
राकेश कुमार यादव जी के इस आलेख से लगता है कि हमें व सरकार को जनता के सुख-सुविधाओं को द्वितीय स्थान पर (या बिल्कुल नहीं ) रखना चाहिए |भारतीय शास्त्रों में प्रत्येक कार्य के लिए एक विशिष्ट संदेश है , जो दूर दर्शन ने भी अपना लोगो बनाया है --
सत्यं शिवं सुन्दरं --अर्थात सत्य सबसे पहले व सुंदर सबसे बाद में | क्या आलेख लेखक व सरकार को यह सत्य नहीं दिखाई देता कि नगर की अधिकाँश सड़कें, गलियाँ,नालियां टूटी पडीं हैं; सडकों -गलियों में सीवर का पानी बह कर जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहा है, करप्सन हर जगह खुले आम हो रहा है, रोजाना लूट, ह्त्या, की वारदातें होरही हैं| कोई नगर या राजधानी , नागरिक सुविधाओं से नगर कहलाने योग्य,मुस्कुराने योग्य होता है यूंही नहीं | पहले वह कर दिखाइये ,फ़िर सौन्दर्यीकरण हो ,किसे आपत्ति होगी ? कूड़े के ढेर पर बैठे शहर को कौन प्रशंसा करे , कुछ स्वार्थी तत्व?
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सुबरन कलश सुरा भरा, साधू निंदा सोय"
आज आगरा,हेदराबाद , दिल्ली --ताज , क़ुतुब व चार मीनार से नहीं -गन्दगी, जल की कमी ,अपराधों के कारण नामी हैं | ताज, मीनार। क़ुतुब तो बस कमाई व विदेशी लोगों को बहलाने के साधन हैं |