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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

किस्से श्याम के ---- किस्सा एक --- प्रेम से प्रथम परिचय----डा श्याम गुप्त

                                   ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


किस्से श्याम के ----


किस्सा एक --- प्रेम से प्रथम परिचय

      “यार, बड़ी शोध कर रखी है प्रेम पर! कहानी भी लिखी जा सकती है..लिख डालो|” श्रीकांत मेरा महाकाव्य, प्रेमकाव्य-महाकाव्य पढ़कर हंसते हुए कहने लगा

       हाँ, सच कह रहे हो, लिखी हुई है,  मैंने भी हंसकर कहा, लो आज खोल ही देते हैं उस फ़साने को |इसी बात पर आज तुम्हें अपना ही प्रेम से प्रथम परिचय की मजेदार गाथा सुना ही देता हूँ | क्या याद करोगे |

       अरे वाह ! क्या कहने |..श्रीकांत पालथी मार कर बैठ गया |

    प्रेम से मेरा प्रथम-परिचय जब हुआ जब मैं एक बालक था,कक्षा एक का छात्र मैं मुस्कुराकर कहने लगा|

      “क्या,कक्षा एक का छात्र !! “  वेवकूफ बना रहे हो |पता  है कि आपका मिजाज़ लड़कपन से आशिकाना है ...पर कक्षा एक का छात्र..?

      ‘हाँ, ठीक सुना, अब वेवकूफ बनते हुए सुनते जाओ, टोको मत |’मैं कहता गया ,‘मेरा दाखिला मेरी बड़ी बहन के साथ कन्या-पाठशाला में ही कराया गया, जो स्वयं कक्षा की छात्रा थी | एक बार जब में कक्षा से बाहर गया तो पायजामे का नाड़ा ही नहीं बाँध पा रहा था, बहन का क्लास-रूम ही पता था | इसी क्षोभ में, मैं आंसू लिए हुए स्कूल के मुख्य द्वार की चौकी पर बैठा काफी देर तक सुबकता रहा |’

      मुझे अभी भी जहां तक स्मृति की गलियों में कदमताल है, याद है कि अचानक ही मेरी बड़ी बहन की सबसे सुन्दर सहेली (जो मुझे बाद में ज्ञात हुआ) वहाँ आई और पूछने लगी, ‘अरे छोटू! क्या हुआ?’ शर्म झिझक से आरक्त-आनन मैं चुप रहा और कुछ भी नहीं बता पाया | उसने स्वयं ही समझते हुए मुस्कुराते हुए पायजामे की गाँठ बांधकर दिखाया कि ‘‘ऐसे बांधी जाती हैवो सुन्दर चेहरा, दैवीय छवि, मोहक मुस्कान कोकिला-वाणी से मुग्ध मैं इतना हतप्रभ था कि रोना क्षोभ भूलकर एकटक देखता ही रह गया और उसी दिन नाड़ा बांधना सीख गया

     मेरी बहन को जब यह घटना ज्ञात हुई तो उसने पूछा,’ फिर किसने बांधा था छोटू ?’

     तुम्हारी सबसे अच्छी और सुन्दर सहेली ने‘, मैंने जबाव दिया | जब उन सबको पता चला कि किसने नाड़ा बांधा था तो सब उसकी तरफ देख देख कर, मुंह दबा-दबा कर हंसने लगीं| वह सुधा सक्सेना थी उस समूह की सबसे सुन्दर लडकी |

     ‘अच्छा छोटू, तो वो तुम्हें अच्छी लगती है, पसंद हैसबने एक साथ पूछा |

     हाँ, मैंने सर हिलाते हुए कहा| और फिर सबका समवेत स्वर में ओहो....के साथ ठहाके से मैं स्वयं कुछ समझते हुए सहम गया |

      ‘आज स्मृतियों में मुस्कुराते हुए मैं सोचता हूँ कि अवश्य ही सब सहेलियाँ इस बात पर काफी समय तक ठिठोली करती रही होंगीं | हाँ कृष्ण-जन्माष्टमी पर मेकेनाइज्ड हिंडोले उसी के घर में सजाये जाते थे जिनमें जेल के फाटक अपने आप खुलना, वासुदेव का कृष्ण को टोकरी में लेकर यमुना में जाना आदि होता था और मेरी खूब खातिरदारी हुआ करती थी |’

           ओहो ........श्रीकांत के मुख से अनायास ही निकला |

                                  



 

रविवार, 20 अक्टूबर 2019

अच्छा आप कविता भी पढते हैं----डा श्याम गुप्त

                               ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ... 

