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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 29 जून 2018

मेरी चारधाम यात्रा ----भाग दो ---- – बारकोट से यमुनोत्री ----.

....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


मेरी चारधाम यात्रा ----भाग दो ----
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तीसरे दिन – बारकोट से यमुनोत्री ----१९-५-१८...
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१९-५-१८ की तड़के सुबह ही बारकोट से यमुनोत्री के लिए प्रस्थान हुआ, जो वहां से जानकी चट्टी तक ३५ किमी है | हर्षिल घाटी या हरिप्रयाग की मनोरम वादियों व पर्वत श्रृंखलाओं से होते हुए जानकी चट्टी पहुंचे जो भारत का अंतिम गाँव है एवं चीन की सीमा के समीप है, २६५० मीटर ऊंचाई पर ऊंचे पर्वतों से घिरा---गर्म पानी के कुंडों व चश्मों के लिए विख्यात है|
-------यह बीफ गाँव में है इस स्थान का जानकी-सीता से कोइ सम्बन्ध नहीं है अपितु जानकी नाम की महिला द्वारा यहाँ यमुना तट पर एक धर्मशाला बनवाई गयी थी अतः यह गाँव जानकी चट्टी के नाम से विख्यात
हुआ |
-------यहाँ से ६ किमी संकरे चढ़ाई मार्ग द्वारा पैदल, खच्चरों, डांडी या पिट्ठू द्वारा यमुनोत्री तक जाया जाता है जो अत्यंत दुर्गम है | हमने यह मार्ग खच्चरों द्वारा तय किया |
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यमुनोत्री—मंदिर-----
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----उत्तरकाशी जिले में १०७९७ फीट ऊंचाई पर बसा हुआ है | जिसमें काले संगमरमर की यमुना देवी की मूर्ति स्थापित है | पौराणिक गाथा के अनुसार यह असित मुनी का निवास था। यह
------- यमुनोत्तरी हिमनद से 5 मील नीचे दो वेगवती जलधाराओं के मध्य एक कठोर शैल पर स्थित है। तलहटी में दो शिलाओं के बीच जहाँ गरम जल का स्रोत है, यह तप्त कुंड ब्रह्मकुण्ड या सूर्यकुण्ड का तापक्रम लगभग 195 डिग्री फारनहाइट है,जो कि गढ़वाल के सभी तप्तकुण्ड में सबसे अधिक गरम है।
------- इससे एक विशेष ध्वनि निकलती है,जिसे "ओम् ध्वनि"कहा जाता है। इस आलू व चावल पोटली में डालने पर पकजाते हैं |
------- वहीं पर एक संकरे स्थान में यमुनाजी का मन्दिर है। मंदिर के एक और यमुना नदी का प्रवाह है जिससे यमुना जल भरकर यात्री लेजाते हैं | वस्तुतः शीतोष्ण जल का मिलन स्थल ही यमुनोत्तरी है।
-------यमुना को सूर्यपुत्री, यम सहोदरा और गंगा-यमुना को वैमातृक बहने कहा गया |
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सूर्यकुण्ड के निकट दिव्यशिला है। जहाँ उष्ण जल नाली की सी ढलान लेकर निचले गौरीकुण्ड में जाता है,इस कुण्ड का निर्माण जमुनाबाई ने करवाया था,इसलिए इसे जमुनाबाई कुण्ड भी कहते है। इसे काफी लम्बा चौड़ा बनाया गया है,ताकि सूर्यकुण्ड का तप्तजल इसमें प्रसार पाकर कुछ ठण्डा हो जाय और यात्री स्नान कर सकें। गौरीकुण्ड के नीचे भी तप्तकुण्ड है।
-------यमुनोत्तरी से 4 मील ऊपर एक दुर्गम पहाड़ी पर सप्तर्षि कुण्ड की स्थिति बताई जाती है।विश्वास किया जाता है कि इस कुण्ड के किनारे सप्तॠषियों ने तप किया था।

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यमुनोत्री से यमुना का उद्गम यमुना नदी का स्रोत कालिंदी पर्वत मात्र एक किमी की दूरी पर है। यहां बंदरपूंछ चोटी के पश्चिमी अंत में फैले यमुनोत्री ग्लेशियर को देखना अत्यंत रोमांचक है। है। तीर्थ स्थल से एक किमी दूर यह स्थल 4421 मी. ऊँचाई पर स्थित है। दुर्गम चढ़ाई होने के कारण इस उद्गम स्थल पर जाना नहीं होपाता |

-------इसके शीर्ष पर बंदरपूंछ चोटी (६३५१ मी) गंगोत्री के सामने स्थित है। यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत बर्फ की जमी हुई एक झील और हिमनद (चंपासर ग्लेसियर) है जो समुद्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है। इस स्थान से लगभग 1 किमी आगे जाना संभव नहीं है क्योंकि यहां मार्ग अत्यधिक दुर्गम है। यही कारण है कि देवी का मंदिर पहाडी के तल पर स्थित है
-------- जब पाण्डव उत्तराखंड की तीर्थयात्रा में आए तो वे पहले यमुनोत्तरी, तब गंगोत्री फिर केदारनाथ-बद्रीनाथजी की ओर बढ़े थे तभी से उत्तराखंड की यात्रा वामावर्त की जाती है।
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------- यमुना मंदिर दर्शन यमुनोत्री से वापसी पुनः बारकोट होटल में रात्रिविश्राम १९-५-१८ |
-----------क्रमश --शेष आगे--भाग तीन----
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चित्र-७ अ व ब–हरसिल घाटी में भेड़ों का झुण्ड तथा खच्चरों द्वारा यमुनोत्री का ट्रेक ---
चित्र 8..–यमुनोत्री मंदिर व यमुना नदी ...
चित्र—९..यमुना माता मंदिर पर---
चित्र १०.-यमुनोत्री मंदिर पर सुष्माजी
चित्र-११ हर्षिल घाटी व भागीरथी
चित्र १२-बंदरपूंछ चोटी


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