....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
इस स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर यदि हम स्वयं के
द्वारा सुविचारित उत्पादित नवीनता पूर्ण गति को अपनाते
हुए सोद्देश्य कर्म के कृतित्व का उद्देश्य लें
तो अवश्य अच्छे दिन आ सकते हैं|
श्याम स्मृति......जीवन,गति,नवीनता..अच्छे-दिन..... ..स्वाधीनता
दिवस.....
जीवन का
मूल लक्षण क्या है ? गति.....चलते रहना, .. गति का एक रूप अस्थिरता भी
है, जो निरुद्देश्य, दिशाहीन गति है | सोद्देश्य व निश्चित दिशा में गतिशीलता या
गमन ही गति है, यही चलना है, प्रगति है| तभी तो शास्त्रकार ने कहा..”...चरैवैति
चरैवेति “....टेगोर ने कहा ‘तबै तुमि एकला चलो रे ‘ .....अगीतकार डा
रंगनाथ मिश्र सत्य ने कहा...
चलना ही प्रगति हमारी है
चलना ही नियति हमारी है |
सोद्देश्य जीवन गति ही कर्म व कृष्ण का सिद्धांत है | सोद्देश्य कर्म ही मानव जीवन है
जीवन की नियति है, सुनिश्चित पथ है | जैसा ईशोपनिषद कहती है..
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतम समा|
एवंत्वयि नान्यथेतो S स्ति न कर्म लिप्यते नरे ||'
यह कर्ममयता युत गति ही नवीनता की ओर प्रयाण है| इसी
पथ पर चलकर ..”...चरैवैति चरैवेति
“....भारतीयता का मूल मन्त्र बना ,जिसके कारण वह विश्ववारा संस्कृति का अधीक्षक
बना |
आज हम भारतवासी क्यों अगति के शिकार हैं, अकर्मण्यता में लिप्त हैं | नयी संस्कृति, नवीनता,
नवीन पथ, नए रास्तों की तलाश, नयी खोज की आकांक्षा व कृतित्व से विरत हैं| यही
समस्त द्वेष-द्वंद्वों व अपराधों की जननी है |
नवीनता ग्रहण नहीं की जाती ..वह नक़ल होती है ..अगति, निरुद्देश्य गति, स्थिरता | नवीनता स्वयं के द्वारा विचारित, रचित, उत्पादित होती है | स्व-विचार, स्व-भाव रत, स्व-संस्कृति रत –
स्व-उपादान, स्व-संस्थापनाएं- स्थापनाएं ...स्व-संस्कृति के पुरा स्वरुप से नवीन
के समन्वय से स्थापित मान्यताए नवीनता होती हैं |
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