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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 1 जुलाई 2025

....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


चिकित्सक दिवस पर एक कहानी -------------डॉ. श्याम गुप्त ------------------------------- -

पाल ले इक रोग नादां . ..
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अभी हाल में ही एक ख़ास मित्र, बैचमेट, सीटपार्टनर, क्लासफेलो से भेंट हुई, वार्तालाप का कुछ अंश यूं है--
हैं, रिटायर होगये हो !
हाँ भई |
लगते तो नहीं हो..(मुस्कान ), अब क्या कर रहे हो? कुछ ज्वाइन किया ।
नहीं, अब मैं कविता व साहित्य का डाक्टर बन गया हूँ ।
अरे वाह ! तो मेरी सौत को अब तक साथ लगाए हुए हो, .ही...ही...ही...तभी वैसे के वैसे ही हो |
----पर आजकल कविता को पूछता ही कौन है, रमा की पूछ है हर तरफ | कोई पढ़ता भी है तुम्हारी कविता ?

---- यह तो सच कहा, तुमने |


सच है एसबी, आज कविता जन-जन से दूर होगई है और जन, जीवन से| हम लोग कठिन अध्ययन-अध्यापन के साथ भी कितना पढ़ते थे साहित्य को, प्रसाद, निराला, महादेवी पर वाद-विवाद भी...| मुझे लगता है आज समाज में सारे दुःख-द्वंद्वों का एक मुख्य कारण यह भी है कि हम साहित्य से दूर होते जारहे हैं |
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कितना सच कहा रमा ने | एक विचार सूत्र की उत्पत्ति हुई मन में| अपने कथन, वाक्यों, उक्तियों से न जाने कितने कविता, कथा, आलेखों के सूत्र दिए हैं रमा ने मुझे |
आवश्यक नहीं कि विचार-सूत्र किसी विद्वान, ज्ञानी या अनुभवी बडे लोगों के विचार ही दें, अपितु किसी भी माध्यम से मिल सकते हैं--बच्चों, युवाओं व तथाकथित अनपढ लोगों के माध्यम से भी । प्रेरक-प्रदायक सूत्र तो मां सरस्वती, मां शारदे, मां वाग्देवी ही है।
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मैं सोचता हूँ कि वस्तुतः आज के भौतिकवादी युग के मारा-मारी, भाग-दौड़, अफरा-तफरी, ट्रेफिक-जाम, ड्राइविंग, आफिस-पुराण, एक ही गति में निरंतर भागते हुए, दिन-रात कार्य, परिश्रम, कमाई-सुख-सुविधा-भोग रत आज की पीढी को कविता व साहित्य पढ़ने का अवकाश और आकांक्षा ही कहाँ है |

विकास की तीब्र गति के साथ हर व्यक्ति को घर बैठे प्रत्येक सुविधा प्राप्ति-भाव तो मिला है परन्तु यह सब स्व-भाषा, स्वदेशी तंत्र के अपेक्षा पर-भाषा व विदेशी तंत्र चालित होने के कारण उसी चक्रीय क्रम में सभी को अपने अपने क्षेत्र में दिन-रात कार्य व्यस्तता व कठोर परिश्रम के अति-रतता भी स्वीकारनी पड़ीं है | एसे वातावरण में आज के पीढी को स्वभाषा कविता व साहित्य पढ़ने, लिखने, समझने, मनन करने की इच्छा, आकांक्षा व ललक ही नहीं रही है | यद्यपि अतिव्यस्तता में भी युवा पीढी द्वारा मनोरंजन के विभिन्न साधन भी उपयोग किये जाते हैं, हास्य-व्यंग्य की कवितायें आदि भी पढी-सुनी जाती हैं; परन्तु जन-जन की स्व-सहभागिता नहीं है, कविता जीवन-दर्शन नहीं रह गया है | साहित्य--ज्ञान व अनुभव का संकलन व इतिहास होता है जो जीवन की दिशा-निर्धारण में सहायक होता है | शायद अधिकाधिक भौतिकता में संलिप्तता व सांस्कृतिक भटकाव का एक कारण यह भी हो, साहित्य व स्व-साहित्य की उपेक्षा से उत्पन्न स्व-संस्कृति की अनभिज्ञता |
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और साहित्य व कविता भी तो अब जन जन व जन जीवन की अपेक्षा अन्य व्यवसायों की भांति एक विशिष्ट क्षेत्र में सिमट कर रह गए हैं | वे ही लिखते हैं; वे ही पढ़ते हैं | समाज आज विशेषज्ञों में बँट गया है | विशिष्टता के क्षेत्र बन गए हैं | जो समाज पहले आपस में संपृक्त था, सार्वभौम था, परिवार की भांति, अब खानों में बँटकर एकांगी होगया है। विशेषज्ञता के अनुसार नई-नई जातियां-वर्ग बन रहे है | व्यक्ति जो पहले सर्वगुण-भाव था अब विशिष्ट-गुण सम्पन्न-भाव रह गया है | व्यक्तित्व बन रहा है, व्यक्ति पिसता जारहा है। जीवन सुख के लिए जीवन आनंद की बलि चढ़ाई जा रही है | यह आज की पीढी की संत्रासमय अनिवार्य नियति है |

