....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
२.
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१.
***गज़लोपनिषद*****
एक हाथ में गीता हो और एक में त्रिशूल |
यह कर्म-धर्म ही सनातन नियम है अनुकूल |
१.
***गज़लोपनिषद*****
एक हाथ में गीता हो और एक में त्रिशूल |
यह कर्म-धर्म ही सनातन नियम है अनुकूल |
संभूति च असम्भूति च यस्तदवेदोभय सह ,
सार और असार संग संग नहीं कुछ प्रतिकूल |
ज्ञान व संसार- माया, साथ साथ स्वीकारें ,
यही जीवन व्यवहार है संस्कृति का मूल |
पढ़ें लिखें धन कमायें ,परमार्थ हित साथ हो,
ज्ञान दर्शन धर्म श्रृद्धा के खिलाएं फूल |
किसी के भी धन व स्वत्व का नहीं करें हरण ,
चंचला कब हुई किसकी , जाएँ नहीं भूल |
यही सत जीवन का पथ, मुक्ति, ईश्वर प्राप्ति ‘श्याम,
जीव ! आनंद परम आनंद के हिंडोले झूल ||
सार और असार संग संग नहीं कुछ प्रतिकूल |
ज्ञान व संसार- माया, साथ साथ स्वीकारें ,
यही जीवन व्यवहार है संस्कृति का मूल |
पढ़ें लिखें धन कमायें ,परमार्थ हित साथ हो,
ज्ञान दर्शन धर्म श्रृद्धा के खिलाएं फूल |
किसी के भी धन व स्वत्व का नहीं करें हरण ,
चंचला कब हुई किसकी , जाएँ नहीं भूल |
यही सत जीवन का पथ, मुक्ति, ईश्वर प्राप्ति ‘श्याम,
जीव ! आनंद परम आनंद के हिंडोले झूल ||
२.
तटबंध होना चाहिये.........
साहित्य सत्यं शिवं सुन्दर भाव होना चहिये ।
साहित्य शुचि शुभ ग्यान पारावार होना चाहिये ।
समाचारों के लिये अखबार छपते रोज़ ही,
साहित्य में सरोकार-समाधान होना चाहिये।
आज हम उतरे हैं इस सागर में कहने को यही,
साहित्य हो या कोई सागर गहन होना चाहिये ।
साहित्य सत्यं शिवं सुन्दर भाव होना चहिये ।
साहित्य शुचि शुभ ग्यान पारावार होना चाहिये ।
समाचारों के लिये अखबार छपते रोज़ ही,
साहित्य में सरोकार-समाधान होना चाहिये।
आज हम उतरे हैं इस सागर में कहने को यही,
साहित्य हो या कोई सागर गहन होना चाहिये ।
डूब कर उतरा
सके जन जन व मन-मानस जहां,
भाव सार्थक, अर्थ भी ऋजु -पुष्ट होना चाहिये।
चित्त भी हर्षित रहे, नव-प्रगति भाव रहें यथा,
कला सौन्दर्य भी सुरुचि शुचि सुष्ठु होना चाहिये।
क्लिष्ट शब्दों से सजी, दूरस्थ भाव न अर्थ हों,
कूट भाव न हों, सुलभ संप्रेष्य होना चाहिये ।
ललित भाषा, ललित कथ्य, न सत्य-तथ्य परे रहे,
व्याकरण, शुचि-शुद्ध,सौख्य-समर्थ होना चाहिये ।
श्याम , मतलब सिर्फ़ होना शुद्धता वादी नहीं,
बहती दरिया रहे, पर तटबंध होना चाहिये ॥
चित्त भी हर्षित रहे, नव-प्रगति भाव रहें यथा,
कला सौन्दर्य भी सुरुचि शुचि सुष्ठु होना चाहिये।
क्लिष्ट शब्दों से सजी, दूरस्थ भाव न अर्थ हों,
कूट भाव न हों, सुलभ संप्रेष्य होना चाहिये ।
ललित भाषा, ललित कथ्य, न सत्य-तथ्य परे रहे,
व्याकरण, शुचि-शुद्ध,सौख्य-समर्थ होना चाहिये ।
श्याम , मतलब सिर्फ़ होना शुद्धता वादी नहीं,
बहती दरिया रहे, पर तटबंध होना चाहिये ॥
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