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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

गुरुवार, 7 मार्च 2019

                      ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

गुरुवासरीय गोष्ठी संपन्न 
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प्रत्येक माह के प्रथम गुरूवार को होने वाली गुरुवासरीय काव्यगोष्ठी दिनांक ७ मार्च २०१९ गुरूवार को डा श्यामगुप्त के आवास सुश्यानिदी, के-३४८, आशियाना , लखनऊ पर संपन्न हुई |
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डा श्यामगुप्त ने माँ सरस्वती वन्दना प्रस्तुत करते हुए पढ़ा---

हे मातु ! विद्या बुद्धि ज्ञान प्रीति गुण प्रदायकं|
अज्ञान अन्धकार त्रिविधि ताप शान्ति दायकं |
हों कथ्य तथ्य सत्य मातु असत भाव नाशकं |
स्वर हों समाज राष्ट्र हित, भजाम्यहं भजाम्यहं ||
------एवं शहीदों को नमन गीत भी प्रस्तुत किया---
हैं नमन भारत देश को है शौर्य जिसकी हवाओं में,
नमन है उन सैनिकों को देश का सम्मान रख्खा |
आज अपने शौर्य से सारे जगत में छागये,
चालीस के बदले चार सौ मार कर जो आगये ||
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-----प्रथम सत्र में साहित्यकारों का सम्मान भी किया गया | लखनऊ पुस्तक-मेला संयोजक श्री देवराज अरोड़ा को भी सम्मानित किया गया |
----- अनिल किशोर शुक्ल ने अपनी रचना में कहा---
सोच समझ कर हर दम बोलो,
शब्द ब्रह्म है इसको तोलो |
------उमेश चन्द्र श्रीवास्तव ने भोले शंकर की महिमा में गायन किया एवं श्रीमती पुष्पा गुप्ता ने दर्पण में अपनी परछाईं से बात करते हुए कहा—
अस्फुट निगाहें दर्पण से झांकीं
परछाईं हमारी हम से यूं पूछ बैठी |
------श्री रामप्रकाश राम ने सुन्दर छंदों में श्रीकृष्ण की छवि को प्रस्तुत किया प्रस्तुत किया—
अंग अंग भूषण विराजें साजे वनमाल,
कमल नयन कमनीय तन श्याम हैं |
-------श्रीमती विजय लक्ष्मी महक ने महिला-दिवस का झंडा उठाते हुए कहा—
महिला दिवस है यह महिला दिवस है |
न मर्जी से खा सकती न मर्जी से पी सकती<
क्योंकि महिला दिवस है महिला दिवस है |
------ श्री बिनोद कुमार सिन्हा जी ने मधुत्सव प्रस्तुत करते हुए कहा ---
हुआ आगाज प्रिय वसंत का,
पुलकित वसुंधरा हुई मगन,
कुसुमित पल्लवित वन उपवन |
----- श्रीमती मधु दीक्षित जी ने एक सुन्दर गीत रचना प्रस्तुत की----
विकल आँखों में कटी रजनी के आँचल को उठाकर,
जागते जो नव अरुण से, कौन हो तुम !
------ कविवर अखिलेश जी ने एक गीत प्रस्तुत किया---
जाने कितनी देर लगा दी तुमने आने में |
अब तो स्वांस स्वांस का चलना ख़तम खजाने में |
------- श्रीमती सुषमा गुप्ता ने महिला सशक्तीकरण गीत प्रस्तुत करते हुए गाया---
तुम पुरुष अहं के हो सुमेरु
मैं नारी आन की प्रतिमा हूँ |
तुम पुरुष दंभ के परिचायक,
मैं सहज मान की गरिमा हूँ |
------- साहित्यभूषण डा रंगनाथ मिश्र सत्य ने एक श्रृंगार गीत प्रस्तुत करते एक पत्नी की इच्छा को बताया—
अबकी चुनाव लड़ि जाव मोरे संइयाँ,
अबकी विधायक बनि जाव मोरे संइयाँ |
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संक्षिप्त जलपान एवं धन्यवाद ज्ञापन के उपरांत सभा को स्थगित किया गया |




 

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