पर मैं सोचता हूँ कि निश्चय ही हमारी आज यह पीढी क्या उचित सहानुभूति व आवश्यक दिशा-निर्देशन की हकदार नहीं है; क्योंकि वास्तव में वे हमारी पीढी की भूलों व अदूरदर्शिता का परिणाम भुगत रहे हैं| अपने सुखाभिलाषा भाव में रत हमारी पीढी उन्हें उचित दिशा निर्देशन व आदर्शों को संप्रेषित करने में सफल नहीं रही |
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इसीलए मैंने तो, जो कोई भी परामर्श के लिए आता है या विभिन्न पार्टी, उत्सव, आयोजनों में, चलिए डाक्टर साहब, अब आप मिल ही गए हैं तो पूछ ही लेते हैं के भाव में मुफ्त ही....., सभी को यही परामर्श देना प्रारम्भ कर दिया है कि ...

हुज़ूर, कविता पढ़ने व लिखने का रोग पाल लीजिये, सभी रोग-शोक की यह रामवाण औषधि है ..

---- आप सब का क्या ख्याल है....|

सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

हरप्पा सभ्यता, वैदिक सभ्यता और सिंधु लिपि .. डॉ. श्याम गुप्त

....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

                             हरप्पा सभ्यता,  वैदिक सभ्यता और  सिंधु लिपि   .. डॉ. श्याम गुप्त

 

       अभी हाल में ही हरप्पा  सील की भाषा डीकोड की गयी है यह संस्कृत  थी।  अर्थात संस्कृत भाषा पर आधारित है सिंधु लिपि  तथा  यज़ुर्वेद  के मंत्र, सिंधु घाटी सभ्यता में रचे गये वस्तुत: हड़प्पा सभ्यता लुप्त नहीँ हुई अपितु वैदिक सभ्यता में समाहित होगयी।

इंडस वाली की लिपि में यजुर्वेद के मंत्रों की भरमार---

 https://youtu.be/d7vbYvNJIKI?si=gsG1HW0gfaLcJodR

https://youtube.com/shorts/EXfpwwBTDX4?si=IDf-5AALZr6vi8KM 

        हरप्पा  या  सिन्धु घाटी  या  सिंधु-सरस्वती सभ्यता नष्ट नहीं हुई अपितु वह वैदिक सभ्यता में विलीन होकर एकाकार होगईहरप्पा सभ्यता सेà सिंधु घाटी सभ्यता à सिंधु-सरस्वती सभ्यता à वैदिक सभ्यता  àसनातन  हिंदू सभ्यता ...  आज भी हिन्दू या भारतीय या सनातन सभ्यता उसी सरस्वतीसभ्यता एवं वैदिक सभ्यता के मूल गुण धर्म अपनाये हुए है |

