पद ---मूलतः गीत की ही कोटि होती है , यह मूलतः दो प्रकार से रचित होता है...
१.--जिसमें सभी पंक्तियों में सामान तुकांत होती है ..
२- जिसमें पंक्तियों के दो-दो पदों में सम-तुकांत होती है । निम्न उदाहरण देखिये---
१-----
सुअना मन के भरम परे।
जैसा अन्न हो जैसे संगति सोई धर्म धरे।
संतन डेरा बास करै जे राम नाम सुमिरे।
अन्न भखै गणिका के घर ते दुष्ट बचन उचरे।
परि भुजंग मुख बने गरल और मोती सीप परे।
परे केर के पात स्वाति जल बनि कपूर निखरे ।
दीपक गुन बनि करै उजेरा, चरखा सुत बुने।
सोई कपास संग अनल अनिल के घर को भष्म करे।
काम क्रोध मद लोभ मोह अति बैरी राह खड़े।
ये सारे मन के गुन सुअना तिरगुन भरम भरे।
चित चितवन चातुर्य विषय वश कर्म-कुकर्म करे।
माया मन की सहज वृत्ति मन सुगम राह पकरे।
काल उरग साए में सब जग भ्रम वश प्रभु बिसरे ।
एक धर्म रघुनाथ नाम धारे भाव सिन्धु तरे॥
२- वही पद इस तरह से भी ---
सुअना मन के भरम परे।
जैसा अन्न हो जैसे संगति सोई धर्म धरे।
संतन डेरा बास करे जे राम नाम गुन गाये।
अन्न भखे गणिका के घर ते अति-सुन्दर चिल्लाए।
परि भुजंग मुखबने गरल और मोती सीप समाई ।
परे केर के पात स्वाति जल सो कपूर बनि जाई।
दीपक गुन बनि करे उजेरो चरखा सूत बनाय।
सोई कपास संग अनल-अनिल के घर को देय जलाय।
काम क्रोध मद लोभ मोह अति बैरी राह छिपे हैं ।
ये सारे मन के गुन सुअना तिरगुन भरम भरे हैं ।
चित चितवन चातुर्य विषय वश हित अनहित ही भावै।
माया मन की सहज वृत्ति मन सुगम राह ही जावै ।
काल उरग साए में सब जग भ्रम के वश प्रभु विसरे।
एक धर्म घनश्याम नाम नर भव सागर उतरे॥
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- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
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2 टिप्पणियां:
जैसा अन्न हो जैसे संगति सोई धर्म धरे। bahut sundar laga.sir thank you.
mr shaw,
---धन्यवाद,..आजकल जो हमारी पीढी पथभ्रष्ट हो रही है उसका कारण--विदेशों से आता हुआ धन, (सहायता, विदेशी कम्पनियों द्वारा मोटी मोटी तनखा आदि के रूप में) जो जुआ, शरावघरों,नन्गे नाचघरों , वैश्यालयों द्वारा कमाया हुआ धन है......जैसा खायें अन्न, वैसा होगा मन...
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