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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

श्याम स्मृति---काव्य -- मानवीय सृजन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण – डा श्याम गुप्त..

                    ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

-----श्याम स्मृति-१२६. ---
*****काव्य -- मानवीय सृजन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण – ***
-------- काव्य मानव-मन की संवेदनाओं का बौद्धिक सम्प्रेषण है--मानवीय सृजन में सर्वाधिक कठिन व रहस्यपूर्ण ; क्योंकि काव्य अंतःकरण के अभी अवयवों ---चित्त (स्मृति व धारणा ), मन ( संकल्प ), बुद्धि ( मूल्यांकन ), अहं ( आत्मबोध ) व स्वत्व (अनुभव व भाव ) आदि सभी के सामंजस्य से उत्पन्न होता है | तभी वह युगांतरकारी, युगसत्य, जन सम्प्रेषणीय, विराट-सत्याग्रही, बौद्धिक विकासकारी व सामाजिक चेतना का पुनुरुद्धारक हो पाता है |
---------काव्य--- इतिहास, दर्शन या विज्ञान के भांति कोरा कटु यथार्थ न होकर मूलरूप से वास्तविक व्यवहार जगत के अनुसार सत्यं, शिवं, सुन्दरं होता है, तभी उसका कथ्य युगानुरूप के साथ सार्वकालिक सत्य भी होता है|
---------साहित्यकार का दायित्व- नवीन युग-बोध को सही दिशा देना होता है तभी उसकी रचनाएँ कालजयी हो पाती हैं| आधुनिक व सामयिक साहित्य रचना के साथ-साथ ही सनातन व एतिहासिक विषयों पर पुनः-रचनाओं द्वारा समाज के दर्पण पर जमी धूलि को समय-समय साफ़ करते रहने से समयानुकूल प्रतिबिम्ब नए-नए भाव-रूपों में दृश्यमान होते हैं एवं प्रगति की भूमिका बनते हैं|



 

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