             हम जो कुछ भी हरप्पा सभ्यता वैदिक सभ्यता में देखते हैं, धर्मप्राकृतिक पूजा, स्त्री-सत्तात्मक समाज, वर्तनमिट्टी कांस्य, खिलौने, मातृशक्ति महत्ता, पशुपति शिव, स्वास्तिक, चक्र, इंद्र, विष्णु, ब्रह्मा, देवी पार्वती, दक्ष, सुमेरु, स्वर्ग, इन्द्रलोक, वेद, व्यवहार, रहन-सहन, भाषाएँ..  वह सभी आज भी समस्त भारत में उत्तर, दक्षिण में अपितु समस्त विश्व में विभिन्न भावान्तर, भाषांतर, एवं स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार विभिन्न धार्मिक अंतर से व्याप्त है, इससे प्रतीत होता है  कि सभी धर्म आदि-वैदिक धर्म के ही रूपांतर हैं |

 

         यदि सचाई  से यह जाना जाय कि दुनियाभर की प्राचीन सभ्यताओं से हिन्दू धर्म का क्या सम्बन्ध था तो ज्ञात होगा कि  संपूर्ण धरती पर हिन्दू वैदिक धर्म ने ही लोगों को सभ्य बनाने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में धार्मिक विचारधारा की नए नए रूप में स्थापना की थी? आज दुनिया भर के  धार्मिक, संस्कृति और समाज में हिन्दू धर्म की झलक देखी जा सकती है चाहे वह यहूदी धर्म हो, पारसी धर्म हो या ईसाई-इस्लाम धर्म हो।


       ईसा से 2300-2150 वर्ष पूर्व सुमेरिया, 2000-400 वर्ष पूर्व बेबिलोनिया, 2000-250 ईसा पूर्व ईरान, 2000-150 ईसा पूर्व मिस्र (इजिप्ट), 1450-500 ईसा पूर्व असीरिया, 1450-150 ईसा पूर्व ग्रीस (यूनान), 800-500 ईसा पूर्व रोम की सभ्यताएं विद्यमान थीं। उक्त सभी से पूर्व महाभारत का युद्ध लड़ा गया था इसका अर्थ है कि 3500 ईसा पूर्व भारत में एक पूर्ण विकसित सभ्यता थी।

         सिन्धु-सरस्वती घाटी की सभ्यता (5000-3500 ईसा पूर्व) : हिमालय से निकलकर सिन्धु नदी अरब के समुद्र में गिरती है। प्राचीनकाल में इस नदी के आसपास फैली सभ्यता को ही सिन्धु घाटी की सभ्यता कहा गया। इस नदी के किनारे के दो स्थानों हड़प्पा और मोहनजोदड़ो  (अब पाकिस्तान) में की गई खुदाई में सबसे प्राचीन और पूरी तरह विकसित नगर और सभ्यता के अवशेष मिले इसके बाद चन्हूदड़ों, लोथल, रोपड़, कालीबंगा (राजस्थान), सूरकोटदा, आलमगीरपुर (मेरठ), बणावली (हरियाणा), धौलावीरा (गुजरात), अलीमुराद (सिंध प्रांत), कच्छ, रंगपुर (गुजरात), मकरान तट (बलूचिस्तान), गुमला (अफगान-पाक सीमा) आदि जगहों पर खुदाई करके प्राचीनकालीन कई अवशेष इकट्ठे किए गए। अब इसे सैंधव सभ्यता कहा जाता है।

         हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में असंख्य देवियों की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। ये मूर्तियां मातृदेवी या प्रकृति देवी की हैं। प्राचीनकाल से ही मातृ या प्रकृति की पूजा भारतीय करते रहे हैं और आधुनिक काल में भी कर रहे हैं। यहां हुई खुदाई से पता चला है कि हिन्दू धर्म की प्राचीनकाल में कैसी स्थिति थी सिन्धु घाटी की सभ्यता को दुनिया की सबसे रहस्यमयी सभ्यता माना जाता है, क्योंकि इसके पतन के कारणों का अभी तक खुलासा नहीं हुआ है।

