११.भाव पदार्थ निर्माण ( विकृतियाँ -भाव रूप श्रृष्टि )--इन्द्रियाँ व उनके भाव --सभी भाव मूल रूप से "अहं" -(सत्,तम्, रज) के विकृत (परिवर्तित ) रूपों से बने ---यथा -
---तामस भाव विकृति से--शब्द,आकाश,धारणा ,ध्यान,विचार,स्वार्थ,लोभ,मोह,भय,सुख-दुःख,आदि।
---रज् भाव " " ---५ ज्ञानेन्द्रियाँ -कान,नाक,नेत्र ,जिव्हा ,त्वचा
---५.कर्मेन्द्रियाँ -वाणी ,हाथ,पैर,गुदा,उपस्थ । व रूप गुण से-- तैज़स - (वस्तु का रसना भाव ) - जिससे जल द्वारा -गंध,सुगंध आदि भाव बने ।
---सत्व भाव -- "- " --मन(इन्द्रिय ) ,५ तन्मात्राएँ (ज्ञानेन्द्रियों के भाव -शब्द,रूप ,स्पर्श ,गंध ,रस ) व १० इन्द्रियों के अधिष्ठाता देव ।
१२.समय ( काल )---अन्तरिक्ष में स्थित बहुत से भारी कणोंने ,स्थितिक मूल ऊर्जा ,नाभिकीय व विकिरित ऊर्जा व प्रकाश आदि के कणों को अत्यधिक मात्रा में मिलाकर कठोर( रासायनिक ) बंधन(राक्षस ) बनालिए थे,जिससे प्रगति रुकी थी एवं वे टूट कर ऊर्जा का उपयोग न होने दे रहे थे । काफी समय बाद तीव्रविशिष्ट रासायनिक प्रक्रियाओं (इन्द्र) द्वारा विभिन्न उत्प्ररकों (बज्र ) की सहायता से उन को तोडा । इस प्रकार टूट कर बिखरे हुए वे कण --कालकांज-या समय के अणु कहलाये । इन कणों से ----
------विभिन्न ऊर्जाएं ,हलके कण व प्रकाश कण मिलाकर विरल पिंड ( द्यूलोक के शुन )हुए जिनमें नाभिकीय ऊर्जा के कारण सतत संयोजन (फ्यूज़न ) व विखंडन (फिसन )के गुण थे ,,जिनसे सारे नक्षत्र (सूर्य तारे आदि ),आकाश गंगाएं (गेलेक्सी ) व ,नीहारिकाएं (नेब्यूला )आदि बने।
------स्थितिक मूल ऊर्जाएं , भारी व कठोर कण मिलाकर जिनमें अति उच्च ताप भी था , अन्तरिक्ष के कठोर पिंड --ग्रह,उपग्रह,पृथ्वी आदि बने । ये सारे पिंड द्युलोक में अन्य सभी के साथ घूम रहे थे।
क्योंकि यहाँ से प्रथम बार दृश्यश्रृष्टि -ज्ञान के पिंड बने जो एक दूसरे के सापेक्ष घूम रहे थे , अतः समय की गणना यहाँ से प्रारंभ मानी गयी ।
[-शायद इन्हीं काल कांज कणों को विज्ञान के बिग बेंग (विष्फोट ) वाला कण कहाजासकता है , आधुनिक -विज्ञान यहाँ से अपनी सृष्टि -निर्माण यात्रा प्रारंभ करता है। ]
१३.जीव श्रृष्टि की भाव संरचना --वह चेतन परब्रह्म जड़ व जीव दोनो में ही निवास करता है । उस ब्रह्म का अभूः अर्थात सावित्री परिकर जड़ सृष्टि करता है। उसीका भुवः अर्थात गायत्री परिकर --जीव सृष्टि की रचना करता है। वह परात्पर स्वयम्भू परब्रह्म इस प्रकार रचना करता है ---परात्पर -विभाजित =परा+अपरा । परा शक्ति -आदि शंभु (अव्यक्त) व अपरा शक्ति (आदि माया-अव्यक्तके संयोग=महत्तत्व (व्यक्त)
महतत्व से ==व्यक्त पुरूष (आदि विष्णु ) व व्यक्त माया (आदि माया )
aadi vishnu se --महा विष्णु -महा शिव -महाब्रह्मा एवं आदि माया से -रमा -उमा -सावित्री जो क्रमशः
(पालक ) (संहारक ) (धारक ) व (सृजक )-(संहारक )-(स्फुरण ) तत्व हैं ।
