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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 26 अक्टूबर 2010

करवा चौथ --हमारे पर्व , अर्थशास्त्र और बाज़ार---

उत्सव प्रियः मानवाः --वास्तव में तो सभी भारतीय पर्व, उत्सव , आदि प्राचीन भारतीय समाज के -मनोरंजन केसाथ अर्थशास्त्र - के सैद्दांतिक -व्यवहारिक कृतित्व हैं जो बाज़ार व अर्थशास्त्र की आवश्यकताओं के अनुसार विस्तार भी पाते रहते हैं। । अब करवाचौथ को लीजिये । वास्तव में तो कर्म कांडी व्रतों का वैदिक साहित्य में वर्णन नहीं है , ब्रतों का अर्थ संकल्प होता है और करवा चौथ पर पति-पत्नी दोनों को ही संकल्प लेना होता है कि हम सदा तादाम्य सेरहेंगे, एक दूसरे के प्रति सम्पूर्ण भाव से समर्पित रहेंगे , पाणि ग्रहण के समय लिए हुए बचनों का पालन करेंगे।
------कालान्तर में अर्थशास्त्र बाज़ार की आवश्यकतानुसार( समय परवर्तन ,युग के अनुसार निष्ठा ज्ञान ,कर्तव्य मानवीय विश्वास की कमी से भी ) उसमें करवा, चन्द्रमा, पति की आयु वृद्धि, अर्ध्य , उपवास आदि के भाव जोड़ दिए गए। सामाजिक -पारिवारिक सौहार्द के पहलू हित -सरगी , सास के लिए बायना, बधू से मायके से बधू के घर उपहार आदि भेजना प्रारम्भ किया गया ; जो बाद में कठोर कुप्रथाओं में परिवर्तित होता गया । पहले मिट्टी का करवा अनिवार्य होता था ताकि कुम्भ्कारों का भी काम चलता रहे , और प्रगति होने पर शक्कर - चीनी के, धातु के , चांदी के करवे व अन्य ताम-झाम भी चलने लगे ताकि बाज़ार का अर्थशास्त्र चलता रहे ,हाँ, पीछे दिखावा, अधिक प्राप्ति आदि की मानसिकता भी बढ़ती गयी।
आजकलके वैज्ञानिक युग में भी - समाचार पत्रों, टीवी, आदि में करवा चौथ पर सोना -चांदी के व अन्य सभी के विज्ञापनों , छूट, कैसे करें , क्या पहने, कैसे पूजा करें , किसको किस किस बस्तु से पूजा रानी चाहिए , अपने उन को खुश रखिये आदि की भरमार रहती है क्यों -जबकि वैज्ञानिक युग के नव-युवा,पढेलिखे पुरुष/ महिलाएं इसे आवश्यक/अपरिहार्य नहीं मानते समझते अपितु व्यर्थ की खानापूरी भी मानते हैं |---यह अर्थशास्त्र बाज़ार के ही लिए तो -चाहे स्त्रियों पर कठोरता होती हो या सामाजिक -मानसिक प्रतारणा मानवीय शोषण |
-----हाँ इसके साथ साथ चाहे बाज़ार -भाव के कारण ही सही --पुरुषों के लिए भी विज्ञापन आरहे हैं ----
पत्नी करवा चौथ व्रत रख रही है आपकी लम्बी आयु के लिए अब आपकी बारी है --उपहार देने की ---और यह एक अच्छी बात है।

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