          नए अध्ययन के अनुसार  इस काल में महाभारत युद्ध इसी क्षेत्र में हुआ था। लोगों के बीच हिंसा, संक्रामक रोगों और जलवायु परिवर्तन ने करीब 4 हजार साल पहले सिन्धु घाटी या हड़प्पा सभ्यता का खात्मा करने में एक बड़ी भूमिका निभाई थी।

            नॉर्थ कैरोलिना स्थित एप्पलचियान स्टेट यूनिवर्सिटी में नृविज्ञान (एन्थ्रोपोलॉजी) की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. ग्वेन रॉबिन्स शुग ने एक बयान में कहा कि जलवायु, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों, सभी ने शहरीकरण और सभ्यता के खात्मे की प्रक्रिया में भूमिका निभाई, लेकिन इस बारे में बहुत कम ही जानकारी है कि इन बदलावों ने मानव आबादी को किस तरह प्रभावित किया।

 

       आज जो पाकिस्तान और अफगानिस्तान है, महाभारतकाल में इसे पांचाल, गांधार, मद्र, कुरु और कंबोज की स्थली कहा जाता था। अयोध्या और मथुरा से लेकर कंबोज (अफगानिस्तान का उत्तर इलाका) तक आर्यावर्त के बीच वाले खंड में कुरुक्षेत्र था, जहां यह युद्ध हुआ। आजकल यह हरियाणा का एक छोटा-सा क्षेत्र है।
 

         उस काल में सिन्धु और सरस्वती नदी के पास ही लोग रहते थे। सिन्धु और सरस्वती के बीच के क्षेत्र में कई विकसित नगर बसे हुए थे। यहीं पर सिन्धु घाटी की सभ्यता और मोहनजोदड़ो के शहर भी बसे थे। मोहनजोदड़ो सिन्धु नदी के दो टापुओं पर स्थित है।
         जब पुरातत्व शास्त्रियों ने पिछली शताब्दी में मोहनजोदड़ो स्थल की खुदाई के अवशेषों का निरीक्षण किया था तो वहां की गलियों में नरकंकाल पड़े थे। कई अस्थिपंजर चित अवस्था में लेटे थे और कई अस्थिपंजरों ने एक-दूसरे के हाथ इस तरह पकड़ रखे थे मानो किसी विपत्ति ने उन्हें अचानक उस अवस्था में पहुंचा दिया था। उन नरकंकालों पर उसी प्रकार की रेडियो एक्टिविटी के चिह्न थे, जैसे कि जापानी नगर हिरोशिमा और नागासाकी के कंकालों पर एटम बम विस्फोट के पश्चात देखे गए थे। मोहनजोदड़ो स्थल के अवशेषों पर नाइट्रिफिकेशन के जो चिह्न पाए गए थे, उसका कोई स्पष्ट कारण नहीं था, क्योंकि ऐसी अवस्था केवल अणु बम के विस्फोट के पश्चात ही हो सकती है। उल्लेखनीय है कि महाभारत में अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था जिसके चलते आकाश में कई सूर्यों की चमक पैदा हुई थी, जो एटमिक बम ही था |

 

 

Description: C:\Users\User\Desktop\रथ.jpgDescription: C:\Users\User\Pictures\बेल्ल गाडी हरप्पा.jpgDescription: C:\Users\User\Pictures\रथ के पूर्व रूप -हरप्पा.jpgDescription: C:\Users\User\Desktop\शिव लिंग -हरप्पा.jpg

 

वाहन ,बैल गाड़ी,                   रथ का पूर्व रूप ,                                      शिव लिंग

Description: C:\Users\User\Desktop\मृदभांड.jpg Description: C:\Users\User\Desktop\खिलोने.jpeg Description: C:\Users\User\Desktop\images (7).jpeg Description: C:\Users\User\Desktop\Harappan architecture and sculpture....jpg

मृद्भांड जो अभी हाल तक प्रयोग होते थे .. खिलोने,…स्वास्तिक पूर्व रूप, ..

