....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
श्याम स्मृति-३१. विशेषज्ञों का बदलता हुआ दायित्व व
व्यवहार....
आजकल विशेषज्ञों ,चिकित्सकों
का कर्म व कृतित्व केवल ‘चिड़िया की आँख’ की भाँति रह गया है, अर्थात वे
सिर्फ अपनी विशेषज्ञता से सम्बंधित विषय वस्तु व रोग पर ही ध्यान देते हैं, रोगी
पर नहीं, शेष अपने सामान्य या घरेलू चिकित्सक पर छोड़ देते हैं | यह तथ्य शिक्षित
वर्ग-समाज में भी भटकाव पैदा कर रहा है |
पहले सामान्य
प्रेक्टिशनर विशेषज्ञ के पास रोगी को संदर्भित करता था तो उसका अर्थ
होता था कि अब रोगी विशेषज्ञ की निगरानी में रहेगा जब तक वह सम्पूर्ण रूप
से ठीक होकर पुनः अपने चिकित्सक के पास सम्पूर्ण जानकारी एवं सुझावों के साथ वापस
नहीं भेजा जाता | परन्तु आज विशेषज्ञ सिर्फ जिसके लिए उसके पास भेजा गया है रोग के
उसी भाग को चिड़िया की आँख की भाँति देखकर सिर्फ यह कह कर भेज देते हैं कि शेष आपका
चिकित्सक जाने, वही बताएगा| अतः इन दोनों के मध्य रोगी को अपने रोग, चिकित्सा,
आदि के बारे में भटकाव रहता है |
कल भी रोगी
को भटकाव रहता था, अपने अज्ञान, अंग्रेज़ी भाषा के अज्ञान आदि के कारण | आज
भी रोगी भटकाव में रहता है, क्योंकि चिकित्सा विषय महा-विशेषज्ञता का विषय है
अतः पूर्ण रूप से शिक्षित व्यक्ति भी इस बारे में सामान्य मनुष्य ही होता है, पूरी
फीस लेकर भी चिकित्सकों द्वारा पूरा समय व पूरी जानकारी न दिए जाने एवं
भिन्न-भिन्न संस्थानों, चिकित्सकों के भिन्न-भिन्न तौर, तरीके, सुझाव्, इंटरनेट पर
जानकारी एवं चिकित्सकों के बारे में राय, रिव्यूज़, अखबारों, पत्रिकाओं में दिए गए
आलेखों, सुझावों आदि जिन्हें प्रायः चिकित्सक न मानने का परामर्श भी देते हैं, के
कारण रोगी भटकाव में रहता है |
अतः चिकित्सकों को यह
दायित्व समझना होगा कि टीवी, इंटरनेट, पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, मीडिया आदि
में ऐसे आलेखों आदि का प्रकाशन न करें सिवाय चिकित्सा-जर्नल्स के | विशेषज्ञ
चिकित्सक अपने रोग को चिड़िया की आँख की तरह देखने की बजाय सम्पूर्ण रोगी-रोग को
देखें एवं रोगी व रोग से सम्बन्धित सारी उचित सूचनाएं व निर्देश स्वयं ही रोगी को
दें, सामान्य चिकित्सकों पर न छोड़ें |
अन्य सभी क्षेत्र के
विशेषज्ञों के सन्दर्भ में भी यही तथ्य व कृतित्व उचित है|
श्याम स्मृति-३२.बलात्कार ..क्यूं....
बलात्कार पर आधुनिका
एवं महिला-पक्ष द्वारा प्रायः ये प्रश्न उठाये जाते हैं....
१.लड़कियों के कम कपड़ों पर बात करने वाले भूल जाते हैं कि फिर क्यूँ
बलात्कार का शिकार होती हैं वे ज़रा
सी बच्चियां जिन्होंने अभी चलना-फिरना, बातें करना सीखा ही है, या गरीब की
बच्चियां/लड़कियां जिनके पास भड़काऊ कपडे हैं ही नहीं ?
२.क्या एक लड़की के अनुचित कपडे, अनुचित व्यवहार, अनुचित जगह पर जाने मात्र से ५ से ७
लोगों की हवस की भावना या वासना
इस कदर उबल सकती है कि वे ऐसी घटना को अंजाम दे दें ?
३.इस अपराध का केवल और केवल एक ही कारण है ...'पुरुष की गन्दी सोच' |
ये नारियां भूल जाती
हैं कि किसी कंपनी का बॉस या कर्मचारी घर से त्रस्त होने पर भड़ास आफिस में निकालता
है, आफिस की घर में | उसी प्रकार हर जगह पर अनावृत्त देह-दृष्टि से उत्पन्न व भड़की
वासना अवश्य निकलेगी एवं वहीं निकलेगी जहां उसका वश चलता है, जो उसकी पहुँच में
है, हर अर्ध-नग्न देहधारी पर सीधे सीधे नहीं |
निश्चय ही लड़कियों /
महिलायों के अनुचित कपडे,
अनुचित व्यवहार व अनुचित जगह पर होने से हवस
या भावना को उद्दीपन प्राप्त होता है एवं वे उबल सकती है और घटनाओं को अंजाम देती
हैं | इसीलिये शास्त्र में प्रावधान है कि एकांत में पिता, पुत्र व भाई के साथ भी
नहीं होना चाहिए |
निश्चय भी अपराध का एक
मात्र कारण पुरुष की गंदी सोच है परन्तु सोचना यह है कि पुरुष में यह गंदी सोच
उत्पन्न कहाँ से हुई, क्यों हुई ? दृश्य, श्रव्य एवं आजकल पाठ्य साधनों से ही तो
सोच बनती है | स्त्री के स्वयं के आचरण व संकार जो माता, बहन, सखी, शिक्षिका आदि
के रूप में बालपन से ही पुरुष का आचरण व संस्कार-सोच का निर्माण करते थे वे सब
कहाँ हैं | पिता, गुरु, शिक्षक, मित्र, अग्रज के रूप में जो ज्ञान-गुण संस्कार-सोच
बालपन से ही स्वयं संस्कारवान पुरुष से, पुरुष में जाते थे वे कहाँ हैं? स्त्रियाँ
समाज की मूल होती हैं, पुरुष नहीं |
शास्त्रों -पुराणों आदि में प्रायः पंचजन
शब्द प्रयोग होता है; मेरे विचारानुसार इसका अर्थ है--पांच प्रकार के
जन होते हैं---
१- जो पथप्रदर्शक
एवं पथ बनाने वाले होते हैं -जो सोचने-विचारने वाले -नीति-नियम निर्धारक, ज्ञानवान, अनुभवजन्य
ज्ञान के प्रसारक व उन पर स्वयं चलकर ( या न भी चलें-लोग उनका अनुकरण करते हैं ) सोदाहरण लोगों को चलने के लिए प्रेरित करने वाले
होते हैं | महान जन, विचारक, आदि.
"महाजना येन गतो स पन्था"
" के महाजन, विचारक, क्रान्ति-दृष्टा, ऋषि-मुनि
भाव, साधक लोग ।
२- जो महान जनों द्वारा निर्धारित पथ पर, विचारकर उत्तम पथ निर्धारण करके उस पर चलने वाले होते हैं, क्रियाशील व्यक्ति "महाजना येन गतो स पन्था " पर चलने वाले, क्रियाशील लोग, जीवन मार्ग के पथिक, उत्तम संसारी लोग । |
३- अनुसरण कर्ता ---पीछे पीछे चलने वाले -फोलोवर्स--जिन्हें पथ देखने व समझने, विचारने की आवश्यकता नहीं होती | जो क्रियाशील लोग करते हैं वही करने लगते हैं।
२- जो महान जनों द्वारा निर्धारित पथ पर, विचारकर उत्तम पथ निर्धारण करके उस पर चलने वाले होते हैं, क्रियाशील व्यक्ति "महाजना येन गतो स पन्था " पर चलने वाले, क्रियाशील लोग, जीवन मार्ग के पथिक, उत्तम संसारी लोग । |
३- अनुसरण कर्ता ---पीछे पीछे चलने वाले -फोलोवर्स--जिन्हें पथ देखने व समझने, विचारने की आवश्यकता नहीं होती | जो क्रियाशील लोग करते हैं वही करने लगते हैं।
----दो
अन्य प्रकार के व्यक्ति और होते हैं --
