....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
ग़ज़ल की कोइ किस्म नहीं होती है दोस्तो|
ग़ज़ल का जिस्म उसकी रूह ही होती है दोस्तो |
हो जिस्म से ग़ज़ल विविध रूप रंग की ,
पर रूह लय गति ताल ही होती है दोस्तों |
कहते हैं विज्ञ कला-कथा ग़ज़ल ज्ञान की ,
यूं ग़ज़ल दिले-रंग ही होती है दोस्तो |
बहरें वो किस्म किस्म की, तक्ती सही-गलत ,
पर ग़ज़ल दिल का भाव ही होती है दोस्तो |
उठना व गिरना लफ्ज़ का, वो शाने ग़ज़ल भी ,
बस धडकनों का गीत ही होती है दोस्तो |
मस्ती में झूम कहदें श्याम ' ग़ज़ल-ज्ञान क्या ,
हर ग़ज़ल सागर ज्ञान का ही होती है दोस्तों ||
ग़ज़ल का जिस्म उसकी रूह ही होती है दोस्तो |
हो जिस्म से ग़ज़ल विविध रूप रंग की ,
पर रूह लय गति ताल ही होती है दोस्तों |
कहते हैं विज्ञ कला-कथा ग़ज़ल ज्ञान की ,
यूं ग़ज़ल दिले-रंग ही होती है दोस्तो |
बहरें वो किस्म किस्म की, तक्ती सही-गलत ,
पर ग़ज़ल दिल का भाव ही होती है दोस्तो |
उठना व गिरना लफ्ज़ का, वो शाने ग़ज़ल भी ,
बस धडकनों का गीत ही होती है दोस्तो |
मस्ती में झूम कहदें श्याम ' ग़ज़ल-ज्ञान क्या ,
हर ग़ज़ल सागर ज्ञान का ही होती है दोस्तों ||
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