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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 1 मई 2010

सामाजिक सरोकार --२...बालश्रम-अपराध का अधुनातम रूप ---खतरे में बचपन...

-----हमें सदैव भिखारी, होटलों में कार्यरत, बर्तन मांजते हुए गरीब बच्चे ही बाल श्रम के अत्याचार सहते हुए दिखाई देते हैं | ज़रा गौर फरमाइए ---स्कूलों में टीचरों की अनावश्यक बेगार करते हुए बच्चे, टी वी पर जबरदस्ती माँ बाप द्वारा अनजाने में , शौक में , गर्व व शान प्रदर्शन में, शीघ्रातिशीघ्र मोटी कमाई व प्रसिद्धि के चक्कर में भेजे गए बच्चे --हारने पर रोते हुए , जीतने पर गर्व करतेहुए , व्यर्थ के प्रोग्राम बनाने व चलाने वालों की जी हुजूरी करते हुए, जबरदस्ती बिना सोचे समझे सेक्सी गीत गाते हुए, सेक्सी ड्रेस पहनते हुए , दिन -रात रगड़ कर श्रम करते हुए , अपना बचपन, खेलना -खाना, मस्त रहना खोते हुए बच्चे--- क्या बाल श्रम के अत्याचार से पीढित नहीं लगते |
क्या आपको नहीं लगता कि बच्चों के बचपन को नष्ट करके उन पर अत्याचार किया जा रहा है| बच्चों की कीमत पर सभी( सम्बद्ध संस्था, लोग, कलाकार आदि ) अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं व मोटा- माल कमा रहे हैं | अब तो विकलांग बच्चों के प्रदर्शन से भी पैसा कमाने के तरीके खोज लिए गए हैं ।

2 टिप्‍पणियां:

honesty project democracy ने कहा…

बच्चों के नाम पर ये मंत्री और इनका मंत्रालय अपना पेट भरता है / रही गैर सामाजिक संस्थाओं की बात तो आर्थिक और सामाजिक सहयोग के अभाव में बहुत कम संस्था ऐसी है ,जो इन मंत्रियों और सांसदों के इशारे पे नाचकर ,अपना पेट भरने को मजबूर न हो /

जिस देश में निगरानी ,जाँच,कार्यवाही और दोषियों पे न्यायसंगत सजा का प्रावधान की व्यवस्था, पूरी तरह सड़ चुकी हो ,वहाँ अब सिर्फ इमानदार लोगों को देश भर से चुनकर और एकजुट कर , हर सरकारी खर्चों और घोटालों की जाँच में लगाकर ही , इस देश और समाज को बचाया जा सकता है /

जीवन का उद्देश ने कहा…

आदर्नीय डा. आप का दोनो आरटिकल पढ़ा, आप ने सत्य कहा है. हर वस्तु का एक सिमा होता है। जो भी निर्धारित सिमा को पार करेगा , वह बहुत सारी कठिनायियों में ग्रस्त होगा, चाहे वह धार्मिक हो, समाजिक हो, व्यक्तित हो,
और हम सब देशवासियों को अपने अपने सिमा में रहकर, देश के लिए, समाज के लिए,और स्वयं अपने लिए, जीवन में कुछ काम कर के जाएं ताकि लोग हमें अच्छे नाम से याद रखों।