 

 

Description: C:\Users\User\Desktop\विशेष\harappa village.jpgDescription: C:\Users\User\Desktop\हरप्पा- वैदिक\प्रकृति -हरप्पा.jpegDescription: C:\Users\User\Desktop\1.jpg Description: C:\Users\User\Desktop\Shiva KANCHI_5_JPG_2338699gकैलाश मंदिर--700ई.jpgशिव

कच्ची ईँटोँ के  गाँव व घर व जल निकास जो अभी हाल तक हमारे गाँवोँ में थे....  व पशुपति – योगीराज

पशुपति नाथ पूर्व रूप शिव---शिव काँची ( 700 ई )

Description: C:\Users\User\Desktop\Dikpalas and their vahanas.jpg Description: C:\Users\User\Desktop\हिंदू देव्ता.jpg Description: C:\Users\User\Desktop\हरप्प मोहर---सप्त मातृकायेन.png Description: C:\Users\User\Desktop\विष्णु -ब्रह्मा का पूर्व रूप.jpg

चार दिक्पाल , हिंदू देवता, सप्तमातृकायेँ, विष्णु व ब्रह्मा का पूर्वरूप

Description: C:\Users\User\Desktop\images (4).jpeg Description: C:\Users\User\Desktop\images (1).jpeg Description: C:\Users\User\Desktop\मूर्ति कला.jpg

रामायण कालीन , दशानन ...... नर, या राजा , पुजारी

                 सिंधु लिपि लंबे समय तक पढ़ी नहीं जा सकी। इसके कुछ वाजिब कारण हैं। सिंधु घाटी सभ्यता काफी समय पहले, लगभग 4,000 साल पहले विकसित हुई थी।समय का अन्तराल वास्तव में बहुत बड़ा है और आधुनिक मनुष्य यह कल्पना करने में सक्षम नहीं है कि ये मुहरें किस सन्दर्भ में तैयार की गयी थीं तथा उन मुहरों पर क्या लिखा हुआ है।

       शुरुआती सिंधु पुरातत्वविदों ने इन उत्खनन स्थलों को महानगरके रूप में पहचानने की मूलभूत गलती की, जबकि वास्तव में वे नेक्रोपोलिसथे। इस मूलभूत गलती ने मुहरों और उनके शिलालेखों की भूमिका को पहचानना और पहचानना मुश्किल बना दिया था।

          सिंधु मुहर शिलालेखों के कई गूढ़-पाठ उपलब्ध हैं, कुछ द्रविड़ भाषा पर आधारित हैं और कुछ आर्यन भाषा पर आधारित हैं। लेकिन, कोई भी गूढ़-पाठक कुछ भी पुख्ता तौर पर साबित नहीं कर पाया क्योंकि कोई संदर्भ बिंदु नहीं है।

           सिंधु मुहरों पर शिलालेखों में बलि दिए जाने वाले पशुओं और समारोह की प्रकृति के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। कुछ समारोह पापों की क्षमा पाने के लिए किए जाते थे और अन्य मृत पूर्वजों की आत्माओं को प्रसन्न करने के लिए किए जाते थे (पितृ कर्म समारोह)

                सिंधु लिपि की भाषा लंबे समय तक एक पहेली बनी रही और अब निष्कर्ष यह निकला है कि सिंधु लिपियाँ "लोगो-सिलेबिक" तरीके से लिखी गई हैं और सभी सिंधु शिलालेख संस्कृत भाषा पर आधारित हैं।

 

       अभी हाल में ही हरप्पा  सील की भाषा डीकोड की गयी है यह संस्कृत  थी।  अर्थात संस्कृत भाषा पर आधारित है सिंधु लिपि  तथा  यज़ुर्वेद  के मंत्र, सिंधु घाटी सभ्यता में रचे गये वस्तुत: हड़प्पा सभ्यता लुप्त नहीँ हुई अपितु वैदिक सभ्यता में समाहित होगयी।

