....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
किस्से राज काज के ---
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राजा का दरवारी या सरकारी अधिकारी का कार्य काँटों की बगिया में चलना होता है | उस पर पंचमुखी दबाव होते हैं -ऊपर के –अधिकारियों व शासन के ,उपभोक्ता या कर्मचारियों की अपेक्षाओं के, कर्मचारी यूनियनों के, सहयोगियों की चालों के एवं स्थानीय अराजक तत्वों के |
--------इसमें यदि पारदर्शिता, स्पष्ट-दृष्टि, ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर, लाभ-हानि की सोच व कुछ प्राप्ति की आशा के बिना कार्य, नियमों व अपने विषय का स्पष्ट ज्ञान, संभाषण-योग्यता, न कहने की कला एवं कागज़ कार्य, लिखा-पढी में कहीं भी न फंसने की योग्यता है तो आप ‘परम स्वतंत्र न सिर पर कोऊ ‘..की भांति कार्य सम्पादन कर सकते है |
उस समय मैं मेडीकल कालिज के इमरजेंसी विभाग में रेजीडेंट सर्जन अधिकारी था | एक बार पोस्टेड मेट्रन कुछ अधिक ही तेज व सिर फिरी जैसी थी, नर्सों को, कड़े अनुशासन व देख रेख में रखती थी हाउस डॉक्टरों से भी बात नहीं करने देती थी, नर्सें भी उनसे परेशान रहती थीं |
------हमारे एक काफी वरिष्ठ पूर्व चिकित्सा छात्र जो कहीं अन्य चिकित्सा अधिकारी थे उनके कोइ रिश्तेदार भर्ती हुए, सामान्यतः प्रोटोकोल के अनुसार उनका ख्याल रखा जाता था | किसी बात पर मेट्रन से उनकी खटपट होगई | मेट्रन ने मरीज़ की केस फ़ाइल अपने कब्जे में ले ली जो सदैव डॉक्टर्स के चेंबर में रखी जाती थीं |
हाउस डॉक्टरों ने शिकायत की | मैंने उन्हें बुलाकर समझाया कि यह आफीशियल सरकारी डोक्यूमेंट हैं आप अपने पर्सनल कब्जे में नहीं रख सकतीं, यह अपराध की श्रेणी में आता है, उसी समय एक अन्य मेरे जूनियर पीजी छात्र कैलाश घूमते हुए आगये और कहने लगे --
---हाँ सर थाने में रिपोर्ट करा दीजिये |
---अब तो वे अड़ गयीं कि अब तो मैं थाने ही जाऊंगी, तभी फ़ाइल दूंगीं | किसी तरह से होस्पीटल सुपरिंटेंडेंट से फोन पर बात करके मामला शांत कराया |
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दूसरे दिन जब मैं होस्टल से निकल कर जारहा था तो देखा कि सारी नर्सें होस्पीटल सुपरिन्टेन्डेन्ट के आफिस के बाहर खडी हैं |
---- मैंने पूछा की क्या बात है तो ज्ञात हुआ की कल मेट्रन से डा. कैलाश से झगड़ा होगया है और हम सब हड़ताल करने जारही हैं|
----मैंने कुछ को अलग से बुलाकर कहा झगड़ा मेरे से हुआ था और इस बात पर | कुछ ही समय में उन्होंने एक- दूसरे को बताया और सारी नर्सें गायब |
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मुझे सुपरिन्टेन्डेन्ट का बुलावा आया | सुपरिन्टेन्डेन्ट पीएमएस सेवा से होते थे उनका कालिज प्रशासन व चिकित्सकों पर कोइ आधिकार ही नहीं होता था|
-----चेंबर में एक वार्ड मास्टर व वे मेट्रन मौजूद थीं | मेट्रन ने अपनी व्यथा सुनाई और वार्ड मास्टर कहने लगे ये माफी मांगें नहीं तो नर्सें हड़ताल करेंगीं
-----| मैंने कहा माफी की कोइ बात ही नहीं है, गलत व्यवहार व जिद पर अडने के लिए ये माफी मांगें | बाहर झाँक तो लो कोइ नहीं है वहां हड़ताल करने वाला |
-----सुपरिन्टेन्डेन्ट बोले अरे भई आप लोग भाई बहन की तरह हैं,
----मैंने कहा हाँ यदि इनकी पर्सनल शान में कोइ बात हुई जो इन्हें बुरी लगी तो मुझे अफसोस है |
----वार्ड मास्टर ( जिनका मैंने मरीजों से वसूली रुकवा दी थी-- न खाऊंगा न खाने दूंगा के तहत ) कहने लगे इनकी तो और भी बहुत शिकायतें हैं |
मैंने कहा हाँ शिकायतें तो इंदिरा गांधी की ( तत्कालीन प्रधान मंत्री ) भी बहुत हैं तो क्या ......?
----सुपरिन्टेन्डेन्ट मुस्कुराने लगे, बोले डा. गुप्ता आप जाइए, हम देख लेंगे |
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