....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ..
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चक्रतीर्थ – नैमिषारण्य---
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लखनऊ से लगभग ८० किमी दूर सीतापुर के निकट गोमती नदी के किनारे यह सुप्रसिद्ध पौराणिक तीर्थ है | कहा जाता है कि जब भी कोई धार्मिक समस्या उत्पन्न होती थी, उसके समाधान के लिए ऋषिगण यहाँ एकत्र होते थे। यह अरण्य प्रदेश मनु-शतरूपा एवं महर्षि दधीच की तपस्थली थी ( समीप ही मिस्रिख में ) एवं यहीं वृत्तासुर वध हेतु इंद्र का बज्र तैयार किया गया था | यहीं सर्वप्रथम अखिलविश्व धर्मसभा हुई थी जिसकी अध्यक्षता मुनि वेदव्यास ने की थी, जिसमें विश्व के सभी तीर्थ यहाँ एकत्र हुए थे |
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चक्रतीर्थ ब्रह्मा द्वारा धर्म-सभा हेतु स्थल निर्धारण के लिए अपना चक्र छोड़ा था जो यहाँ आकर रुका और पृथ्वी में समा गया | अतः यह स्थान धर्मसभा हेतु निश्चित हुआ एवं चक्रतीर्थ नाम प्रसिद्द हुआ |
-------यह वस्तुतः एक पातालतोड़ कुआं ( भूमिगत जल स्रोत—कुआं ) है जो बिना हिम-पर्वत जलस्रोत वाली नदी गोमती के विविध भूमिगत श्रोतों में से एक है |
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लगभग ८-९ वर्ष पहले यह स्थल वास्तव में ही रमणीक वातावरणमय अरण्य था | शीतल, शांतिप्रदायक वातावरण, समीप ही बहती हुई गोमती नदी, अक्षयवट की बनी हुई प्राकृतिक व्यासपीठ जहां से वेदव्यास ने अध्यक्षता की थी | सभी तीर्थों, ऋषियों की बैठक स्थलियां, मनु-शतरूपा का स्थल आदि प्राकृतिक अरण्य स्थल में ही बनी हुई थीं |
-------पैदल घूमकर अहसास होता था अरण्य का, एवं उस काल में कैसा रहा होगा इस भावना का | चक्रतीर्थ में भी शांत वातावरण, आराम से नहाइए, न कोइ पंडों आदि का चक्कर | घाट पर पौराणिक मंदिरों में १-२ पुजारी आदि रहते थे बस, सब कुछ शांत व सामान्य |
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आज पता नहीं क्यों, कैसे व किस की आज्ञा से पूरे चक्रतीर्थ में पंडों ने अपने अपने तख़्त सजा रखे हैं, गया, गंगा, बनारस आदि नदियों की भाँति या वकीलों के तख्तों की भांति, यजमान पर टूटते हुए पण्डे, दक्षिणा हेतु याचना करते धन्धेबाज़ पण्डे, जिन्हें यह भी नहीं ज्ञात की गोमती कहाँ से निकलती है |
---------एसा लगता है कि इस क्षेत्र के तमाम वासी अपने अपने खेती आदि के काम को छोड़कर कामचोरी नाम पण्डे के धंधे में लग गए हैं | मेरे विचार से इन सभी को यहाँ से भगाकर खेती के काम में लगा देना चाहिए |
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ललिता देवी मंदिर में प्रसाद रूप भीख माँगते हुए, झगड़ते हुए बच्चे | सारे क्षेत्र में तमाम मंदिर व अन्य बिल्डिंगें, होटल अदि खुल गए हैं, अरण्य जाने कहाँ गायब है, अक्षयवट व्यासपीठ का प्राकृतिक सौन्दर्य समाप्त करते हुए वहां मंदिर बना लिया गया है |
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शायद धर्मस्थल विकास के नाम पर नैमिषारण्य -अरण्य, आस्था, धर्म, इतिहास-पुराण, गौमती व चक्रतीर्थ गायब है तथा मंदिर, पैसा, चढ़ावा, प्रसाद, की दुकानें, होटल , धर्मशालाएं आदि सुविधा रूपी अनास्थाएं सज गयी हैं एवं अरण्य एक दिन कालोनी बन कर रह जायगा जो गोमती को और अधिक प्रदूषित करेंगी, अन्य तमान तीर्थ व धार्मिक स्थलों की भाँति |