किस्से साहित्यकारों के----
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2.अच्छा आप  कविता भी पढते हैं----=======================
---बेंगलोर में लायंस क्लब के सभागार में मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन था | मैं बेंगलोर में था , समाचार-पत्र में सूचना पढ़कर मैं भी पहुंचा...
---संचालक जी ने डा श्पाम गुप्त नाम सुनते ही परिचय दिया --ये डा श्याम गुप्त जी हैं लखनऊ से आये हैं, बहुत कठोर आलोचक हैं ....


---उनसे मेरी भेंट कई बार फेसबुक पर हुई थी , वाद-विवाद भी ...वे भी क्या करें आजकल आलोचना शब्द तो सुनाई ही नहीं देता ---केवल समीक्षा होती है जिसमें सब अच्छा अच्छा कहा, लिखा जाता है जाता है |
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सभी को वे कविता पढाये जारहे थे और लखनऊ से आये अतिथि डा श्याम गुप्त, कठोर आलोचक बैठे सुन रहे थे , काफी समय बाद काफी लोगों द्वारा पढ़ लेने के बाद अंत में मैंने पूछ ही लिया , मेरा नंबर नहीं आयेगा क्या ?
---अरे, क्या आप कविता भी पढ़ते हैं, संचालक जी हैरान होकर बोले , हम तो समझते थे कि आप केवल आलोचना करते हैं ....
---मैंने हंसते हुए कहा- अवश्य पढेंगे..अरे भाई जो कविता लिखना, पढ़ना जानता ही नहीं होगा वो आलोचना क्या करेगा, आलोचना करने के लिए हिम्मत के साथ साहित्य के वृहद् ज्ञान की भी आवश्यकता होती है.....
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आजकल साहित्य में भी --कौन बुरा बने...हमें क्या जैसा लिखता है लिखने दो हमारा क्या जाता है ....हमने क्या सुधारने का ठेका ले रखा है ...कौन पचड़े में पड़े , किसके पास इतना टाइम है .. ..पता नहीं कब किससे काम पड़ जाय की प्रवृत्ति चल रही है |
---- कोइ क्या करे तमाम मुफ्त लेखन की सुविधा है अतः जिसे जो मर्जी में आये लिखे जारहा है शब्दावली, व्याकरण , भाव, विषय ज्ञान , कथ्य, तथ्य आदि का आपस में कोइ ताल मेल ही नहीं है | किसी भी स्वयंभू नए रचनाकार से ज़रा सी सुधार की बात कह दीजिये, वही आपको पढ़ाने लगेगा ,
--हाँ आवश्यक नहीं की सभी ऐसे हों , कुछ रचनाकार इसे अन्यथा नहीं लेने वाले भी हैं--
----आलोचना वह भी कठोर - तो शायद बाबू रामचंद्र शुक्ल के समय के बाद साहित्य से पराई ही होगई है |



 

मंगलवार, 17 सितंबर 2019

नरेंद्र भाई मोदी जी को उनके जन्म दिवस पर अनेकों शुभकामनाएं --डा श्याम गुप्त

                         ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

       परम पुरुष महानायक श्रीकृष्ण के बाद .... युग पुरुष, सही मायनों में युगनायक भारतीय सम्मान व प्रतिष्ठा के नायक, विश्व वन्द्य विख्यात, भारतीय प्नधानमंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी जी को उनके जन्म दिवस पर अनेकों शुभकामनाएं |







 

रविवार, 4 अगस्त 2019

बाढ़ की विभीषिका व उसके अर्थार्थ -----डा श्याम गुप्त

....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


बाढ़ की विभीषिका व उसके अर्थार्थ -----
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जब मैं आज समस्त भारत भर में अपितु विश्व भर में सभी उन्नति के शिखर पर पहुंचे हुए नगरों महानगरों में वर्षा एवं बाढ़ से जलप्रलय की विभिन्न विभीषिकाओं को सुनता हूँ देखता हूँ तो दो एतिहासिक घटनाएँ मेरी स्मृति में आती हैं |
-----१.विश्व की प्रथम संस्कृति – स्वयंभाव मनु द्वारा स्थापित देव मानव सभ्यता जो मत्स्यावतार कालीन महाजलप्लावन ( मनु वैवस्वत काल ) में तत्कालीन समाज के अनाचार के कारण समाप्त हुई |
-----किसी समुदाय की प्रारंभिक त्रुटियाँ होती हैं मस्ती भरा जीवन, उपभोग्या नारी का स्वरूप, अनेक स्त्रियों के साथ अवैध संबंध आदि, सोमरस का देवों (उच्च-पदस्थ विज्ञ जनों) द्वारा अधिकाधिक प्रयोग, अर्थात अच्छाई का अक्रिया शीलता में परिवर्तन और सुरा का असुरों द्वारा पान, अर्थात बुराइयों व अनाचरण का वृहद् समाज में स्वीकृत रूप में फैलना | यही इस प्रथम सभ्यता के साथ हुआ |