इंडस वाली की लिपि में यजुर्वेद के मंत्रों की भरमार---

 https://youtu.be/d7vbYvNJIKI?si=gsG1HW0gfaLcJodR

https://youtube.com/shorts/EXfpwwBTDX4?si=IDf-5AALZr6vi8KM 

        हरप्पा  या  सिन्धु घाटी  या  सिंधु-सरस्वती सभ्यता नष्ट नहीं हुई अपितु वह वैदिक सभ्यता में विलीन होकर एकाकार होगईहरप्पा सभ्यता सेà सिंधु घाटी सभ्यता à सिंधु-सरस्वती सभ्यता à वैदिक सभ्यता  àसनातन  हिंदू सभ्यता ...  आज भी हिन्दू या भारतीय या सनातन सभ्यता उसी सरस्वतीसभ्यता एवं वैदिक सभ्यता के मूल गुण धर्म अपनाये हुए है |

             हम जो कुछ भी हरप्पा सभ्यता वैदिक सभ्यता में देखते हैं, धर्मप्राकृतिक पूजा, स्त्री-सत्तात्मक समाज, वर्तनमिट्टी कांस्य, खिलौने, मातृशक्ति महत्ता, पशुपति शिव, स्वास्तिक, चक्र, इंद्र, विष्णु, ब्रह्मा, देवी पार्वती, दक्ष, सुमेरु, स्वर्ग, इन्द्रलोक, वेद, व्यवहार, रहन-सहन, भाषाएँ..  वह सभी आज भी समस्त भारत में उत्तर, दक्षिण में अपितु समस्त विश्व में विभिन्न भावान्तर, भाषांतर, एवं स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार विभिन्न धार्मिक अंतर से व्याप्त है, इससे प्रतीत होता है  कि सभी धर्म आदि-वैदिक धर्म के ही रूपांतर हैं |

 

         यदि सचाई  से यह जाना जाय कि दुनियाभर की प्राचीन सभ्यताओं से हिन्दू धर्म का क्या सम्बन्ध था तो ज्ञात होगा कि  संपूर्ण धरती पर हिन्दू वैदिक धर्म ने ही लोगों को सभ्य बनाने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में धार्मिक विचारधारा की नए नए रूप में स्थापना की थी? आज दुनिया भर के  धार्मिक, संस्कृति और समाज में हिन्दू धर्म की झलक देखी जा सकती है चाहे वह यहूदी धर्म हो, पारसी धर्म हो या ईसाई-इस्लाम धर्म हो।


       ईसा से 2300-2150 वर्ष पूर्व सुमेरिया, 2000-400 वर्ष पूर्व बेबिलोनिया, 2000-250 ईसा पूर्व ईरान, 2000-150 ईसा पूर्व मिस्र (इजिप्ट), 1450-500 ईसा पूर्व असीरिया, 1450-150 ईसा पूर्व ग्रीस (यूनान), 800-500 ईसा पूर्व रोम की सभ्यताएं विद्यमान थीं। उक्त सभी से पूर्व महाभारत का युद्ध लड़ा गया था इसका अर्थ है कि 3500 ईसा पूर्व भारत में एक पूर्ण विकसित सभ्यता थी।

         सिन्धु-सरस्वती घाटी की सभ्यता (5000-3500 ईसा पूर्व) : हिमालय से निकलकर सिन्धु नदी अरब के समुद्र में गिरती है। प्राचीनकाल में इस नदी के आसपास फैली सभ्यता को ही सिन्धु घाटी की सभ्यता कहा गया। इस नदी के किनारे के दो स्थानों हड़प्पा और मोहनजोदड़ो  (अब पाकिस्तान) में की गई खुदाई में सबसे प्राचीन और पूरी तरह विकसित नगर और सभ्यता के अवशेष मिले इसके बाद चन्हूदड़ों, लोथल, रोपड़, कालीबंगा (राजस्थान), सूरकोटदा, आलमगीरपुर (मेरठ), बणावली (हरियाणा), धौलावीरा (गुजरात), अलीमुराद (सिंध प्रांत), कच्छ, रंगपुर (गुजरात), मकरान तट (बलूचिस्तान), गुमला (अफगान-पाक सीमा) आदि जगहों पर खुदाई करके प्राचीनकालीन कई अवशेष इकट्ठे किए गए। अब इसे सैंधव सभ्यता कहा जाता है।

         हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो में असंख्य देवियों की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। ये मूर्तियां मातृदेवी या प्रकृति देवी की हैं। प्राचीनकाल से ही मातृ या प्रकृति की पूजा भारतीय करते रहे हैं और आधुनिक काल में भी कर रहे हैं। यहां हुई खुदाई से पता चला है कि हिन्दू धर्म की प्राचीनकाल में कैसी स्थिति थी सिन्धु घाटी की सभ्यता को दुनिया की सबसे रहस्यमयी सभ्यता माना जाता है, क्योंकि इसके पतन के कारणों का अभी तक खुलासा नहीं हुआ है।

          नए अध्ययन के अनुसार  इस काल में महाभारत युद्ध इसी क्षेत्र में हुआ था। लोगों के बीच हिंसा, संक्रामक रोगों और जलवायु परिवर्तन ने करीब 4 हजार साल पहले सिन्धु घाटी या हड़प्पा सभ्यता का खात्मा करने में एक बड़ी भूमिका निभाई थी।

            नॉर्थ कैरोलिना स्थित एप्पलचियान स्टेट यूनिवर्सिटी में नृविज्ञान (एन्थ्रोपोलॉजी) की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. ग्वेन रॉबिन्स शुग ने एक बयान में कहा कि जलवायु, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों, सभी ने शहरीकरण और सभ्यता के खात्मे की प्रक्रिया में भूमिका निभाई, लेकिन इस बारे में बहुत कम ही जानकारी है कि इन बदलावों ने मानव आबादी को किस तरह प्रभावित किया।

 

       आज जो पाकिस्तान और अफगानिस्तान है, महाभारतकाल में इसे पांचाल, गांधार, मद्र, कुरु और कंबोज की स्थली कहा जाता था। अयोध्या और मथुरा से लेकर कंबोज (अफगानिस्तान का उत्तर इलाका) तक आर्यावर्त के बीच वाले खंड में कुरुक्षेत्र था, जहां यह युद्ध हुआ। आजकल यह हरियाणा का एक छोटा-सा क्षेत्र है।
 

         उस काल में सिन्धु और सरस्वती नदी के पास ही लोग रहते थे। सिन्धु और सरस्वती के बीच के क्षेत्र में कई विकसित नगर बसे हुए थे। यहीं पर सिन्धु घाटी की सभ्यता और मोहनजोदड़ो के शहर भी बसे थे। मोहनजोदड़ो सिन्धु नदी के दो टापुओं पर स्थित है।
         जब पुरातत्व शास्त्रियों ने पिछली शताब्दी में मोहनजोदड़ो स्थल की खुदाई के अवशेषों का निरीक्षण किया था तो वहां की गलियों में नरकंकाल पड़े थे। कई अस्थिपंजर चित अवस्था में लेटे थे और कई अस्थिपंजरों ने एक-दूसरे के हाथ इस तरह पकड़ रखे थे मानो किसी विपत्ति ने उन्हें अचानक उस अवस्था में पहुंचा दिया था। उन नरकंकालों पर उसी प्रकार की रेडियो एक्टिविटी के चिह्न थे, जैसे कि जापानी नगर हिरोशिमा और नागासाकी के कंकालों पर एटम बम विस्फोट के पश्चात देखे गए थे। मोहनजोदड़ो स्थल के अवशेषों पर नाइट्रिफिकेशन के जो चिह्न पाए गए थे, उसका कोई स्पष्ट कारण नहीं था, क्योंकि ऐसी अवस्था केवल अणु बम के विस्फोट के पश्चात ही हो सकती है। उल्लेखनीय है कि महाभारत में अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया था जिसके चलते आकाश में कई सूर्यों की चमक पैदा हुई थी, जो एटमिक बम ही था |

 

 

Description: C:\Users\User\Desktop\रथ.jpgDescription: C:\Users\User\Pictures\बेल्ल गाडी हरप्पा.jpgDescription: C:\Users\User\Pictures\रथ के पूर्व रूप -हरप्पा.jpgDescription: C:\Users\User\Desktop\शिव लिंग -हरप्पा.jpg

 

वाहन ,बैल गाड़ी,                   रथ का पूर्व रूप ,                                      शिव लिंग

Description: C:\Users\User\Desktop\मृदभांड.jpg Description: C:\Users\User\Desktop\खिलोने.jpeg Description: C:\Users\User\Desktop\images (7).jpeg Description: C:\Users\User\Desktop\Harappan architecture and sculpture....jpg

मृद्भांड ,  जो अभी हाल तक प्रयोग होते थे .. खिलोने,…स्वास्तिक पूर्व रूप, ..