महाविष्णु व रमा के संयोग से अनंत चिद -बीज (सक्रिय तत्व कण व सृजक ऊर्जा के संयोग ) या हेमांड या ब्रह्माण्ड या अंडाणु की उत्पत्ति --ये चिद बीज असंख्य व अनंत संख्या में महा विष्णु ( अनंत आकाश,अन्तरिक्ष ) के रोम-रोम में ( असंख्य सब और बिखरे हुए ) व्याप्त थे। प्रत्येक हेमांड की स्वतंत्र सत्ता थी। प्रतेक हेमांड में --महाविष्णु से स्वयं भाव से उत्पन्न ,विष्णु चतुर्भुज व विभिन्नांश से उत्पन्न लिंग महेश्वर व ब्रह्मा , तीनों देव प्रविष्ट होगये। इस प्रकार प्रत्येक ब्रह्माण्ड में --त्रिदेव +माया + परा अपरा शक्ति +द्रव्य प्रकृति + विश्वोदन अजः जो बन चुका था -उपस्थित था , सृष्टि रूप में उद्भूत होने के लिए। ( अब आधुनिक विज्ञान भी यही मानता है कि अन्तरिक्ष में अनंत -अनंत आकाश गंगाएं(गेलेक्सी ) हें जिनके अपने अपने अनंत सौर मंडलसूर्य ,ग्रह, आदि हैं, जो प्रत्येक अपनी स्वतंत्र सत्ताएं हैं। )
१४.श्रृष्टि निर्माण ज्ञान भूला हुआ ब्रह्मा ( निर्माण में रुकावट )---लगभग एक वर्ष(ब्रह्मा का =मानव के लाखों वर्ष ) तक ब्रह्मा ,जिसे सृष्टि का रूप -निर्माण करना था ,उस हेमांड में घूमता रहा । सृष्टि निर्माण प्रक्रिया वह नहीं समझ पा रहा था ।(आधुनिक विज्ञान के अनुसार हाइड्रोजन ,हीलियम समाप्त होने से श्रृष्टि क्रम युगों तक रुका रहा , पुनः नई ऊर्जा बनने पर प्रारंभ हुआ । ) जब ब्रह्मा ने विष्णु की प्रार्थना की और क्षीर सागर (अन्तरिक्ष ,महाकाश ,ईथर )में उपस्थित शेष शय्या पर लेटे(बची हुई मूल संरक्षित ऊर्जा ) नारायण ( नार =जल ,अन्तरिक्ष में ,अयन =निवास )के नाभि (और नाभिक ऊर्जा ) से स्वर्ण कमल ( सत्,तप, श्रृद्धा रूप )पर वह ब्रह्मा उपस्थित हुआ , नारायण की कृपा से ,आज्ञा से .आदि माया -सरस्वती का रूप धरकर वीणा ध्वनीसाथ प्रकट हुईं तथा प्रार्थना करने पर ,ब्रह्मा के ह्रदय में प्रविष्ट हुईं , और उसे श्रृष्टि -निर्माण प्रक्रिया का ज्ञान हुआ।
१५.ब्रह्मा द्वारा सृष्टि रचना का मूल संक्षिप्त क्रम ---चार चरण में रचना ----
i.सावित्री परिकर --मूल जड़ सृष्टि कि रचना -जो निर्धारित ,निश्चित अनुशासन व कठोर (रासायनिक व भौतिक नियम ) के अनुसार चलें व सतत गतिशील ,परिवर्तन शील थे ।
ii.गायत्री परिकर ---तीन चरण की जीव सत्ता --
----१.देव-सदैव देते रहने वाले , परमार्थ भाव मयk,पवन ,अग्नि ,पृथ्वी ,वरुण एवं बृक्ष(वनस्पति जगत )
----मानव -पुरुषार्थ ,आत्म बोध,ज्ञान ,कर्म मय ,पृथ्वी का श्रेष्ठ तत्व ।
----३.प्राणी जगत -प्रकृति के अनुसार ,सुविधा भावः से जीने वाले , मानव व उद्भिज जगत के मध्य संतुलन रखने वाले । ----क्या यह एक संयोग नहीं है कि विज्ञान जीवन को संयोग (बाई चांस ) कहता है ,वहीं वेद उसे महाविष्णु व रमा या प्रकृति -पुरूष का संयोग - हाँ, है संयोग ही।
------क्रमशः --आगे ब्रह्मा द्वारा सृष्टि विनिर्माण प्रक्रिया का विस्तृत वर्णन व प्रलय ।
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- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
शुक्रवार, 12 जून 2009
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