डा श्याम गुप्त की बाल कविता -----
ब्रह्मा जी ( बाल कविता )
दाड़ी वाले ब्रह्मा जी हैं ,
चार मुखों वाले दिखते जो |
चार वेद का ज्ञान चार मुख,
दुनिया रचने वाले हैं जो ||
ज्ञान नहीं यदि होगा तो फिर,
कोई काम न हो पायेगा |
धर्म अर्थ ओ काम मोक्ष युत ,
जीवन चक्र न चल पायेगा ||
इन्हें विधाता भी कहते हैं,
भाग्य सभी का लिखना काम |
यही पितामह हैं सब जग के,
बच्चो ! इनको करो प्रणाम ||
दाड़ी वाले ब्रह्मा जी हैं ,
चार मुखों वाले दिखते जो |
चार वेद का ज्ञान चार मुख,
दुनिया रचने वाले हैं जो ||
ज्ञान नहीं यदि होगा तो फिर,
कोई काम न हो पायेगा |
धर्म अर्थ ओ काम मोक्ष युत ,
जीवन चक्र न चल पायेगा ||
इन्हें विधाता भी कहते हैं,
भाग्य सभी का लिखना काम |
यही पितामह हैं सब जग के,
बच्चो ! इनको करो प्रणाम ||
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