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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

बुधवार, 24 मार्च 2010

राम नवमी पर विशेष ---डा श्याम गुप्त

सीता का निर्वासन

रात सपने में, श्री राम आये,
अपनी मोहक मुद्रा में -मुस्कुराए, बोले -
वत्स , प्रसन्न हूँ -वर मांगो ;
मैंने कहा,-प्रभु, कलयुगी तार्किक भक्त हूँ,
शंका रूपी एक गुत्थी सुलाझादों |

राम ! तुम्ही थे, जिसने-
समाज द्वारा ठुकराई हुई,
छले जाने पर ,किंकर्तव्य विमूढ़ -
ठुकराए जाने पर,
संवेदन हीन, साधन हीन, परित्यक्ता ,
पत्थर की शिला की तरह, कठोर-
क्रियाहीन, निश्चेष्ट , कर्तव्यच्युत ।
समाज विरोधी, एकाकी जड़ -अहल्या को;
चरण कमलों में स्थान देकर ,
समाज सेवा का पाठ पढ़ाकर,
मुख्य धारा में प्रतिष्ठापित किया था |

शबरी के बेर, प्रेम भाव से खाकर,
नारी व शूद्र उत्थान के पुरोधा बनकर,
तत्कालीन समाज में , उनके-
नए आयामों को परिभाषित किया था |

फिर क्या हुआ हे राम ! कि-
सिर्फ शंका मात्र से ही तुमने
सीता का निर्वासन कर दिया ?

राम बोले, 'वत्स ! अच्छा प्रश्न उठाया है -
सदियों से शंकाओं की शूली पर टंगा हुआ था,
आज उतरने का अवसर आया है |'
आखिर शंका ने ही तो
तुम्हें समाधान को उकसाया है |
तुमने भी तो, शंका का समाधान ही चाहा है |
शंका उठी है तो -
समाधान होना ही चाहिए |
समाधान के लिए सिर्फ बातें ही नहीं-
उदाहरण भी चाहिए |

अहल्या व शबरी-
सारे समाज की आशंकाएं हैं ,
जबकि, सीता राम की व्यक्तिगत शंका है |
व्यक्ति से समाज बड़ा होता है ,
इसीलिये तो , सीता का निर्वासन होता है |

स्वयं पुरुष का निर्वासन-
कर्तव्य विमुखता व कायरता कहाता है;
अतः कायर की पत्नी कहलाने की बजाय ,
सीता को निर्वासन ही भाता है ||

3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा रचना!!


रामनवमीं की अनेक मंगलकामनाएँ.
-
हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

अनेक शुभकामनाएँ.

shyam gupta ने कहा…

सही कहा, उडन तश्तरी जी, धन्यवाद.

Ashish (Ashu) ने कहा…

ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी...वाह.सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं