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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 28 मई 2019

आज आजाद हुआ भारत ----आज की ग़ज़ल -गज़लोपनिषद ---डा श्याम गुप्त

                ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

आज आजाद हुआ भारत ----आज की ग़ज़ल -गज़लोपनिषद ---
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******काशी से नरेंद्र भाई मोदी , प्रधान मंत्री भारत सरकार का आह्वान व उद्घोष -----का मूल मन्त्र ---
१. कार्य में पारदर्शिता व परिश्रम का समन्वय डा श्याम  
२.कार्य व कार्यकर्ता , वर्क व वर्कर का एक रूपता भाव
३.सरकार व संगठन का समन्वित रूप व विचार
४.२१ वीं सदी का विज़न ----महान विरासत ---पूजा-पाठ, त्यौहार, शास्त्र व ग्रन्थ के साथ वर्तमान तत्वों का विकास -----अर्थात पुराने को सहेज़कर नवीन की आकांक्षा व वैज्ञानिक विकास के साथ प्रगति ---
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-----आतंक एवं राजनैतिक छुआछूत सहित हर प्रकार की छुआछूत से मुक्ति-----
**********यही तो भारतीयता का मूल भाव है ----
====इसी भाव पर प्रस्तुत है मेरी एक ग़ज़ल-----गज़लोपनिषद----
एक हाथ में गीता हो और एक में त्रिशूल |
यह कर्म-धर्म ही सनातन नियम है अनुकूल |
संभूति च असम्भूति च यस्तदवेदोभय सह ,
सार और असार संग संग नहीं कुछ प्रतिकूल |
ज्ञान व संसार- माया, साथ साथ स्वीकारें ,
यही जीवन व्यवहार है संस्कृति का मूल |
पढ़ें लिखें धन कमायें, परमार्थ हित साथ हो,
ज्ञान दर्शन धर्म श्रृद्धा के खिलाएं फूल |
किसी के भी धन व स्वत्व का नहीं करें हरण ,
चंचला कब हुई किसकी, जाएँ नहीं भूल |
यही सत जीवन का पथ, मुक्ति, ईश्वर प्राप्ति 'श्याम,
जीव ! आनंद परम आनंद के हिंडोले झूल ||


 

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