कवि गुनगुनाओ आज
ऐसा गीत कोई ॥
बहने लगे रवि रश्मि से भी
प्रीति की शीतल हवाएं |
प्रेम के संगीत स्वर को
लगें कंटक गुनगुनाने।
द्वेष द्वंद्वों के ह्रदय को,
रागिनी के स्वर सुहाएँ।
वैर और विद्वेष को
भाने लगे प्रिय मीत कोई॥
अहं में जो स्वयं को
जकडे हुए,
काष्ठवत औ लोष्ठ्वत
अकड़े खड़े।
पिघल कर,
नवनीत बन जाएँ सभी।
देश के दुश्मन औ आतंकी यथा-
देश द्रोही और द्रोही -
राष्ट्र और समाज के।
जोश में भर लगें -
वे भी गुनगुनाने,
राष्ट्र भक्ति के वे -
शुचि सुन्दर तराने।
आज अंतस में बसालें,
सुहृद सी ऋजु-रीति कोई ॥
वे अकर्मी औ कुकर्मी जन सभी,
लिप्त हैं जो ,
अनय और अनीति में।
अनाचारों का तमस -
चहुँ और फैला ,
छागाये घन क्षितिज पर अभिचार के।
धुंध फ़ैली स्वार्थ, कुंठा,भ्रम-
तथा अज्ञान की ,
ज्ञान का इक दीप -
जल जाए सभी में।
सब अनय के भाव ,बन जाएँ-
विनय की रीति कोई ॥
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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
रविवार, 7 नवंबर 2010
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2 टिप्पणियां:
आदरणीय गुप्त जी ! सादर अभिवादन .
आपकी शक्ल हमारे डिप्टी डायरेक्टर से मिलती है ..........खैर ... संयोग है.
गुरुवासरीय साहित्य गोष्ठी के लिए शुभ कामनाएं .......सभी साहित्यकारों को नमन .
आपकी समसामयिक टिप्पणियाँ विचारणीय हैं .
इन विषयों पर समाधानात्मक गंभीर लेख लिखने की कृपा करें .
देख रहा हूँ कि चिकित्सा जगत के जो भी लोग साहित्य साधना में लगे हैं उनका चिंतन विशिष्ट है ........साहित्य -शिल्प की दृष्टि से भी उनकी रचनाएँ उत्कृष्ट हैं . आपके कुछ गीत अच्छे लगे .....लिखते रहें .......स्ट्रेस रिलेक्स करने का सबसे शालीन तरीका है लिखते रहना ..........
धन्यवाद, कौशलेन्द्र
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