....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष------
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श्रीकृष्ण--त्रिगुणात्मक प्रकृति से प्रकट होती चेतना सत्ता---
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श्रीकृष्ण आत्मतत्व के मूर्तिमान रूप हैं। मनुष्य में इस चेतन तत्व का पूर्ण विकास आत्मतत्व का जागरण है। जीवन त्रिगुणात्मक प्रकृति सत रज व तम से उद्भूत और विकसित होता है प्रकृति का तमस तत्व चेतन-तत्व के विकास को रोकने का प्रयास करता है |
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-----तीन माताएं-----
त्रिगुणात्मक प्रकृति के रूप में श्रीकृष्ण की तीन माताएँ हैं।
१.रजोगुणी प्रकृति रूपा देवकी जो जन्मदात्री माँ हैं व सांसारिक माया गृह में कैद हैं।
२.सतोगुणी प्रकृति रूपा माँ यशोदा हैं, जिनके वात्सल्य -प्रेम रस को पीकर श्रीकृष्ण बड़े होते हैं।
३.इनके विपरीत एक घोर तमस रूपा प्रकृति भी शिशु-भक्षक सर्पिणी के समान पूतना माँ है, जिसे आत्मतत्व का प्रस्फुटित अंकुरण नहीं सुहाता और वह वात्सल्य का अमृत पिलाने के स्थान पर विषपान कराती है।
---------संदेश है कि प्रकृति का तमस तत्व चेतन-तत्व के विकास को रोकने में असमर्थ है।
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------गोकुल -----
शब्द का अर्थ इंद्रियाँ भी हैं, गोकुल का अर्थ है हमारी पंचेद्रियों का संसार और
------- वृन्दावन का अर्थ है वृन्द जन जन की वाटिका, जन जन का मन और
------- तुलसीवन अर्थात मन का उच्च गतिमय क्षेत्र तुर, तुरय, तुरंत तुरस, तुलसी |
-----इन्हीं में पूतना वध, शकट भंजन और तृणावर्त वध का तथा वृंदावन में बकासुर, अधासुर और धेनुकासुर आदि अनेक राक्षसों के हनन का वर्णन है जो मानव मन की अतीन्द्रिय क्षमता का उपाख्यान रूप है |
----- गोवर्धन धारण, गो अर्थात इंद्रियों का वर्धन - पालन पोषण आदि आर्थिक, नीति-परक और राजनीतिक व्याख्याएं हैं। आध्यात्मिक संकेत है कि इंद्रियों में क्रियाशील प्राण-शक्ति के स्रोत परमेश्वर पर हमारी दृष्टि होना चाहिए।
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----- रासलीला----
इसी प्रकार गोपियों के साथ रासलीला के वर्णन में मन की वृत्तियां ही गोपिकाओं के रूप में मूर्तिमान हुई हैं और प्रत्येक वृत्ति के रासलीला या रस-नृत्य के रूप में सराबोर होने का चित्रण है। इससे भी उच्च अवस्था का प्रेम व विरह का वर्णन महारास है | यह द्वैत का एक आंतरिक आनंद में समाहित हो जाने की चित्रण है |
-------कंस -----
श्रीकृष्ण को किशोर वय होने पर कंस उन्हें मरवा डालने का एक बार फिर षड्यंत्र रचकर मथुरा बुलवाता है, किंतु श्रीकृष्ण उसको उसके महाबली साथियों सहित मार डालते हैं। कंस देहासक्ति का मूर्तिमान रूप है, जो संभावित मृत्यु से बचने के लिए कितने ही कुत्सित कर्म करता है।
---------मथुरा देहासक्ति से विक्षुब्ध मन है ।
----द्वारिका-----
द्वारिका शब्द में द्वार का अर्थ है साधन, उपाय या प्रवेश मार्ग। समुद्र व्यक्तित्व के गहरे तल- आत्म क्षेत्र को इंगित करता है। अतः आत्म क्षेत्र का प्रवेश द्वार है द्वारिका।
-------कंस वध करने के उपरांत द्वारिका में राज्य स्थापना करने का अर्थ है कि आत्मभाव में प्रवेश के पूर्व देहासक्ति की समाप्ति आवश्यक है। इस क्षेत्र में चेतना का प्रवेश होने पर जीवन जीने का जैसा स्वरूप होगा, उसका निरूपण द्वारिका पर श्रीकृष्ण राज्य के रूप में किया गया है। इस क्षेत्र का परिचय महाभारत में श्रीकृष्ण के लोकहितार्थ और धर्मस्थापनार्थ किए गए कार्यों द्वारा तथा गीता के अंतर्गत उनकी वाणी द्वारा किया गया है।
------- व्यक्ति भी संकल्प करे तो उसकी चेतना भी कृष्ण की भांति विकसित हो सकती है।
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-------- श्री अर्थात राधा, आदिशक्ति, प्रकृति से सदा सर्वदा सायुज्य श्रीकृष्ण जिनका नाम है, गोकुल जिनका धाम है ऐसे पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण को बारम्बार प्रणाम |
