....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
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राष्ट्रीय पुस्तक मेले में दिनांक १९-८-१७ शनिवार को-लेखक से मिलिए कार्यक्रम..डा श्याम गुप्त
राष्ट्रीय पुस्तक मेले में दिनांक १९-८-१७---
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राष्ट्रीय पुस्तक मेले में दिनांक १९-८-१७ शनिवार को लेखक से मिलिए कार्यक्रम में पाठक साहित्यभूषण साहित्याचार्य श्री डा रंगनाथ मिश्र सत्य, महाकवि साहित्याचार्य डा श्याम गुप्त, एवं कविवर श्री त्रिवेनी प्रसाद दुबे मनीष से रूबरू हुए |
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राष्ट्रीय पुस्तक मेले में दिनांक १९-८-१७ शनिवार को लेखक से मिलिए कार्यक्रम में पाठक साहित्यभूषण साहित्याचार्य श्री डा रंगनाथ मिश्र सत्य, महाकवि साहित्याचार्य डा श्याम गुप्त, एवं कविवर श्री त्रिवेनी प्रसाद दुबे मनीष से रूबरू हुए |
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-------मेला संयोजक श्री देवराज अरोरा ने सम्मान स्वरुप लेखकों को स्मृति चिन्ह प्रदान किये
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नव सृजन संस्था के अध्यक्ष एवं दर्शनशास्त्री साहित्यकार डा योगेश गुप्ता के संचालन में तीनों लेखक ने अपना परिचय दिया एवं काव्य पाठ किया | प्रश्नोत्तर सत्र में विभिन्न कवियों व पाठकों द्वारा साहित्य से सम्बंधित प्रश्न पूछे गए |
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वरिष्ठ साहित्यकार समीक्षक श्री पार्थोसेन ने डा श्याम गुप्त से प्रश्न किया ‘आपने अगीत कविता विधा के छंद विधान ‘अगीत साहित्य दर्पण ‘ कई महत्वपूर्ण महाकाव्य अदि एवं विभिन्न नए नए छंद रचकर इस विधा को स्थायित्व प्रदान किया है, अब आगे इसे अधिक प्रसार हेतु क्या उपाय किये जारहे हैं|
------ उत्तर देते हुए डा श्यामगुप्त ने विस्तार पूर्वक बताया कि कविता व साहित्य गतिमान विधा है| अगीत-विधा आज कोइ नयी विधा नहीं है अपितु हिन्दी काव्य जगत की एक विशिष्ट विधा के रूप में अंतर्राष्ट्रीय छितिज पर स्थायी हो चुकी है | आगे भी अगीत पर विभिन्न कार्य होरहे हैं | ‘अगीत साहित्य दर्पण' से प्रेरणा लेकर नए नए लेखकों, कवियों द्वारा अगीत रचनाओं के साथ ही महाकाव्य व काव्य लिखे जारहे हैं | कुमार तरल के बुद्धकथा अगीत महाकाव्य के पश्चात कविवर श्री रामप्रकाश जी का अगीत महाकाव्य ‘मत्स्यावतार ‘ आरहा है और यह विधा प्रगति के पथ पर अग्रसर है |
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डा सुलतान शाकिर हाशमी के डा रंगनाथ मिश्र सत्य से प्रश्न की आपने साहित्य का एक लंबा दौर देखा है विभिन्न कालखंडों में कल और आज के साहित्य में आपने क्या भिन्नताएं, प्रगति या अवनति का अनुभव किया |
-----उत्तर में डा सत्य ने विस्तार से महाबीर प्रसाद द्विवेदी से लेकर हिन्दी के सभी चार कालों के साहित्य की विशेषताओं आवश्यकताओं का वर्णन करते हुए बताया कि इस आर्थिक व आपाधापी के भौतिकता के युग में साहित्य के क्षेत्र में गिरावट है एवं अब कविता चुटुकुले होगई है | फिर भी आज भी साहित्य का समयानुसार उचित सृजन होरहा है और मैं निराश नहीं हूँ | युवा साहित्यकार अपना दायित्व निर्वहन कर रहा है |
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श्री त्रिवेणी प्रसाद दुबे की कहानी दर्शन की पृष्ठभूमि पर एक प्रश्न के उत्तर में दुबे जी ने बताया कि एक दुर्घटना के परिणाम स्वरुप मृत्यु से समीपी आमना सामना होने पर इस कहानी का प्लाट बना |
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युवा कवि विशाल मिश्र के प्रश्न, क्या कविता करना कोई कार्य नहीं हैं, क्योंकि प्रायः यह पूछा जाता है कि क्या कर रहे हो, और कविता करते हैं के उत्तर पर पुनः और क्या कर रहे हैं का प्रश्न होता है |
