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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

खिलाड़ी हैं हमसे खेलें नहीं , नहीं तो ------

मेरी समझ मैं यह कभी नहीं आया किखेलों को इतना महत्त्व ,तूल देने की क्या आवश्यकता है। खेल शारीरिक व्यायाम व खेल के लिए होते हैं न कि किसी प्रतिस्पर्धा ,या पैसा कमाने के लिए। अतः खेल को कैरियर बनाने को भी निरुत्साहित किया जाना चाहिए ।जो प्रतिभा अन्य आवश्यक महत्त्व के कार्यों मैं लग सकती है वह अनावश्यक नष्ट हो रही है। मेरे विचार से खेल आदि सिर्फ़ स्कूल ,कालिज स्तर तक ही होने चाहिए । आगे सभी खेल ,खेल विभाग व मंत्रालय आदि बंद कर देने चाहिए । हमें अच्छे नागरिक -जो देश ,समाज की ,मानवता की उन्नति मई योगदान करें - चाहिए न कि प्रोफेशनल ,पैसे के लिए खेलने वाले खिलाड़ी ।
खेल को धंधा बनाने का वही परिणाम होता है जो आज हो रहा है -अनुशाशन हीन ,आत्म मुग्ध, घमंड से पूर्ण युवा , जो राष्ट्रपति का भी अपमान कर सकते हैं।
अत्यधिक खेल एवं खेल को प्रोफेशन बनाने के कारण ही "रोम " साम्राज्य का पतन हुआ। क्योंकि अनावश्यक व समाज ,देश राष्ट्र , मानवता के व्यापक हित से रहित प्रतिस्पर्धा
सदैव भ्रष्ट राजनीति व आचरण को जन्म देती है।
धंधेबाज ,पैसे के लिए खेलों के आयोजनों की कोई आवश्यकता नहीं है इन्हें शीघ्र समाप्त कर देना चाहिए।

1 टिप्पणी:

Anil Kumar ने कहा…

तर्कसंगर ख्यालात हैं। लेकिन खेल राष्ट्रप्रेम का साधन भी तो हो सकते हैं। भ्रष्टाचार के इस कलियुग में किसी खेल में भारत की जीत पर कुछ तो खुशी होती है, वह भी छिन जायेगी तो जाने क्या करेंगे!