....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
मातृ दिवस पर -----माँ महात्म्य ....
माँ वंदना
माँ लिखती तो सब कुछ तुम हो,
नाम मुझे ही दे देती हो |
आप लिखाती लेकिन जग को,
लिखा श्याम ने कह देती हो |
माँ वंदना
माँ लिखती तो सब कुछ तुम हो,
नाम मुझे ही दे देती हो |
आप लिखाती लेकिन जग को,
लिखा श्याम ने कह देती हो |
अंतस में जो भाव उठे हैं,
सब कुछ माँ तेरी संरचना |
किन्तु जगत को तुमने बताया,
यह कवि के भावों की रचना |
तेरे नर्तन से रचना में,
अलंकर रस छंद बरसते |
कहला देती जग से, कवि के-
अंतस में रस छंद सरसते |
हाथ पकड़कर माँ लिखवाया,
अक्षर अक्षर शब्द शब्द को |
शब्दों का भण्डार बताया,
माँ तुमने मुझसे निशब्द को |
मातु शारदे! वीणा पाणी !
सरस्वती, भारति, कल्याणी!
मतिदा माँ कलहंस विराजनि,
ह्रदय बसें वाणी ब्रह्माणी |
हो मयूर सा विविध रंग के,
छंद, भाव रस युत यह तन मन |
गतिमय नीर औ क्षीर विवेकी,
हंस बने माता मेरा मन |
लिखदो माँ वर रूपी मसि से,
अपनी कृपा-भक्ति इस मन में |
जब जब सुमिरूँ माँ बस जाओ,
कागज़ कलम रूप धर मन में |
ज्ञान तुम्हीं भरती रचना में,
पर अज्ञानी श्याम हे माता !
तेरी कृपा-भक्ति के कारण,
बस कवि की संज्ञा पा जाता ||
माँ -महात्म्य....
जितने भी पदनाम सात्विक, उनके पीछे मा होता है |
चाहे धर्मात्मा, महात्मा, आत्मा हो अथवा परमात्मा |
जो महान सत्कार्य जगत के, उनके पीछे माँ होती है |
चाहे हो वह माँ कौशल्या, जीजाबाई या जसुमति माँ |
पूर्ण शब्द माँ ,पूर्ण ग्रन्थ माँ, शिशु वाणी का प्रथम शब्द माँ |
जीवन की हर एक सफलता, की पहली सीढी होती माँ |
माँ अनुपम है वह असीम है, क्षमा दया श्रृद्धा का सागर |
कभी नहीं रीती होपाती, माँ की ममता रूपी गागर |
माँ मानव की प्रथम गुरू है,सभी सृजन का मूलतंत्र माँ |
विस्मृत ब्रह्मा की स्फुरणा, वाणी रूपी मूलमन्त्र माँ |
सीमित तुच्छ बुद्धि यह कैसे, कर पाए माँ का गुणगान |
श्याम करें पद वंदन, माँ ही करती वाणी बुद्धि प्रदान ||
सब कुछ माँ तेरी संरचना |
किन्तु जगत को तुमने बताया,
यह कवि के भावों की रचना |
तेरे नर्तन से रचना में,
अलंकर रस छंद बरसते |
कहला देती जग से, कवि के-
अंतस में रस छंद सरसते |
हाथ पकड़कर माँ लिखवाया,
अक्षर अक्षर शब्द शब्द को |
शब्दों का भण्डार बताया,
माँ तुमने मुझसे निशब्द को |
मातु शारदे! वीणा पाणी !
सरस्वती, भारति, कल्याणी!
मतिदा माँ कलहंस विराजनि,
ह्रदय बसें वाणी ब्रह्माणी |
हो मयूर सा विविध रंग के,
छंद, भाव रस युत यह तन मन |
गतिमय नीर औ क्षीर विवेकी,
हंस बने माता मेरा मन |
लिखदो माँ वर रूपी मसि से,
अपनी कृपा-भक्ति इस मन में |
जब जब सुमिरूँ माँ बस जाओ,
कागज़ कलम रूप धर मन में |
ज्ञान तुम्हीं भरती रचना में,
पर अज्ञानी श्याम हे माता !
तेरी कृपा-भक्ति के कारण,
बस कवि की संज्ञा पा जाता ||
माँ -महात्म्य....
जितने भी पदनाम सात्विक, उनके पीछे मा होता है |
चाहे धर्मात्मा, महात्मा, आत्मा हो अथवा परमात्मा |
जो महान सत्कार्य जगत के, उनके पीछे माँ होती है |
चाहे हो वह माँ कौशल्या, जीजाबाई या जसुमति माँ |
पूर्ण शब्द माँ ,पूर्ण ग्रन्थ माँ, शिशु वाणी का प्रथम शब्द माँ |
जीवन की हर एक सफलता, की पहली सीढी होती माँ |
माँ अनुपम है वह असीम है, क्षमा दया श्रृद्धा का सागर |
कभी नहीं रीती होपाती, माँ की ममता रूपी गागर |
माँ मानव की प्रथम गुरू है,सभी सृजन का मूलतंत्र माँ |
विस्मृत ब्रह्मा की स्फुरणा, वाणी रूपी मूलमन्त्र माँ |
सीमित तुच्छ बुद्धि यह कैसे, कर पाए माँ का गुणगान |
श्याम करें पद वंदन, माँ ही करती वाणी बुद्धि प्रदान ||
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