....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
क्या हम जूनियर कक्षाओं के बच्चों से पूछते हैं कि हमें कहाँ व किस विभाग में नौकरी करनी चाहिए
क्या हम जूनियर कक्षाओं के बच्चों से पूछते हैं कि हमें कहाँ व किस विभाग में नौकरी करनी चाहिए
क्या हम जूनियर कक्षाओं के
बच्चों
से
पूछते हैं कि हमें कहाँ व किस
विभाग में नौकरी करनी चाहिए, केला या सेव खाना चाहिए , किस स्त्री/पुरुष से मित्रता करनी चाहिए … दिल्ली में या लखनऊ/बंगलौर में रहना चाहिए ?? यदि नहीं …तो आखिर शिक्षा जैसे दूरगामी प्रभाव वाले महत्वपूर्ण विषय पर ऐसे मूर्खतापूर्ण सर्वे का क्या महत्त्व ….यदि माता-पिता ही यह जानते कि कौन सी भाषा व
किस माध्यम से पढ़ाना चाहिए ..तो विद्वान् शिक्षाशास्त्री , समाजशास्त्री, नीति-निर्धारक , शासन-प्रशासन , राज्य की क्या आवश्यकता है |
किसी ने अपने ऊपर चित्रित आलेख -language of gods needs revival but
not to made compulsory ….में सही तो लिखा है की सारे संस्कृति विद्वान् विदेशी हैं …..सच ही तो है यदि बचपन से ही संस्कृत नहीं पढाई जायेगी तो देश में
संस्कृत विद्वान् क्यों उत्पन्न होंगे …अंग्रेज़ी /योरोपीय भाषाएँ पढ़ाने पर अंग्रेज़ी-जर्मन-फ्रेंच विद्वान् ही उत्पन्न होंगे जैसा आज होरहा है ….क्या हम मूर्खता की सारी हदें पार नहीं कर रहे …….हमें सोचना चाहिए ….|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें