वायुयान का निर्माण ------
         मन्त्र  “ क्रडिं व शर्धो मारुतमनर्वाणं रथे शुभम।..... कण्वा अभिप्रगात।।
         ---- अर्थात क्रीडायें व विभिन्न साधन रूप मरुतो ! तुम कण्व हो, अर्थात शब्द करने वाले हो, तुम्हारे बल से रथ (विमान) चलते हैं इनका कोइ प्रतिरोध नहीं कर सकता | तुम्हारे शब्द से (मन की शक्ति से) चालित विमान अत्यंत प्रभावी हैं उनका कोइ मुकाबला नहीं कर सकता |

         जल, थल व वायु में गतिमान अश्विनी द्वय का विमान ----  
   युवमेत चक्रथु: सिन्धुव प्लव आत्मन्ते दक्षिण तौरमाय
    यन देव मासा निरुहथुसुवप्तनी पेनथकम क्षोद: कं...”.  (ऋग्वेद 1, 182, 5)
  
 -----(हे  आश्विन कुमारो !) आपके द्वारा निर्मित आसमान में पक्षी की भाँति उड़नेवाली, उसी प्रकार स्थल व सागर में समान रूप से स्वचालित रूप से गमनीय नौका पर आरूढ़ होकर आपने आकाशमार्ग से आकर दक्षिण महासागर में डूबते हुए (तुग्र पुत्र भुज्यु ) को बचाया |
  ----- ऋग्वेद मे अश्विनी कुमारों के सूक्तों मे स्थान -स्थान पर विमानों का वर्णन आया है। वस्तुतः देववैद्य व विश्व-चिकित्सक अश्विनी द्वय का यह विमान एक वायु, जल, थल में चालित रोगी व चिकित्सक - वाहन (एम्बुलेंस ) था |
       पुष्पक-विमान----
         ‘तत् पुष्पकं कामगमं विमान मयस्थितं भूधर संनिकाशम्।
         दृष्टा तथा विस्मयमाजगाम राम’ सौमित्ररूदए सत्त
                                       -वाल्मीकि रामायण,
          विश्वकर्मा द्वारा यह रचित विमान मन के समान वेग वाला था। वह सर्वत्र जा सकता था, उसकी गति कहीं रुकती नहीं थी। इस विमान को देखकर भगवान श्रीराम व लक्ष्मण को बड़ा विस्मय हुआ।
      नानोपाकरणैर्युक्तं भास्वतं पुष्पक विदु:।
      पुष्पंक तु समारुह्म परिचकाम मेदिनीम।
           शिल्पा संहिता मे विश्वकर्मा द्वारा निर्मित विभिन्न यन्त्रों से सज्जित भाप के योग से चलने वाला यह पुष्पक विमान पृथ्वी के चक्कर लगाने मे समर्थ था।


        शाल्व का विमान ...सौभ ...
       महाभारत के एक प्रसंग में...शाल्व ने भगवान शिव से कहा.... "हे प्रभो! आप मुझे एक ऐसा विमान दीजिये जो देवता, असुर, मनुष्य, नाग, गंधर्व और राक्षसों द्वारा तोड़ा न जा सके, जहां मेरे मन में जाने की इच्छा हो वह चला जाय और यदुवंशियों के लिए अति भयंकर हो।" 
     शिवजी ने मय दानव को सौभ नामक लोहे का विमान बनाने का आदेश दिया और उसे शाल्व को दे दिया। वह विमान क्या एक नगर ही था। वह इतना अंधकारमय था कि उसे देखना अथवा पकड़ना कठिन था ( अदृश्य होने की क्षमता थी )। चलाने वाला उसे जहां ले जाना चाहता, वहीं वह उसके इच्छा करते ही चला जाता।
     शाल्व ने यह विमान प्राप्त करके द्वारका पर चढ़ाई कर दी, शाल्व ने विमान में बैठ कर अस्त्रों की वर्षा शुरू कर दी। द्वारिकावासी उसके इस आक्रमण से घबरा उठे। श्री कृष्ण की अनुपस्थिति में कृष्ण पुत्र प्रद्युम्न ने सत्ताइस दिनों के इस युद्ध में शाल्व की सेना को नष्ट कर दिया था। युद्ध की सूचना प्राप्ति पर श्रीकृष्ण ने बलराम के साथ  स्वयं द्वारिका आकर सौभ विमान सहित शाल्व का विनाश किया |
----- भारद्वाज संहिता में विविध प्रकार के विमानों के निर्माणकी अभियांत्रिक विधियां वर्णित हैं|
     सोमयान :- भागवत के स्कन्ध 10 मे वर्णन मिलता है। प्राचीन साहित्य मे अनेक प्रकार के विमानों के वर्णन है। विमान को रथ भी कहा जाता है। वस्तुत: स्थल,जल,तथा नभ तीनों स्थानों पर चलने वाले यानों को रथ कहा गया है।
भारद्वाज रचित यन्त्र सर्वस्व के वैमानिक प्रकरण मे विमान के ३२ रहस्यों का वर्णन मिलता है उनसे विमान से मारक ध्रूम्र फेंक कर शत्रु विमान को नष्ट करना विमान अदृश्य कर देना ,शत्रु की स्मृति नष्ट कर देना दूसरे विमान में बैठे शत्रु की वार्ता सुन लेना जैसे रहस्यों का वर्णन है।
विधुत रथ पनडुब्बी तथा अन्तरिक्ष यान का वर्णन भी मिलता है।
शकत्युद्रमो भूतवाहो धूमयानश्श्सिखोदगम:।
अंशुवाहहस्तारामुखो मणिवाहो मरुत्सख: इत्यष्टकाधिकरणे वर्गाण्युक्तानि शास्त्रत॥
              अर्थात बिजली से चलने वाला अग्रि जल,वायु आदि भूतों से चलने वाला वाष्प से चलने वाला पंचशिखी के तेल से चलने वाला सूर्य की किरणों से चुम्बक मणिवाह (सूर्यकान्त चन्द्रकान्त मणि से ) केवल वायु से चलने वाला इस प्रकार आठ प्रकार की शक्तियोंसे विमान चलते थे। 
        अतिसूक्ष्म विज्ञानयुक्त यन्त्र को मणि कहा जाता है। मणिवाह शक्ति सूर्यकान्त तथा चन्द्रकान्त मणियों द्वारा संचालित होती थी। वह इन दोनों की किरण शक्तियों को आबद्ध कर तैयार की जाती थी। इसी प्रकार उल्कारस भी एक अद्द्रुत शक्ति थी। शक्तियां आकाश स्थित इन्द्र मरुत, चन्द्र, किरणों से सम्बन्धित थी।
        
