....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
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गम्भीर बीमारियों से बचाती है धूप..----चिकित्सकों की राय---
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(मानव अपने लिए गड्ढे ढूंढ ही लेता है )
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(मानव अपने लिए गड्ढे ढूंढ ही लेता है )
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आज से ५०-६० वर्ष पहले भी धूप के महत्त्व को चिकित्सक लोग काफी रेखांकित
किया करते थे | विटामिन डी के लिए, हड्डियों की मज़बूती के लिए धूप की
अत्यावश्यकता पर खूब बातें होती थीं |
------- कारण था मूलतः भारतीय महिलाओं के घूंघट में, बंद घरों, कमरों में जो कि परम्परा व संस्कार रूप में जाने जाते थे तथा गरीबी व अधिकाँश आबादी के छोटे छोटे कम प्रकाश वाले घरों में रहने के कारण | अतः टीबी, रक्तअल्पता, गठिया, हड्डियों आदि की गंभीर बीमारियाँ भारतीय महिलाओं –पुरुषों में खूब होती थीं |
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विभिन्न प्रयत्नों से देश समाज उन्नत हुआ, महिलायें प्रगतिशील हुईं, घर से बाहर आने जाने लगीं, नौकरी आदि भी खूब करने लगीं, आर्थिक प्रगति हुई और लोग भी बड़े बड़े घरों में रहने लगे | टीबी, एनीमिया आदि रोग कम होने लगे |
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परन्तु आज भी चिकित्सकों की वही राय - गम्भीर बीमारियों से बचाती है धूप..---क्यों |
------कहते हैं मानव अपने सुख-अभिलाषा व विलासप्रियता में अपने लिए गड्ढे ढूंढ ही लेता है |
--------आज भी चिकित्सकों को यही राय देनी पड़ रही है क्योंकि उसने विकास के साथ बड़े बड़े भवन, ऊंची ऊंची इमारतें के साथ प्रशीतनकक्ष , एयरकंडीशंड कमरे, घर, आफिस, वाहन, दुकानें, बाजार, मौल बना लिए...अधिकाधिक कमाने के लिए दिन रात कार्य में लगे रहने हेतु स्वयं को दफ्तरों, कारखानों में कैद कर लिया और धूप व खुले आकाश में प्रकाश उसके लिए फिर एक प्रश्न चिन्ह बन गये |
अर्थात वैचारिक अर्थ में हम वहीं के वहीं हैं |
------- कारण था मूलतः भारतीय महिलाओं के घूंघट में, बंद घरों, कमरों में जो कि परम्परा व संस्कार रूप में जाने जाते थे तथा गरीबी व अधिकाँश आबादी के छोटे छोटे कम प्रकाश वाले घरों में रहने के कारण | अतः टीबी, रक्तअल्पता, गठिया, हड्डियों आदि की गंभीर बीमारियाँ भारतीय महिलाओं –पुरुषों में खूब होती थीं |
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विभिन्न प्रयत्नों से देश समाज उन्नत हुआ, महिलायें प्रगतिशील हुईं, घर से बाहर आने जाने लगीं, नौकरी आदि भी खूब करने लगीं, आर्थिक प्रगति हुई और लोग भी बड़े बड़े घरों में रहने लगे | टीबी, एनीमिया आदि रोग कम होने लगे |
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परन्तु आज भी चिकित्सकों की वही राय - गम्भीर बीमारियों से बचाती है धूप..---क्यों |
------कहते हैं मानव अपने सुख-अभिलाषा व विलासप्रियता में अपने लिए गड्ढे ढूंढ ही लेता है |
--------आज भी चिकित्सकों को यही राय देनी पड़ रही है क्योंकि उसने विकास के साथ बड़े बड़े भवन, ऊंची ऊंची इमारतें के साथ प्रशीतनकक्ष , एयरकंडीशंड कमरे, घर, आफिस, वाहन, दुकानें, बाजार, मौल बना लिए...अधिकाधिक कमाने के लिए दिन रात कार्य में लगे रहने हेतु स्वयं को दफ्तरों, कारखानों में कैद कर लिया और धूप व खुले आकाश में प्रकाश उसके लिए फिर एक प्रश्न चिन्ह बन गये |
अर्थात वैचारिक अर्थ में हम वहीं के वहीं हैं |
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