. 2. छंद का विस्तृत आकाश - आकाश को छोटा न कर...
वे जो सिर्फ छंदोबद्ध कविता ही की बात करते हैं, वस्तुतः छंद, कविता, काव्य-कला व साहित्य का अर्थ ठीक प्रकार से नहीं जानते-समझते एवं संकुचित अर्थ व विचार धारा के पोषक हैं। वे केवल तुकांत-कविता को ही छंदोबद्ध कविता कहते हैं। कुछ तो केवल वार्णिक छंदों -कवित्त, सवैया, कुण्डली आदि -को ही छंद समझते हैं। छंद क्या है? कविता क्या है ?
वस्तुतः कविता, काव्य-कला, गीत आदि नाम तो बाद मैं आए। आविर्भाव तो छंद -नाम ही हुआ है। छंद ही कविता का वास्तविक सर्व प्रथम नाम है। सृष्टि-महाकाव्य- में सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया में कवि कहता है--
" चतुर्मुख के चार मुखों से ,
ऋक,यजु ,साम ,अथर्व वेद सब ;
छंद शास्त्र का हुआ अवतरण ,
विविध ज्ञान जगती मैं आया। "----सृष्टि खंड से।
वास्तव में प्रत्येक कविता ही छंद है। प्राचीन रीतियों के अनुसार आज भी विवाहोपरांत प्रथम दिवस पर दुल्हा-दुल्हिन को छंद -पकैया खेल खिलाया जाता है (कविता नहीं)। इसमें दौनों कविता मैं ही बातें करते हैं। इसके दो अर्थ हैं --
१.कविता का असली नाम छंद है, छंद ही कविता है।
२ काव्य-कला जीवन के कितने करीब है, जो छंद बनाने मैं प्रवीणता, ज्ञान की कसौटी है वह संसार-चक्र में जाने के लिए उपयुक्त है। आगे आने वाला जीवन छंद की भांति अनुशासित परन्तु निर्बंध, लालित्यपूर्ण, विवेकपूर्ण, सहज, सरल, गतिमय व तुकांत-अतुकांत की तरह प्रत्येक आरोह-अवरोह को झेलने में समर्थ रहे।
छंद का अर्थ है अनुशासन । स्वानुशासन में बंधी, लयबद्ध रचना, चाहे तुकांत हो या अतुकांत। वैदिक छंद व मन्त्र सभी अतुकांत हैं परन्तु लयानुशासन बद्ध--हिन्दी में अगीत ने यही स्वीकारा है । जब कहा जाता है कि "स्वच्छंदचारी न शिवो न विष्णु यो जानाति स पंडितः"-अर्थात शिव व विष्णु स्व छंद, अर्थात स्वानुशासन के व्यवहारी हैं, किसी जोड़-तोड़ के अनुशासन के नहीं ..स्वलय. स्वभाव,आत्मानुवत,आत्मभूत, सहज भाव वाला। अगीत कविता भाव यही है ।
‘छन्द प्रभाकर’ पुस्तक में छन्द की परिभाषा इस प्रकार है- छन्द उस वाक्य योजना को कहते हैं जो अक्षरों, मात्राओं और यति आदि के नियम विशेष के अनुसार लिखी गयी हो |
आचार्य भरत ने अत्यंत व्यापक रूप में वाक् तत्व को शब्द और काल तत्व को छन्द कहा है..
“छन्दहीनो न शब्दोSजस्त नच्छन्द शब्दवजजातम्। “
---अर्थात कोई शब्द या ध्वनि छन्द रहित नहीं और न ही कोई छन्द शब्द रहित है क्योंकि ध्वनि काल के बिना व्यक्त नहीं होती काल का ज्ञान ध्वनि के बिना संभव नहीं |
अतः छंद ही कविता है, हर कविता छंद है -तुकांत, अतुकांत; गीत-अगीत सभी । छंद का अपना विस्तृत आकाश है। आकाश को छोटा न कर।
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