....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
अपने शहर में...
अज़नबी आज अपने शहर में हूँ मैं,
वे सभी संगी साथी कहीं खोगये |
कौन पगध्वनि मुझे खींच लाई यहाँ,
हम कदम थे वो सब अज़नबी होगये |
अज़नबी आज अपने शहर में हूँ मैं
अपने शहर में...
अज़नबी आज अपने शहर में हूँ मैं,
वे सभी संगी साथी कहीं खोगये |
कौन पगध्वनि मुझे खींच लाई यहाँ,
हम कदम थे वो सब अज़नबी होगये |
अजनबी सा शहर, अजनबी राहें सब,
राह के सब निशाँ जाने कब खोगये |
राह चलते मुलाकातें होती जहां,
मोड़ गलियों के सब अजनबी होगये |
साथ फुटपाथ के पुष्प की क्यारियाँ,
द्रुमदलों की सुहानी वो छाया कहाँ |
दौड़ इक्के व ताँगों की सरपट न अब,
राह के सिकता कण अजनबी होगये |
भोर की शांत बेला में बहती हुई,
ठंडी मधुरिम सुगन्धित पवन अब कहाँ |
है प्रदूषित फिजां धुंआ डीज़ल से अब,
सारे जल थल हवा अजनबी होगये |
शाम होते छतों की वो रंगीनियाँ,
सिलसिले बातों के, न्यारे किस्से कहाँ |
राह के सब निशाँ जाने कब खोगये |
राह चलते मुलाकातें होती जहां,
मोड़ गलियों के सब अजनबी होगये |
साथ फुटपाथ के पुष्प की क्यारियाँ,
द्रुमदलों की सुहानी वो छाया कहाँ |
दौड़ इक्के व ताँगों की सरपट न अब,
राह के सिकता कण अजनबी होगये |
भोर की शांत बेला में बहती हुई,
ठंडी मधुरिम सुगन्धित पवन अब कहाँ |
है प्रदूषित फिजां धुंआ डीज़ल से अब,
सारे जल थल हवा अजनबी होगये |
शाम होते छतों की वो रंगीनियाँ,
सिलसिले बातों के, न्यारे किस्से कहाँ |
दौड़ते लोग सडकों पर दिखते सदा,
रिश्ते नाते सभी अजनबी होगये |
वो यमुना का तट और बहकती हवा,
वो बहाने मुलाकातों के अब कहाँ |
चाँद की रोशनी में वो अठखेलियाँ ,
मस्तियों के वो मंज़र कहाँ खोगये |
हर तरफ धार उन्नति की है बह रही,
और प्रदूषित नदी आँख भर कह रही |
श्याम क्या ढूँढता इन किनारों पै अब ,
मेले ठेले सभी अजनबी होगये ||
रिश्ते नाते सभी अजनबी होगये |
वो यमुना का तट और बहकती हवा,
वो बहाने मुलाकातों के अब कहाँ |
चाँद की रोशनी में वो अठखेलियाँ ,
मस्तियों के वो मंज़र कहाँ खोगये |
हर तरफ धार उन्नति की है बह रही,
और प्रदूषित नदी आँख भर कह रही |
श्याम क्या ढूँढता इन किनारों पै अब ,
मेले ठेले सभी अजनबी होगये ||
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