....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
------२. हरप्पा सभ्यता का पतन -- विभिन्न विद्वानों ने इसके पतन के कारण इस प्रकार दिए हैं। प्रशासनिक शिथिलता, बाढ़,जलवायु परिवर्तन, जलप्लावन, प्राकृतिक आपदा व परिस्थितिकी असंतुलन तथा वाह्य व आर्यों का आक्रमण | आर्यों का आक्रमण अधिकाँश के द्वारा नकारा गया है एवं इतिहास सिद्ध नहीं होता |
------यदि ध्यान से देखा जाय तो अन्य सभी कारण एक ही कारण के विभिन्न तत्व है जो है#पारिस्थितिकी असंतुलन जो निश्चय ही लोभ,लालच रूपी मानव अनाचरण के कारण होता है | यही मूल कारण है जिसके कारण यह सभ्यता विनष्ट हुई |
------ इस अत्यंत विक्सित नागरी सभ्यता के अंतिम चरणों के वर्णन पढ़ने पर ज्ञात होता है कि ये लोग अति-सुविधा भोगी, अकर्मण्य एवं अनुशासन हीन हो चले थे अतः प्रशासन भी शिथिल होचला था | सभ्यता के पूर्व चरणों की अपेक्षा अब सार्वजनिक स्थानों व घरों में ही शौचालय, स्नानागार, कूड़े घर आदि बनने लगे थे ताकि अधिक दूर न जाना पड़े | नगर सीमा के बाहर व अन्दर स्थान स्थान पर कूढे के ढेर दिखाई देने लगे थे | नगरों के सार्वजनिक स्थानों पर ही कूड़े के ढेर किये जाने लगे थे | शिथिल प्रशासन के कारण विविध कर्मियों ने अपने काम में लापरवाही प्रारम्भ कर दी | जलप्रवाह तथा निकासी के तंत्र कूड़ो-कचरे- मल मूत्र के ढेर में परिवर्तित होने लगे थे,नदियाँ प्रदूषित हो चली थीं | अतः बाढ़, जलवायु परिवर्तन व जल प्रलय जैसी स्थितियां उत्पन्न हुईं | फलतः उत्पन्न परिस्थितयों प्राकतिक आपदा, जलप्लावन आदि ने सभ्यता का विनाश कर डाला |
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जहां तक मुझे स्मरण है, मैंने अपने बचपन में अपने नगर में किसी गली, सड़क, सार्वजनिक स्थान, पार्क आदि में कूड़े के ढेर नहीं देखे |
------ नालियों में भरा हुआ कचरा नहीं देखा सुबह सुबह ही सफाई कर्मी सब कुछ साफ़ कर जाते थे |
-----दिन भर बच्चे इन्हीं गलियों में खेलते थे, गली की नालियां-नाले उत्सर्जित जल से भरे प्रवाहित होते रहते थे |
------वरसात के दिनों में महीनों महीनो होने वाली वर्षा से नाले-नदियाँ, नहरें गलियाँ, सड़क उफान पर आते थे परन्तु साथ साथ ही जल की निकासी भी होती रहती थी और वर्षा रुकते ही तुरंत जल उतर जाता था |
------जबकि आज इतनी प्रगति के पश्चात भी स्थान स्थान पर कूड़े-कचरे के ढेर दिखाई पड़ते हैं|
-----सभी स्थानों नगरों में कचरे से ठसाठस भरी हुईं, बजबजाती हुई नालियां-नाले उफनते हुए सीवर मौजूद हैं |
------ आप सड़क व गलियों में नंगे पाँव रखने का सोच भी नहीं सकते | सफाई कर्मी व अन्य कर्मी कहीं अपने कार्य करते हुए नहीं दिखते |
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मुझे लगता है कि हरप्पा सभ्यता की तरह ही आज की स्थिति बन रही है | सारा परिस्थितिकी तंत्र असफल होगया है |
-----प्रशासन अपने स्वयं के सुविधा हेतु कर्मियों से कार्य लेने में असफल है |
