....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
ब्रज की भूमि भई है निहाल |
ब्रज की भूमि भई है निहाल |
सुर गन्धर्व अप्सरा गावें
नाचें दे दे ताल |
जसुमति द्वारे बजे बधायो,
ढफ ढफली खडताल |
पुरजन परिजन हर्ष मनावें
जनम लियो नंदलाल |
आशिष देंय विष्णु शिव्
ब्रह्मा, मुसुकावैं गोपाल |
बाजहिं ढोल मृदंग मंजीरा
नाचहिं ब्रज के बाल |
गोप गोपिका करें आरती, झूमि
बजावैं थाल |
आनंद-कन्द प्रकट भये ब्रज
में विरज भये ब्रज-ग्वाल |
सुर दुर्लभ छवि निरखे
लखि-छकि श्याम’ हू भये निहाल ||
तेरे
कितने रूप गोपाल ।
सुमिरन
करके कान्हा मैं तो होगया आज निहाल ।
नाग-नथैया, नाच-नचैया, नटवर, नंदगोपाल ।
मोहन, मधुसूदन, मुरलीधर, मोर-मुकुट, यदुपाल ।
चीर-हरैया, रास -रचैया, रसानंद, रस पाल ।
कृष्ण-कन्हैया, कृष्ण-मुरारी, केशव, नृत्यगोपाल |
वासुदेव, हृषीकेश, जनार्दन, हरि, गिरिधरगोपाल |
जगन्नाथ, श्रीनाथ, द्वारिकानाथ, जगत-प्रतिपाल |
देवकीसुत,रणछोड़ जी,गोविन्द,अच्युत,यशुमतिलाल |
वर्णन-क्षमता कहाँ 'श्याम की,
राधानंद, नंदलाल |
माखनचोर, श्याम, योगेश्वर, अब काटो भव जाल ||
बाजै रे पग घूंघर बाजै रे ।
ठुमुकि ठुमुकि पग नचहि कन्हैया, सब जग नाचै रे ।
जसुमति अंगना कान्हा नाचै, तोतरि बोलन गावै ।
तीन लोक में गूंजे यह धुनि, अनहद तान गुंजावै ।
कण कण सरसे, पत्ता पत्ता, हर प्राणी
हरषाये |
कैसे न दौड़ी आयं गोपियाँ घुँघरू चित्त चुराए |
तारी दे दे लगीं नचावन, पायलिया छनकैं |
ढफ ढफली खड़ताल मधुर-स्वर,कर कंकण खनकें |
गोल बनाए गोपी नाचें,
बीच नचें नंदलाल |
सुर दुर्लभ लीला आनंद मन जसुमति होय निहाल |
कान्हा नाचे ठुम्मक ठुम्मक तीनों लोक नचावै रे |
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