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लखनऊ से लगभग ८० किमी दूर सीतापुर के निकट गोमती नदी के किनारे यह सुप्रसिद्ध पौराणिक तीर्थ है | कहा जाता है कि जब भी कोई धार्मिक समस्या उत्पन्न होती थी, उसके समाधान के लिए ऋषिगण यहाँ एकत्र होते थे। यह अरण्य प्रदेश मनु-शतरूपा एवं महर्षि दधीच की तपस्थली थी ( समीप ही मिस्रिख में ) एवं यहीं वृत्तासुर वध हेतु इंद्र का बज्र तैयार किया गया था | यहीं सर्वप्रथम अखिलविश्व धर्मसभा हुई थी जिसकी अध्यक्षता मुनि वेदव्यास ने की थी, जिसमें विश्व के सभी तीर्थ यहाँ एकत्र हुए थे |
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चक्रतीर्थ ब्रह्मा द्वारा धर्म-सभा हेतु स्थल निर्धारण के लिए अपना चक्र छोड़ा था जो यहाँ आकर रुका और पृथ्वी में समा गया | अतः यह स्थान धर्मसभा हेतु निश्चित हुआ एवं चक्रतीर्थ नाम प्रसिद्द हुआ |
-------यह वस्तुतः एक पातालतोड़ कुआं ( भूमिगत जल स्रोत—कुआं ) है जो बिना हिम-पर्वत जलस्रोत वाली नदी गोमती के विविध भूमिगत श्रोतों में से एक है |
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लगभग ८-९ वर्ष पहले यह स्थल वास्तव में ही रमणीक वातावरणमय अरण्य था | शीतल, शांतिप्रदायक वातावरण, समीप ही बहती हुई गोमती नदी, अक्षयवट की बनी हुई प्राकृतिक व्यासपीठ जहां से वेदव्यास ने अध्यक्षता की थी | सभी तीर्थों, ऋषियों की बैठक स्थलियां, मनु-शतरूपा का स्थल आदि प्राकृतिक अरण्य स्थल में ही बनी हुई थीं |
-------पैदल घूमकर अहसास होता था अरण्य का, एवं उस काल में कैसा रहा होगा इस भावना का | चक्रतीर्थ में भी शांत वातावरण, आराम से नहाइए, न कोइ पंडों आदि का चक्कर | घाट पर पौराणिक मंदिरों में १-२ पुजारी आदि रहते थे बस, सब कुछ शांत व सामान्य |
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आज पता नहीं क्यों, कैसे व किस की आज्ञा से पूरे चक्रतीर्थ में पंडों ने अपने अपने तख़्त सजा रखे हैं, गया, गंगा, बनारस आदि नदियों की भाँति या वकीलों के तख्तों की भांति, यजमान पर टूटते हुए पण्डे, दक्षिणा हेतु याचना करते धन्धेबाज़ पण्डे, जिन्हें यह भी नहीं ज्ञात की गोमती कहाँ से निकलती है |
---------एसा लगता है कि इस क्षेत्र के तमाम वासी अपने अपने खेती आदि के काम को छोड़कर कामचोरी नाम पण्डे के धंधे में लग गए हैं | मेरे विचार से इन सभी को यहाँ से भगाकर खेती के काम में लगा देना चाहिए |
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ललिता देवी मंदिर में प्रसाद रूप भीख माँगते हुए, झगड़ते हुए बच्चे | सारे क्षेत्र में तमाम मंदिर व अन्य बिल्डिंगें, होटल अदि खुल गए हैं, अरण्य जाने कहाँ गायब है, अक्षयवट व्यासपीठ का प्राकृतिक सौन्दर्य समाप्त करते हुए वहां मंदिर बना लिया गया है |
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शायद धर्मस्थल विकास के नाम पर नैमिषारण्य -अरण्य, आस्था, धर्म, इतिहास-पुराण, गौमती व चक्रतीर्थ गायब है तथा मंदिर, पैसा, चढ़ावा, प्रसाद, की दुकानें, होटल , धर्मशालाएं आदि सुविधा रूपी अनास्थाएं सज गयी हैं एवं अरण्य एक दिन कालोनी बन कर रह जायगा जो गोमती को और अधिक प्रदूषित करेंगी, अन्य तमान तीर्थ व धार्मिक स्थलों की भाँति |
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