....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
३० वर्ण की दो घनाक्षरी-----सूर घनाक्षरी...व श्याम-घनाक्षरी.......
\\
१. श्याम-घनाक्षरी, ...वर्ण- १६-१४ ..८ ८, ७ ७ पर यति, अंत में तीन गुरु (sss मगण)--
\
बहु भांति पुष्प खिलें, कुञ्ज क्यारी उपवन,
रंग-विरंगी ओढे, धरन रजाई है |
केसर अबीर रोली, कुंकुंम, मेहंदी रंग,
घोल के कटोरों में, भूमि हरषाई है |
फैलि रहीं चहुँ ओर, लता मनमानी किये,
द्रुम चढीं शर्मायं, मन मुसुकाई हैं |
तिल मूंग बादाम के, लड्डू घर घर बनें ,
गज़क मंगोड़ों की, बहार सी छाई है ||
\
३० वर्ण की दो घनाक्षरी-----सूर घनाक्षरी...व श्याम-घनाक्षरी.......
\\
१. श्याम-घनाक्षरी, ...वर्ण- १६-१४ ..८ ८, ७ ७ पर यति, अंत में तीन गुरु (sss मगण)--
\
बहु भांति पुष्प खिलें, कुञ्ज क्यारी उपवन,
रंग-विरंगी ओढे, धरन रजाई है |
केसर अबीर रोली, कुंकुंम, मेहंदी रंग,
घोल के कटोरों में, भूमि हरषाई है |
फैलि रहीं चहुँ ओर, लता मनमानी किये,
द्रुम चढीं शर्मायं, मन मुसुकाई हैं |
तिल मूंग बादाम के, लड्डू घर घर बनें ,
गज़क मंगोड़ों की, बहार सी छाई है ||
\
२.सूर घनाक्षरी --३० वर्ण, चरणान्त लघु या गुरु, ८ ८, ८ ६ पर यति – ISS यगण)
\
थर थर थर थर, कांपें सब नारी नर,
आई फिर शीत ऋतु, सखि वो सुजानी |
सिहरि सिहरि उड़े, जियरा पखेरू सखि,
उर मांहि उमंगाये, पीर वो पुरानी |
बाल वृद्ध नारी नर, धूप बैठे तापि रहे,
धूप भी है कुछ खोई, सोई अलसानी |
शीत की लहर तीर, भांति तन बेधि रही,
मन उठै प्रीति की वो, लहर अजानी ||
\
थर थर थर थर, कांपें सब नारी नर,
आई फिर शीत ऋतु, सखि वो सुजानी |
सिहरि सिहरि उड़े, जियरा पखेरू सखि,
उर मांहि उमंगाये, पीर वो पुरानी |
बाल वृद्ध नारी नर, धूप बैठे तापि रहे,
धूप भी है कुछ खोई, सोई अलसानी |
शीत की लहर तीर, भांति तन बेधि रही,
मन उठै प्रीति की वो, लहर अजानी ||
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें