....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
काव्यनिर्झरिणी की रचनाएँ-----१५.कुदरत की नियामतें –
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काव्यनिर्झरिणी की रचनाएँ-----१५.कुदरत की नियामतें –
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तरबूज की फांक सा,
खिड़की से झांकता |
नीले आकाश में
सारी रात जगता |
वो यात्री सा चाँद,
दिला जाता है याद |
खोल देता है मन में,
स्मृति के कपाट |
होता था कभी चाँद,
एक चांदनी की रात |
वो नानी की कहानी,
वो चांदी सी रात |
वो ऊपर की छत पर,
शीतल मंद समीर |
वो रात की परात में,
यूं बिखरी सी खीर |
खरबूज आम फालसे,
ककडी वो लज्ज़तदार |
तरबूज की तरावट,
खिरनी की वो बहार |
इक चाँद ही नहीं हम,
सूरज भी खोचुके |
उस नीम की बयार,
से भी
हाथ धो चुके |
पंखा है कूलर है ,
एसी का ही
राज है |
सिर दर्द को बढाने का ,
ये सारा ही साज है |
कुदरत की सब नियामतें ,
हम भूल चले हैं |
अपनी बनाई कैद में,
ही फूल चले हैं ||
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