----- उत्तर देते हुए डा श्याम गुप्त ने स्पष्ट किया की वस्तुतः कविता कर्म कोइ व्यवसाय नहीं है, वह सामाजिक सरोकार है | कवि को अपने सांसारिक कर्म छोड़कर केवल कविता को ही व्यवसाय नहीं बनाना चाहिए, समाज को माता-पिता को यह ध्यान रखना चाहिए | महाकवि कालिदास सेनापति का दायित्व निर्वहन करते थे, भूषण, जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद सभी अपना व्यवसाय, नौकरी आदि कर्म करते हुए ही काव्य-कर्म करते थे| आज के अर्थ-युग में इसे व्यवसाय की भांति लेने पर ही कविता का स्तर गिरा है |
-------मेला संयोजक श्री देवराज अरोरा ने सम्मान स्वरुप लेखकों को स्मृति चिन्ह प्रदान किये
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नव सृजन संस्था के अध्यक्ष एवं दर्शनशास्त्री साहित्यकार डा योगेश गुप्ता के संचालन में तीनों लेखक ने अपना परिचय दिया एवं काव्य पाठ किया | प्रश्नोत्तर सत्र में विभिन्न कवियों व पाठकों द्वारा साहित्य से सम्बंधित प्रश्न पूछे गए |
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वरिष्ठ साहित्यकार समीक्षक श्री पार्थोसेन ने डा श्याम गुप्त से प्रश्न किया ‘आपने अगीत कविता विधा के छंद विधान ‘अगीत साहित्य दर्पण ‘ कई महत्वपूर्ण महाकाव्य अदि एवं विभिन्न नए नए छंद रचकर इस विधा को स्थायित्व प्रदान किया है, अब आगे इसे अधिक प्रसार हेतु क्या उपाय किये जारहे हैं|
------ उत्तर देते हुए डा श्यामगुप्त ने विस्तार पूर्वक बताया कि कविता व साहित्य गतिमान विधा है| अगीत-विधा आज कोइ नयी विधा नहीं है अपितु हिन्दी काव्य जगत की एक विशिष्ट विधा के रूप में अंतर्राष्ट्रीय छितिज पर स्थायी हो चुकी है | आगे भी अगीत पर विभिन्न कार्य होरहे हैं | ‘अगीत साहित्य दर्पण' से प्रेरणा लेकर नए नए लेखकों, कवियों द्वारा अगीत रचनाओं के साथ ही महाकाव्य व काव्य लिखे जारहे हैं | कुमार तरल के बुद्धकथा अगीत महाकाव्य के पश्चात कविवर श्री रामप्रकाश जी का अगीत महाकाव्य ‘मत्स्यावतार ‘ आरहा है और यह विधा प्रगति के पथ पर अग्रसर है |
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डा सुलतान शाकिर हाशमी के डा रंगनाथ मिश्र सत्य से प्रश्न की आपने साहित्य का एक लंबा दौर देखा है विभिन्न कालखंडों में कल और आज के साहित्य में आपने क्या भिन्नताएं, प्रगति या अवनति का अनुभव किया |
-----उत्तर में डा सत्य ने विस्तार से महाबीर प्रसाद द्विवेदी से लेकर हिन्दी के सभी चार कालों के साहित्य की विशेषताओं आवश्यकताओं का वर्णन करते हुए बताया कि इस आर्थिक व आपाधापी के भौतिकता के युग में साहित्य के क्षेत्र में गिरावट है एवं अब कविता चुटुकुले होगई है | फिर भी आज भी साहित्य का समयानुसार उचित सृजन होरहा है और मैं निराश नहीं हूँ | युवा साहित्यकार अपना दायित्व निर्वहन कर रहा है |
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श्री त्रिवेणी प्रसाद दुबे की कहानी दर्शन की पृष्ठभूमि पर एक प्रश्न के उत्तर में दुबे जी ने बताया कि एक दुर्घटना के परिणाम स्वरुप मृत्यु से समीपी आमना सामना होने पर इस कहानी का प्लाट बना |
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युवा कवि विशाल मिश्र के प्रश्न, क्या कविता करना कोई कार्य नहीं हैं, क्योंकि प्रायः यह पूछा जाता है कि क्या कर रहे हो, और कविता करते हैं के उत्तर पर पुनः और क्या कर रहे हैं का प्रश्न होता है |
----- उत्तर देते हुए डा श्याम गुप्त ने स्पष्ट किया की वस्तुतः कविता कर्म कोइ व्यवसाय नहीं है, वह सामाजिक सरोकार है | कवि को अपने सांसारिक कर्म छोड़कर केवल कविता को ही व्यवसाय नहीं बनाना चाहिए, समाज को माता-पिता को यह ध्यान रखना चाहिए | महाकवि कालिदास सेनापति का दायित्व निर्वहन करते थे, भूषण, जयशंकर प्रसाद, मुंशी प्रेमचंद सभी अपना व्यवसाय, नौकरी आदि कर्म करते हुए ही काव्य-कर्म करते थे| आज के अर्थ-युग में इसे व्यवसाय की भांति लेने पर ही कविता का स्तर गिरा है |
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