....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
हे माँ ! तेरे दर हम आये |
जनम जनम के पाप पुरातन, माँ के दर्श नसाए |
लाल चुनरिया ओढ़ के माता, तेरा रूप सुहाए |
जब जब बढी असुरता जग में माँ तू उसे मिटाए |
अनति अनीति अधर्म असुरता खप्पर रखे जलाए |
अधम अधर्मी अत्याचारी, असि की धार समाये |
आदि-शक्ति लीला पद बंदे, श्याम्’ सहज सुख पाए ||
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