1.श्याम घनाक्षरी --३३ वर्ण ,१८-१५ , अंत -दो गुरु (म गण )
दहन सी दहकै द्वार- देहरी दगर- दगर,
कली कुञ्ज कुञ्ज ,क्यारी क्यारी कुम्हिलाई है।
पावक प्रतीति पवन ,परसि पुष्प,पात -पात ,
जरै तरु गात डाली -डाली मुरझाई है।
जेठ की दुपहरी रही तपाय सखि अंग-अंग,
मलय बयार मन मार अलसाई है।
तपेंनगर -गावं ,छावं ढूढ़ रही शीतल ठावं ,
धरती गगन श्याम आगि सी लगाई है॥
मनहरण -३१ वर्ण ,१६-१५ ----
सुनसान गलियाँ वन बाग़ बाज़ार पड़े ,
जीभ को निकाल श्वान हांफते से जारहे ।
कोई पड़े ऐ -सी कक्ष कोई लेटे तरु छाँह ,
कोई झलें पंखा कोई कूलर चला रहे ।
जब कहीं आवश्यक कार्य से है जाना पड़े ,
पौछते पसीना तेज कदमों से जारहे।
ऐनक लगाए ,श्याम छतरी लिए हैं हाथ ,
नर नारी सबही,पसीने से नहा रहे।।
३--मदनहरण३२ वर्ण ,१६-१६ या ८,८,८,८, अंत -गुरु ,गुरु ---
टप टप टप टप ,अ न्ग बहे स्वेद धार ,
जिमि उतरि गिरि-श्रृंग ,जलधार आई है ।
बहै घाटी मध्य करि,विविध प्रदेश पार ,
बनी धार सरिता जाय सिन्धु मैं समाई है ।
खुले खुले केश श्याम ,ढीले बस्त्र तिय देह,
उमंगें उरोज उर , उमंग उमंगाई है।
ताप से तपे हैं तन ,ताप तपें तन मन ,
निरखि नैन नेह ,नेह निर्झर समाई है।।
चुप चुप चकित न चहकि रहे खग वृन्द ,
सारिका ने शुक से यूँ न चौंच भीलड़ाई है ,
बाज़ और कपोत बैठे एक ही तरु डाल,
मूषक ओ विडाल भूल बैठे शत्रुताई है।
नाग -मोर एक ठांव ,सिंह -मृग एक छाँव ,
धरती मनहुं तपो भूमि जिमि सुहाई है।
श्याम ,गज-ग्राह मिलि बैठे सरिता के कूल ,
जेठ बांटें बातें साधु भाव जग लाई है ।
मनहरण ----
हर गली गाँव हर नगर मग ठांव ,
जन जन जल शीतल पेय हैं पिला रहे ।
कहीं हैं मिष्ठान्न बाटें, कहीं है ठंडाई घुटे ,
मीठे जल की भी कोई प्याऊ लगवा रहे ।
राह रोकि हाथ जोरि ठंडा जल भेंट कर ,
हर तप्त राही को ही ठंडक दिला रहे।
भुवन भास्कर धरि मार्तंड रूप श्याम ,
उंच नीच भाव मनहु मन के मिटा रहे॥
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- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
सोमवार, 4 मई 2009
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3 टिप्पणियां:
हर गली गाँव हर नगर मग ठांव ,
जन जन जल शीतल पेय हैं पिला रहे ।
कहीं हैं मिष्ठान्न बाटें, कहीं है ठंडाई घुटे ,
मीठे जल की भी कोई प्याऊ लगवा रहे ।
राह रोकि हाथ जोरि ठंडा जल भेंट कर ,
हर तप्त राही को ही ठंडक दिला रहे।
भुवन भास्कर धरि मार्तंड रूप श्याम ,
उंच नीच भाव मनहु मन के मिटा रहे॥
बहुत खूब श्याम जी !!!!!!!!!!
धन्य्वाद विक्रान्त.
वैसे ब्लोगर्स कविता व विचार-प्रवाह पर कम, ्शायरी पर अधिक कमेन्ट कर रहे हैं??
धन्य्वाद विक्रान्त.
वैसे ब्लोगर्स कविता व विचार-प्रवाह पर कम, ्शायरी पर अधिक कमेन्ट कर रहे हैं??
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