४-विरोधी -- जो विचारकों, चलने वालों, स्थिर-स्थापित पथों का विरोध करते हैं । इनमें (अ)-जो सिर्फ विरोध के लिए विरोध करते हैं, विना सटीक तर्क या कुतर्क सहित - वे विज्ञ होते हुए भी समाज के लिए हानिकारक होते हैं, उन्हें यदि तर्क या साम, दाम, दंड, विभेद द्वारा राह पर लाया जाय तो उचित रहता है....(ब) -जो वास्तविक बिन्दुओं पर सतर्क विरोध करते हैं वे ज्ञानीजन--'निंदक नियरे राखिये, की भांति समाजोपयोगी होते हैं ।
५- उदासीन - न्यूट्रल -- जो कोऊ नृप होय हमें का हानी, वाली मानसिकता वाले होते हैं; यही लोग समाज के लिए सर्वाधिक घातक, ढुलमुल नीति वाले, किसी भी पक्ष की तरफ लुढ़कने वाले, अविचारशील होते हैं, जिनके लिए प्रायः कठोर नियम, क़ानून बनाने व उन पर चलाने की आवश्यकता होती है।
४-विरोधी -- जो विचारकों, चलने वालों, स्थिर-स्थापित पथों का विरोध करते हैं । इनमें (अ)-जो सिर्फ विरोध के लिए विरोध करते हैं, विना सटीक तर्क या कुतर्क सहित - वे विज्ञ होते हुए भी समाज के लिए हानिकारक होते हैं, उन्हें यदि तर्क या साम, दाम, दंड, विभेद द्वारा राह पर लाया जाय तो उचित रहता है....(ब) -जो वास्तविक बिन्दुओं पर सतर्क विरोध करते हैं वे ज्ञानीजन--'निंदक नियरे राखिये, की भांति समाजोपयोगी होते हैं ।
५- उदासीन - न्यूट्रल -- जो कोऊ नृप होय हमें का हानी, वाली मानसिकता वाले होते हैं; यही लोग समाज के लिए सर्वाधिक घातक, ढुलमुल नीति वाले, किसी भी पक्ष की तरफ लुढ़कने वाले, अविचारशील होते हैं, जिनके लिए प्रायः कठोर नियम, क़ानून बनाने व उन पर चलाने की आवश्यकता होती है।
श्याम
स्मृति-३४.स्थिरता व गति और जीवन ...
सत्य काल निरपेक्ष है, धर्म भी सत्य का ही
एक नाम है और ज्ञान भी सत्य का ही रूप है | अतः सत्य, धर्म व ज्ञान, काल निरपेक्ष
हैं, यही शाश्वत है, स्थिर है | अन्य सब कुछ व जीवन
भी काल सापेक्ष है, गतिशील है, परिवर्तनशील है....यही गति है |
“ एक नियम है इस जीवन का,
जीवन का कुछ नियम नहीं है |
एक नियम जो सदा सर्वदा,
स्थिर है, परिवर्तन ही है || “
श्याम स्मृति-३५.आभार व
समन्वयात्मक प्रोत्साहन....
परम पिता परमात्मा एवं माँ आदिशक्ति का तो
हमें सदैव आभारी रहना ही चाहिए जिनकी परम-कृपा एवं क्रियात्मक मूल प्रेरणा के बिना
कहीं कुछ नहीं घटता |
सामान्यतया हम उनको भी आभार प्रकट करते
हैं जो किसी कृति की रचना में हमें परोक्ष या अपरोक्ष रूप से सहायक होते हैं|
परन्तु किसी भी क्रिया व कर्म करने के निश्चय पर पहुँचने के लिए प्रायः दो मूल
विचारधाराओं का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहता है | प्रथम आपके साथ समन्वयात्मक
विचार वाले प्रोत्साहक जो अपने कृतित्व से आपके विचारों के महत्वपूर्ण
प्रेरक हैं, जिन्हें आप सकारात्मक प्रेरक कह सकते हैं| और दूसरे जो और भी
अधिक महत्वपूर्ण हैं वे हैं आपके विचारों के निरोधात्मक विचार वाले
निरुत्साहक एवं कभी कभी निंदक भाव वाले प्रोत्साहक जिन्हें नकारात्मक
प्रेरक भी कहा जा सकता है| ये नकारात्मक प्रेरक आपके मन में उस कर्म-विशेष के
प्रति एक दृड़ता का भाव उत्पन्न करते हैं| हमें दोनों का ही समान रूप से आभारी रहना
चाहिए |
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