------चतुर्थ व तृतीय श्रेणी के कर्मचारी विभिन्न संघों के हस्तक्षेप के कारण कार्य कर ही नहीं रहे हैं |
------ भ्रष्टाचार युत अनियंत्रित भौतिक विकास, बिना मानकीकरण के बनी बहुमंजिली इमारतें वर्षा के जल निकासी में बाधक हैं और वर्त्तमान परिस्थितियाँ बन रही हैं |
======समय रहते हम सावधान हो जाएं , फिर न कहना कि बताया नहीं ====
बाढ़ की विभीषिका व उसके अर्थार्थ -----
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जब मैं आज समस्त भारत भर में अपितु विश्व भर में सभी उन्नति के शिखर पर पहुंचे हुए नगरों महानगरों में वर्षा एवं बाढ़ से जलप्रलय की विभिन्न विभीषिकाओं को सुनता हूँ देखता हूँ तो दो एतिहासिक घटनाएँ मेरी स्मृति में आती हैं |
-----१.विश्व की प्रथम संस्कृति – स्वयंभाव मनु द्वारा स्थापित देव मानव सभ्यता जो मत्स्यावतार कालीन महाजलप्लावन ( मनु वैवस्वत काल ) में तत्कालीन समाज के अनाचार के कारण समाप्त हुई |
-----किसी समुदाय की प्रारंभिक त्रुटियाँ होती हैं मस्ती भरा जीवन, उपभोग्या नारी का स्वरूप, अनेक स्त्रियों के साथ अवैध संबंध आदि, सोमरस का देवों (उच्च-पदस्थ विज्ञ जनों) द्वारा अधिकाधिक प्रयोग, अर्थात अच्छाई का अक्रिया शीलता में परिवर्तन और सुरा का असुरों द्वारा पान, अर्थात बुराइयों व अनाचरण का वृहद् समाज में स्वीकृत रूप में फैलना | यही इस प्रथम सभ्यता के साथ हुआ |
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जब मैं आज समस्त भारत भर में अपितु विश्व भर में सभी उन्नति के शिखर पर पहुंचे हुए नगरों महानगरों में वर्षा एवं बाढ़ से जलप्रलय की विभिन्न विभीषिकाओं को सुनता हूँ देखता हूँ तो दो एतिहासिक घटनाएँ मेरी स्मृति में आती हैं |
-----१.विश्व की प्रथम संस्कृति – स्वयंभाव मनु द्वारा स्थापित देव मानव सभ्यता जो मत्स्यावतार कालीन महाजलप्लावन ( मनु वैवस्वत काल ) में तत्कालीन समाज के अनाचार के कारण समाप्त हुई |
-----किसी समुदाय की प्रारंभिक त्रुटियाँ होती हैं मस्ती भरा जीवन, उपभोग्या नारी का स्वरूप, अनेक स्त्रियों के साथ अवैध संबंध आदि, सोमरस का देवों (उच्च-पदस्थ विज्ञ जनों) द्वारा अधिकाधिक प्रयोग, अर्थात अच्छाई का अक्रिया शीलता में परिवर्तन और सुरा का असुरों द्वारा पान, अर्थात बुराइयों व अनाचरण का वृहद् समाज में स्वीकृत रूप में फैलना | यही इस प्रथम सभ्यता के साथ हुआ |
------२. हरप्पा सभ्यता का पतन -- विभिन्न विद्वानों ने इसके पतन के कारण इस प्रकार दिए हैं। प्रशासनिक शिथिलता, बाढ़,जलवायु परिवर्तन, जलप्लावन, प्राकृतिक आपदा व परिस्थितिकी असंतुलन तथा वाह्य व आर्यों का आक्रमण | आर्यों का आक्रमण अधिकाँश के द्वारा नकारा गया है एवं इतिहास सिद्ध नहीं होता |
------यदि ध्यान से देखा जाय तो अन्य सभी कारण एक ही कारण के विभिन्न तत्व है जो है#पारिस्थितिकी असंतुलन जो निश्चय ही लोभ,लालच रूपी मानव अनाचरण के कारण होता है | यही मूल कारण है जिसके कारण यह सभ्यता विनष्ट हुई |
