....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
                                   
 
 
किस्से श्याम के ----
किस्सा एक --- प्रेम से प्रथम परिचय
      “यार, बड़ी शोध कर रखी है प्रेम पर! कहानी भी लिखी जा सकती है..लिख डालो|” श्रीकांत मेरा महाकाव्य, प्रेमकाव्य-महाकाव्य पढ़कर हंसते हुए कहने लगा |  
       हाँ, सच कह रहे हो, लिखी हुई है,  मैंने भी हंसकर कहा, “लो आज खोल ही देते हैं उस फ़साने को |” इसी बात पर आज तुम्हें अपना ही प्रेम से प्रथम परिचय की मजेदार गाथा सुना ही देता हूँ | क्या याद करोगे | 
       अरे वाह ! क्या कहने |..श्रीकांत पालथी मार कर बैठ गया |
    प्रेम से मेरा प्रथम-परिचय जब हुआ जब मैं एक बालक था,कक्षा एक का छात्र मैं मुस्कुराकर कहने लगा| 
      “क्या,कक्षा एक का छात्र !! “  वेवकूफ बना रहे हो |पता  है कि आपका मिजाज़ लड़कपन से आशिकाना है ...पर कक्षा एक का छात्र..?
      ‘हाँ, ठीक सुना, अब वेवकूफ बनते हुए सुनते जाओ, टोको मत |’मैं कहता गया ,‘मेरा दाखिला मेरी बड़ी बहन के साथ कन्या-पाठशाला में ही कराया गया, जो स्वयं कक्षा ८ की छात्रा थी | एक बार जब में कक्षा से बाहर गया तो पायजामे का नाड़ा ही नहीं बाँध पा रहा था, न बहन का क्लास-रूम ही पता था | इसी क्षोभ में, मैं आंसू लिए हुए स्कूल के मुख्य द्वार की चौकी पर बैठा काफी देर तक सुबकता रहा |’
      मुझे अभी भी जहां तक स्मृति की गलियों में कदमताल है, याद है कि अचानक ही मेरी बड़ी बहन की सबसे सुन्दर सहेली (जो मुझे बाद में ज्ञात हुआ) वहाँ आई और पूछने लगी, ‘अरे छोटू! क्या हुआ?’ शर्म व झिझक से आरक्त-आनन मैं चुप रहा और कुछ भी नहीं बता पाया | उसने स्वयं ही समझते हुए मुस्कुराते हुए पायजामे की गाँठ बांधकर दिखाया कि ‘‘ऐसे बांधी जाती है” वो सुन्दर चेहरा, दैवीय छवि, मोहक मुस्कान व कोकिला-वाणी से मुग्ध मैं इतना हतप्रभ था कि रोना व क्षोभ भूलकर एकटक देखता ही रह गया और उसी दिन नाड़ा बांधना सीख गया |  
     मेरी बहन को जब यह घटना ज्ञात हुई तो उसने पूछा,’ फिर किसने बांधा था छोटू ?’ 
     तुम्हारी सबसे अच्छी और सुन्दर सहेली ने‘, मैंने जबाव दिया | जब उन सबको पता चला कि किसने नाड़ा बांधा था तो सब उसकी तरफ देख देख कर, मुंह दबा-दबा कर हंसने लगीं| वह सुधा सक्सेना थी उस समूह की सबसे सुन्दर लडकी |
     ‘अच्छा छोटू, तो वो तुम्हें अच्छी लगती है, पसंद है ’ सबने एक साथ पूछा |
     हाँ, मैंने सर हिलाते हुए कहा| और फिर सबका समवेत स्वर में ओहो....के साथ ठहाके से मैं स्वयं कुछ न समझते हुए सहम गया |
      ‘आज स्मृतियों में मुस्कुराते हुए मैं सोचता हूँ कि अवश्य ही सब सहेलियाँ इस बात पर काफी समय तक ठिठोली करती रही होंगीं | हाँ कृष्ण-जन्माष्टमी पर मेकेनाइज्ड हिंडोले उसी के घर में सजाये जाते थे जिनमें जेल के फाटक अपने आप खुलना, वासुदेव का कृष्ण को टोकरी में लेकर यमुना में जाना आदि होता था और मेरी खूब खातिरदारी हुआ करती थी |’
           ओहो ........श्रीकांत के मुख से अनायास ही निकला |

 
 












 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