------२. हरप्पा सभ्यता का पतन -- विभिन्न विद्वानों ने इसके पतन के कारण इस प्रकार दिए हैं। प्रशासनिक शिथिलता, बाढ़,जलवायु परिवर्तन, जलप्लावन, प्राकृतिक आपदा व परिस्थितिकी असंतुलन तथा वाह्य व आर्यों का आक्रमण | आर्यों का आक्रमण अधिकाँश के द्वारा नकारा गया है एवं इतिहास सिद्ध नहीं होता |
------यदि ध्यान से देखा जाय तो अन्य सभी कारण एक ही कारण के विभिन्न तत्व है जो है#पारिस्थितिकी असंतुलन जो निश्चय ही लोभ,लालच रूपी मानव अनाचरण के कारण होता है | यही मूल कारण है जिसके कारण यह सभ्यता विनष्ट हुई |
------ इस अत्यंत विक्सित नागरी सभ्यता के अंतिम चरणों के वर्णन पढ़ने पर ज्ञात होता है कि ये लोग अति-सुविधा भोगी, अकर्मण्य एवं अनुशासन हीन हो चले थे अतः प्रशासन भी शिथिल होचला था | सभ्यता के पूर्व चरणों की अपेक्षा अब सार्वजनिक स्थानों व घरों में ही शौचालय, स्नानागार, कूड़े घर आदि बनने लगे थे ताकि अधिक दूर न जाना पड़े | नगर सीमा के बाहर व अन्दर स्थान स्थान पर कूढे के ढेर दिखाई देने लगे थे | नगरों के सार्वजनिक स्थानों पर ही कूड़े के ढेर किये जाने लगे थे | शिथिल प्रशासन के कारण विविध कर्मियों ने अपने काम में लापरवाही प्रारम्भ कर दी | जलप्रवाह तथा निकासी के तंत्र कूड़ो-कचरे- मल मूत्र के ढेर में परिवर्तित होने लगे थे,नदियाँ प्रदूषित हो चली थीं | अतः बाढ़, जलवायु परिवर्तन व जल प्रलय जैसी स्थितियां उत्पन्न हुईं | फलतः उत्पन्न परिस्थितयों प्राकतिक आपदा, जलप्लावन आदि ने सभ्यता का विनाश कर डाला |
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जहां तक मुझे स्मरण है, मैंने अपने बचपन में अपने नगर में किसी गली, सड़क, सार्वजनिक स्थान, पार्क आदि में कूड़े के ढेर नहीं देखे |
------ नालियों में भरा हुआ कचरा नहीं देखा सुबह सुबह ही सफाई कर्मी सब कुछ साफ़ कर जाते थे |
-----दिन भर बच्चे इन्हीं गलियों में खेलते थे, गली की नालियां-नाले उत्सर्जित जल से भरे प्रवाहित होते रहते थे |
------वरसात के दिनों में महीनों महीनो होने वाली वर्षा से नाले-नदियाँ, नहरें गलियाँ, सड़क उफान पर आते थे परन्तु साथ साथ ही जल की निकासी भी होती रहती थी और वर्षा रुकते ही तुरंत जल उतर जाता था |
------जबकि आज इतनी प्रगति के पश्चात भी स्थान स्थान पर कूड़े-कचरे के ढेर दिखाई पड़ते हैं|
-----सभी स्थानों नगरों में कचरे से ठसाठस भरी हुईं, बजबजाती हुई नालियां-नाले उफनते हुए सीवर मौजूद हैं |
------ आप सड़क व गलियों में नंगे पाँव रखने का सोच भी नहीं सकते | सफाई कर्मी व अन्य कर्मी कहीं अपने कार्य करते हुए नहीं दिखते |
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मुझे लगता है कि हरप्पा सभ्यता की तरह ही आज की स्थिति बन रही है | सारा परिस्थितिकी तंत्र असफल होगया है |
-----प्रशासन अपने स्वयं के सुविधा हेतु कर्मियों से कार्य लेने में असफल है |
------चतुर्थ व तृतीय श्रेणी के कर्मचारी विभिन्न संघों के हस्तक्षेप के कारण कार्य कर ही नहीं रहे हैं |
------ भ्रष्टाचार युत अनियंत्रित भौतिक विकास, बिना मानकीकरण के बनी बहुमंजिली इमारतें वर्षा के जल निकासी में बाधक हैं और वर्त्तमान परिस्थितियाँ बन रही हैं |
श्रीनगर की बाढ़ 

बाढ़ में अमेरिका 

कूड़े के ढेर -भारत 

चंडीगढ़ बाढ़ --भारत का सबसे व्यवस्थित शहर 

कूड़ा युक्त नदियाँ 

बजबजाती हुई नालियां 
ईरान और बाढ़ 

======समय रहते हम सावधान हो जाएं , फिर न कहना कि बताया नहीं ====