------ इस अत्यंत विक्सित नागरी सभ्यता के अंतिम चरणों के वर्णन पढ़ने पर ज्ञात होता है कि ये लोग अति-सुविधा भोगी, अकर्मण्य एवं अनुशासन हीन हो चले थे अतः प्रशासन भी शिथिल होचला था | सभ्यता के पूर्व चरणों की अपेक्षा अब सार्वजनिक स्थानों व घरों में ही शौचालय, स्नानागार, कूड़े घर आदि बनने लगे थे ताकि अधिक दूर न जाना पड़े | नगर सीमा के बाहर व अन्दर स्थान स्थान पर कूढे के ढेर दिखाई देने लगे थे | नगरों के सार्वजनिक स्थानों पर ही कूड़े के ढेर किये जाने लगे थे | शिथिल प्रशासन के कारण विविध कर्मियों ने अपने काम में लापरवाही प्रारम्भ कर दी | जलप्रवाह तथा निकासी के तंत्र कूड़ो-कचरे- मल मूत्र के ढेर में परिवर्तित होने लगे थे,नदियाँ प्रदूषित हो चली थीं | अतः बाढ़, जलवायु परिवर्तन व जल प्रलय जैसी स्थितियां उत्पन्न हुईं | फलतः उत्पन्न परिस्थितयों प्राकतिक आपदा, जलप्लावन आदि ने सभ्यता का विनाश कर डाला |
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जहां तक मुझे स्मरण है, मैंने अपने बचपन में अपने नगर में किसी गली, सड़क, सार्वजनिक स्थान, पार्क आदि में कूड़े के ढेर नहीं देखे |
------ नालियों में भरा हुआ कचरा नहीं देखा सुबह सुबह ही सफाई कर्मी सब कुछ साफ़ कर जाते थे |
-----दिन भर बच्चे इन्हीं गलियों में खेलते थे, गली की नालियां-नाले उत्सर्जित जल से भरे प्रवाहित होते रहते थे |
------वरसात के दिनों में महीनों महीनो होने वाली वर्षा से नाले-नदियाँ, नहरें गलियाँ, सड़क उफान पर आते थे परन्तु साथ साथ ही जल की निकासी भी होती रहती थी और वर्षा रुकते ही तुरंत जल उतर जाता था |
------जबकि आज इतनी प्रगति के पश्चात भी स्थान स्थान पर कूड़े-कचरे के ढेर दिखाई पड़ते हैं|
-----सभी स्थानों नगरों में कचरे से ठसाठस भरी हुईं, बजबजाती हुई नालियां-नाले उफनते हुए सीवर मौजूद हैं |
------ आप सड़क व गलियों में नंगे पाँव रखने का सोच भी नहीं सकते | सफाई कर्मी व अन्य कर्मी कहीं अपने कार्य करते हुए नहीं दिखते |
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मुझे लगता है कि हरप्पा सभ्यता की तरह ही आज की स्थिति बन रही है | सारा परिस्थितिकी तंत्र असफल होगया है |
-----प्रशासन अपने स्वयं के सुविधा हेतु कर्मियों से कार्य लेने में असफल है |
------चतुर्थ व तृतीय श्रेणी के कर्मचारी विभिन्न संघों के हस्तक्षेप के कारण कार्य कर ही नहीं रहे हैं |
------ भ्रष्टाचार युत अनियंत्रित भौतिक विकास, बिना मानकीकरण के बनी बहुमंजिली इमारतें वर्षा के जल निकासी में बाधक हैं और वर्त्तमान परिस्थितियाँ बन रही हैं |
श्रीनगर की बाढ़ |
बाढ़ में अमेरिका |
कूड़े के ढेर -भारत |
चंडीगढ़ बाढ़ --भारत का सबसे व्यवस्थित शहर |
कूड़ा युक्त नदियाँ |
बजबजाती हुई नालियां
ईरान और बाढ़ |
======समय रहते हम सावधान हो जाएं , फिर न कहना कि बताया नहीं ====
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