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श्रीकृष्ण--त्रिगुणात्मक प्रकृति से प्रकट होती चेतना सत्ता---
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श्रीकृष्ण आत्मतत्व के मूर्तिमान रूप हैं। मनुष्य में इस चेतन तत्व का पूर्ण विकास आत्मतत्व का जागरण है। जीवन त्रिगुणात्मक प्रकृति सत रज व तम से उद्भूत और विकसित होता है प्रकृति का तमस तत्व चेतन-तत्व के विकास को रोकने का प्रयास करता है |
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-----तीन माताएं-----
त्रिगुणात्मक प्रकृति के रूप में श्रीकृष्ण की तीन माताएँ हैं।
१.रजोगुणी प्रकृति रूपा देवकी जो जन्मदात्री माँ हैं व सांसारिक माया गृह में कैद हैं।
२.सतोगुणी प्रकृति रूपा माँ यशोदा हैं, जिनके वात्सल्य -प्रेम रस को पीकर श्रीकृष्ण बड़े होते हैं।
३.इनके विपरीत एक घोर तमस रूपा प्रकृति भी शिशु-भक्षक सर्पिणी के समान पूतना माँ है, जिसे आत्मतत्व का प्रस्फुटित अंकुरण नहीं सुहाता और वह वात्सल्य का अमृत पिलाने के स्थान पर विषपान कराती है।
---------संदेश है कि प्रकृति का तमस तत्व चेतन-तत्व के विकास को रोकने में असमर्थ है।
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------गोकुल -----
शब्द का अर्थ इंद्रियाँ भी हैं, गोकुल का अर्थ है हमारी पंचेद्रियों का संसार और
------- वृन्दावन का अर्थ है वृन्द जन जन की वाटिका, जन जन का मन और
------- तुलसीवन अर्थात मन का उच्च गतिमय क्षेत्र तुर, तुरय, तुरंत तुरस, तुलसी |
-----इन्हीं में पूतना वध, शकट भंजन और तृणावर्त वध का तथा वृंदावन में बकासुर, अधासुर और धेनुकासुर आदि अनेक राक्षसों के हनन का वर्णन है जो मानव मन की अतीन्द्रिय क्षमता का उपाख्यान रूप है |
----- गोवर्धन धारण, गो अर्थात इंद्रियों का वर्धन - पालन पोषण आदि आर्थिक, नीति-परक और राजनीतिक व्याख्याएं हैं। आध्यात्मिक संकेत है कि इंद्रियों में क्रियाशील प्राण-शक्ति के स्रोत परमेश्वर पर हमारी दृष्टि होना चाहिए।
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----- रासलीला----
इसी प्रकार गोपियों के साथ रासलीला के वर्णन में मन की वृत्तियां ही गोपिकाओं के रूप में मूर्तिमान हुई हैं और प्रत्येक वृत्ति के रासलीला या रस-नृत्य के रूप में सराबोर होने का चित्रण है। इससे भी उच्च अवस्था का प्रेम व विरह का वर्णन महारास है | यह द्वैत का एक आंतरिक आनंद में समाहित हो जाने की चित्रण है |
-------कंस -----
श्रीकृष्ण को किशोर वय होने पर कंस उन्हें मरवा डालने का एक बार फिर षड्यंत्र रचकर मथुरा बुलवाता है, किंतु श्रीकृष्ण उसको उसके महाबली साथियों सहित मार डालते हैं। कंस देहासक्ति का मूर्तिमान रूप है, जो संभावित मृत्यु से बचने के लिए कितने ही कुत्सित कर्म करता है।
---------मथुरा देहासक्ति से विक्षुब्ध मन है ।
----द्वारिका-----
द्वारिका शब्द में द्वार का अर्थ है साधन, उपाय या प्रवेश मार्ग। समुद्र व्यक्तित्व के गहरे तल- आत्म क्षेत्र को इंगित करता है। अतः आत्म क्षेत्र का प्रवेश द्वार है द्वारिका।
-------कंस वध करने के उपरांत द्वारिका में राज्य स्थापना करने का अर्थ है कि आत्मभाव में प्रवेश के पूर्व देहासक्ति की समाप्ति आवश्यक है। इस क्षेत्र में चेतना का प्रवेश होने पर जीवन जीने का जैसा स्वरूप होगा, उसका निरूपण द्वारिका पर श्रीकृष्ण राज्य के रूप में किया गया है। इस क्षेत्र का परिचय महाभारत में श्रीकृष्ण के लोकहितार्थ और धर्मस्थापनार्थ किए गए कार्यों द्वारा तथा गीता के अंतर्गत उनकी वाणी द्वारा किया गया है।
------- व्यक्ति भी संकल्प करे तो उसकी चेतना भी कृष्ण की भांति विकसित हो सकती है।
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-------- श्री अर्थात राधा, आदिशक्ति, प्रकृति से सदा सर्वदा सायुज्य श्रीकृष्ण जिनका नाम है, गोकुल जिनका धाम है ऐसे पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण को बारम्बार प्रणाम |
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