नयनों में सावन मास थे भादों सजा दिये।
मस्ती भरी उस रात का क्या वाकया कहें,
दामन में अम्नो-चेन सब जग के समा लिये।
पहलू में कायनात थी तन-दीप थे जले,
सुरभित गुलाव रूह में कितने खिला दिये।
हमने वफ़ा की राह में जो रख दिये कदम,
तुम राह चल सके नहीं पर हम चला किये।
शिकवा-गिला नहीं,ये है यादों का सिल सिला,
राहें जुदा हैं जब भला तो क्या गिला किये।
अब तो किसी भी बात का कोई गिला नहीं,
दिल ने तुम्हारी याद के दीपक जला लिये।
बस आरजू है ’श्याम की, इतना जो कर सको,
राहों में जब मिला करो,बस मुस्कुरा दिये ॥
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