गरुड विमान:- विष्णु के वाहन गरुड है। परन्तु यह गरुड कोई पक्षी नही था। बल्कि श्येन की आकृति का विशिष्ट प्रकार का विमान था।
आ वां अशिवना श्येनपत्व: सुमृलीक: स्ववां यात्वर्वाड।
 ------अर्थात श्येन (गरुड) पक्षी के तुल्य वह आकाश मे उडे॥

      यह विमान विष्णु के पास था विष्णु तथा विश्वकर्मा समकालीन थे। इसके निर्माता विश्वकर्मा जी थे।
    मयूर विमान:- चिन्तामणि नाम के ग्रन्थ मे मयूर की आकृति के विमान का वर्णन मिलता  है। संस्कृत मे वि का अर्थ पक्षी तथा मान अर्थ अनुरुप है अत: विमान का अर्थ पक्षी के सदृश होता है।
     
     कामगं विमान:- भागवत पुराण मे इसकी आश्व्चर्य्जनक विशेषता इन शब्दों में बताई है-     
       क्कचिद भूमौ क्क्चिदव्योम्नि गिरिश्रृअगे जले क्क्चित।
-----अर्थात यह विमान कभी भूमि पर कभी आकाश मे कभी जल मे तथा कभी पर्वतों की चोटी पर चल सकता है।

      शातकुम्भ विमान:- ब्रह्मवैवर्त पुराण मे सौचक्रो से युक्त शातकुम्भ नामक रथ का वर्णन मिलता है।
      वैहायस विमान:- भागवत मे मय निर्मित सामरिक विमान का वर्णन मिलता है। इसमे सब प्रकार की युद्ध सामग्री भरी हुई होती थी। तथा यह अदृश्य हो सकता था। इस पर चढ कर बलि युद्ध करने को गये ।
     मरुतों के विमान ---अंतरिक्ष से संचार करनेवाले आकाशयान उनके पास थे।
          हे मरुतो! तुम अंतरिक्ष से हमारे पास आओ। (ऋ. 5538)
      आप मनुष्य हैं पर आपकी स्तुति करनेवाला अमर होता है। आप रुद्र के मनुष्य रूपी पुत्र हैं। (ऋ. 1384, 1642)
        इस तरह वेद में मरुतों का वर्णन "सैनिकीय गण" के रूप में किया गया है। ये मरुत मानव थे। मरुतों का रथ बिना घोड़ों के भी चलनेवाला था। किसी पशु पक्षी के जोतने के बिना वह चलता था।
  मन्त्र  “ क्रडिं व शर्धो मारुतमनर्वाणं रथे शुभम।.....    कण्वा अभिप्रगात।।
         ---- अर्थात क्रीडायें व विभिन्न साधन रूप मरुतो ! तुम कण्व हो, अर्थात शब्द करने वाले हो, तुम्हारे बल से रथ (विमान) चलते हैं इनका कोइ प्रतिरोध नहीं कर सकता | तुम्हारे शब्द से (मन की शक्ति से) चालित विमान अत्यंत प्रभावी हैं उनका कोइ मुकाबला नहीं कर सकता |
ऋग्वेद में वर्णन है -----हे मरुतो! तुम्हारा रथ (अन्:-एन:) निर्दोष है, (अन्-अश्व:) इसमें घोड़े नहीं जोते जाते, तथापि वह (अजति) चलता है। वह रथ (अ-रथी:) रथी बिना भी चलता है। (अन्-अवस:) रक्षक की जिसको जरूरत नहीं है, (अन् अभीशु:) लगाम भी नहीं है, ऐसा तुम्हारा रथ (रजस्तू:) धूलि उड़ाता हुआ (रोदसी पथ्या) आकाश मार्ग से (साधन् याति) अपना अभीष्ट सिद्ध करता हुआ जाता है।"
मरुतों के चार प्रकार के रथ थे--
(1) अश्व रथ,
(2) हरिणियों से चलनेवाला रथ,
(3) अनश्व रथ अर्थात् घोड़े के बिना वेग से चलनेवाला रथ,
(4) आसमान में (रोदसी) उड़नेवाला रथ अर्थात् वायुयान (ऋ. 6667)
 
                     ---क्रमश्.अंक -४..



2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मन से चलने वाले विमानों की अद्भुत परिकल्पना, तथ्य हैं तो सत्य भी होगा।

shyam gupta ने कहा…

सही है...सांप दिखाई दिया है तो रस्सी तो होगी ही.....