नित नए रूप रख आती है।
उस परम- तत्त्व की इच्छा बन,
यह सारा साज सजाती है।
वह लक्ष्मी है, वह सरस्वती ,
वह माँ काली ,वह पार्वती ।
वह महा शक्ति है अणु- कण की
वह स्वयं शक्ति है कण- कण की
वह ऊर्जा बनी मशीनों की ,
विज्ञान ज्ञान- धन कहलाई ।
वह आत्म शक्ति ,मानव मन मैं ,
संकल्प शक्ति बनकर छाई।
वह प्यार बनी तो दुनिया को ,
कैसे जियें , यह सिखलाया।
नारी बनकर कोमलता का ,
सौरभ- घट उसने छलकाया।
--आदि-शक्ति परमेश्वरी ( काव्य- दूत से )
__सीता का निर्वासन ?-----
अहल्या व शबरी ,
सारे समाज की आशंकाएं हैं ;जबकि-
सीता , राम की व्यक्तिगत शंका है।
व्यक्ति से समाज बड़ा होता है ,
इसीलिये तो,
सीता का निर्वासन होता है।
स्वयं पुरूष का निर्वासन ,
कर्तव्य-विमुखता व कायरता कहाता है ,
अतः , कायर की पत्नी ,
कहलाने की बजाय ,
सीता को निर्वासन ही भाता है। --(काव्य-मुक्तामृत से)
---डॉ श्याम गुप्ता
3 टिप्पणियां:
your poetry has an edge over the prose,a female is a source of energy which manifest in many forms and transforms to other forms,she is the generator of this universe,can generate the same male who copulated with her in the form of a son.A male can not do this and is only a father.in its connotation also a fe-male contains a male.sasakt rachnaon ke liye badhai.
dhanyvaad -VEERUBHAAI,
"naaree bhaav naheen thaa jabtak,
falit srishti kee swatah-prakriya,
kaise bhala safal ho paatee ?
aadhy-shakti ka huaa avtaran ,
huaa samanvay nar-naaree kaa ;
poorn huaa kram srishti yagy kaa."
--mere srishti-(eeshat ichchha ya bigbang-ek anuttarit uttar-)mahaakavy se.
sach hai veerubhai, naaree ke jab tak brahmaaji bhi upekshaa karte rahe ,maithunee srishti kee automatik naheen prarambh kar paarahe the. jab daksh ko putriyan utpann huee tabhee srishti aage chlsakee .brahma ko srishti nirmaan ka smaran bhee aadhy-shakti ,sarashvati ne karaya thaa.
veeru ji,
this poetry is in new vidhaa of atukant poetry called AGEET_VIDHA
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