आजकल कुछ स्वयंभू ब्लॉग, सम्पादक व विद्वान् - अंधविश्वास को हटाने व वैज्ञानिक सोच का प्रसार करने का तमगा लगाए हुए हैं व छोटी-छोटी बातों को लिख कर विज्ञान-विज्ञान चिल्ला रहे हैं | वस्तुतः अंधविश्वास है क्या ---
---अंधविश्वास कोई वस्तुनिष्ठ या तथ्य निष्ठ बात नहीं है जिसे आप हटायेंगे ; अंधविश्वास --अंधे होकर अर्थात विना सोचे समझे किसी बात या तथ्य , घटना पर विश्वास कर लेना । यह एक व्यक्तिनिष्ठ तथ्य है ,मानव के अज्ञान- पर आधारित। कहावत है की अन्धेरा-अन्धेरा चिल्लाने व वर्णन करने से अन्धकार दूर नहीं होता |इसलिए शास्त्र ज्ञान की बातें , रीति-रिवाजों की भर्तसना नही करनी चाहिए , कुरीतिओं का वर्णन नही करें इससे जिन कुरीत्यों को लोग भूलते जा रहे हैं (आज कल अधिकतर कुरीतियों को पढ़े likhe log naheen maanate -jaanate )ve punah jaagrat ho jaateen hain । अतः एक दीपक जलाइये , इतना उजाला कर दीजिये , अन्धेरा स्वयं ही दूर होजायेगा। क्योंकि अन्धेरा कभी सदैव को नष्ट नहीं होता ( क्योंकि वह भी एक सृष्टि है ताकि मानव सदैव सृष्टि कर्ता को, संयम सदाचरण को सदगुणों को न भूले व कर्म में प्रवृत्त रहे ) अतः लगातार दीप जलाए रखना आवश्यक है, चाहे प्रकाश का,ज्ञान का,शास्त्र, संयम ,विवेक का ,विज्ञान का |
----अब विज्ञान क्या है ?---एक होता है ज्ञान , अर्थात विवेक, प्रज्ञा बुद्धि की उत्पत्ति ( अनुभव, प्रमाण , शास्त्र ज्ञान द्वारा उत्पन्न ) जिससे व्यक्ति प्रत्येक वस्तु, तथ्य व घटना आदि के पीछे की वास्तविकता को जान सकता है ,जिसे आँखें खुलना,अन्तर्विश्वास , अंतर्बुद्धि, अंतर्ज्ञान,अतीन्द्रिय ज्ञान,तृतीय - नेत्र, सिक्स्थ सेन्स कहा जासकता है, त्रिकाल दर्शिता,ईश्वर, सत्य, न्याय, संयम,सदाचरण व ईश्वरीय ज्ञान इसकी पराकाष्ठा है |
दूसरा होता है विज्ञान -अर्थात विशिष्ट ज्ञान; प्रत्येक वस्तु व भाव आदि के बारे में भौतिक जानकारी , उसके भौतिक जीवन में उपयोग के बारे में जानकारी ---जीवन में प्रत्येक क्षेत्र व स्तर पर विज्ञान है , रसायन, जीव , चिकित्सा, धातु ,कला-विज्ञान , साहित्य का विज्ञान, शिल्प-विज्ञान ,समाज, मनो विज्ञान आदि-आदि --जिसे दर्शन में -अज्ञान- कहा गया है -क्योंकि ये शाश्वत व ईश्वरीय ज्ञान नहीं हें लौकिक हें,भाव समन्वयता का इसमें स्थान नहीं होता ,यह अन्तिम ज्ञान नहीं है ; अतः ज्ञान का ज्ञान होने पर ही अज्ञान- को जानना चाहिए ,ताकि मानव को ज्ञान का दंभ , कर्ता पन का दंभ न उत्पन्नं हो व दोनों में समन्वय रहे , यही मानव जीवन की सफलता है | तभी ईशोपनिषद में कहा गया है --
"""विद्या च अविद्या यस्तद वेदोभय सह । अविद्यया मृत्युम तीर्त्वा विद्यया अमृतं अनुश्ते ॥ """
अर्थात शास्त्र, ईश्वरीय ज्ञान व विज्ञान का साथ-साथ ज्ञान होना चाहिए अविद्या (विज्ञान-सांसारिक ज्ञान-) से संसार अर्थात मृत्यु को जीत कर(सफल जीवन जी कर ) ,विद्या ( ज्ञान) से अमृतत्व (मानसिक शान्ति , वास्तविक शान्ति,मुक्ति,कैवल्य ,परम धाम, ईश्वर प्राप्ति आदि ) प्राप्त करना चाहिए | आँखें खुलने पर मानव अंधविश्वास से स्वतः ही दूर रहेगा |
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- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
गुरुवार, 3 दिसंबर 2009
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4 टिप्पणियां:
एक डॉक्टर के पास हम जाते हैं .. वह इलाज के बहाने हमारी किडनी ही निकाल लेता है .. आप इसे क्या अंधविश्वास कहेंगे .. पर यह भी तो अंधविश्वास का नाजायज फायदा ही हुआ .. बस आज के युग के अनुरूप हर प्रकार की समस्या से निबटने के लिए ज्ञान का प्रसार कर देना चाहिए .. अंधविश्वास खुद कम हो जाएगा .. इसका अस्तित्व समाप्त नहीं हो सकता .. अंधविश्वास का गलत उपयोग न हो पाए .. इसके लिए जरूरत है सही जगह पर अंधविश्वास को उपयोग करने की .. यह क्षमता हमें लानी होगी !!
बहुत सार्गभित आलेख है शुभकामनायें
पर जो भी है अंधविश्वास है बड़ी उम्दा चीज।
हां ,जाने कितनों की रोज़ी-रोटी का जुगाड है ।
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