 

 

Description: C:\Users\User\Desktop\विशेष\harappa village.jpgDescription: C:\Users\User\Desktop\हरप्पा- वैदिक\प्रकृति -हरप्पा.jpegDescription: C:\Users\User\Desktop\1.jpg Description: C:\Users\User\Desktop\Shiva KANCHI_5_JPG_2338699gकैलाश मंदिर--700ई.jpgशिव

कच्ची ईँटोँ के  गाँव व घर व जल निकास जो अभी हाल तक हमारे गाँवोँ में थे....  व पशुपति – योगीराज

पशुपति नाथ -  पूर्व रूप शिव---शिव काँची ( 700 ई )

Description: C:\Users\User\Desktop\Dikpalas and their vahanas.jpg Description: C:\Users\User\Desktop\हिंदू देव्ता.jpg Description: C:\Users\User\Desktop\हरप्प मोहर---सप्त मातृकायेन.png Description: C:\Users\User\Desktop\विष्णु -ब्रह्मा का पूर्व रूप.jpg

चार दिक्पाल , हिंदू देवता, सप्तमातृकायेँ, विष्णु व ब्रह्मा का पूर्वरूप

Description: C:\Users\User\Desktop\images (4).jpeg Description: C:\Users\User\Desktop\images (1).jpeg Description: C:\Users\User\Desktop\मूर्ति कला.jpg

रामायण कालीन , दशानन ...... नर, या राजा , पुजारी

                 सिंधु लिपि लंबे समय तक पढ़ी नहीं जा सकी। इसके कुछ वाजिब कारण हैं। सिंधु घाटी सभ्यता काफी समय पहले, लगभग 4,000 साल पहले विकसित हुई थी।समय का अन्तराल वास्तव में बहुत बड़ा है और आधुनिक मनुष्य यह कल्पना करने में सक्षम नहीं है कि ये मुहरें किस सन्दर्भ में तैयार की गयी थीं तथा उन मुहरों पर क्या लिखा हुआ है।

       शुरुआती सिंधु पुरातत्वविदों ने इन उत्खनन स्थलों को महानगरके रूप में पहचानने की मूलभूत गलती की, जबकि वास्तव में वे नेक्रोपोलिसथे। इस मूलभूत गलती ने मुहरों और उनके शिलालेखों की भूमिका को पहचानना और पहचानना मुश्किल बना दिया था।

          सिंधु मुहर शिलालेखों के कई गूढ़-पाठ उपलब्ध हैं, कुछ द्रविड़ भाषा पर आधारित हैं और कुछ आर्यन भाषा पर आधारित हैं। लेकिन, कोई भी गूढ़-पाठक कुछ भी पुख्ता तौर पर साबित नहीं कर पाया क्योंकि कोई संदर्भ बिंदु नहीं है।

           सिंधु मुहरों पर शिलालेखों में बलि दिए जाने वाले पशुओं और समारोह की प्रकृति के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है। कुछ समारोह पापों की क्षमा पाने के लिए किए जाते थे और अन्य मृत पूर्वजों की आत्माओं को प्रसन्न करने के लिए किए जाते थे (पितृ कर्म समारोह)

                सिंधु लिपि की भाषा लंबे समय तक एक पहेली बनी रही और अब निष्कर्ष यह निकला है कि सिंधु लिपियाँ "लोगो-सिलेबिक" तरीके से लिखी गई हैं और सभी सिंधु शिलालेख संस्कृत भाषा पर आधारित हैं।