देश के छः उद्योगपतियों ने सरकार को चेताया ...महंगाई त्राहिमाम...इसे कहते हैं ...मौसेरे भाइयों का नाटक ....बम्बैया सिनेमा में एक सीन बार बार आता है कि ..........एक चोर चोरी करके भागता हा..उसके पीछे लोग पकड़ने दौड़ते हैं...चोर भी उन्हीं में शामिल होकर .चोर चोर चिल्लाता हुआ एक तरफ निकलजाता है और लोग ढूँढते रह जाते हैं...... मेरा एक अगीत भी याद आता है....
"चोरों ने संगठन बनाए,
मिलकर चोर-चोर चिल्लाए
चालें चल हरिचंद हटाये,
जोड़ तोड़ ,सत्ता में आये
जनता सिर धुन कर पछताए |"
बड़े बड़े उद्योगपति जो स्वयं ही महंगाई, भ्रष्टाचार, अनाचार, कुसंस्कार के मूल कारण हैं वही आज ६०-६२ साल तक जनता-देश को खूब लूटकर आज महंगाई के लिए सरकार को ख़त लिख रहे हैं.......
---१- ये उद्योगपति ही नेताओं व सरकार, मंत्रियों के साथ मिलकर अरबों का घुटाला करते हैं ,उन्हें (सरकारी अफसर /बाबू जिनका अक्सर ज़िक्र होता है वे तो बहुत पीछे हैं )बड़ी बड़ी रिश्वत देकर भ्रष्टाचार में लिप्त होकर महंगाई व नकली महंगाई की उत्पत्ति के कारण बनाते हैं |
---२--ये उद्योगपति ही व्यापार/बाज़ार स्पर्धा के कारण नित नए नए उपभोग के संसाधन ..कार,मोबाइल. टीवी आदि के नए नए माडल पेश करके, बनाकर, विदेशों से नक़ल करके उपभोगिता बाद को बढ़ावा देकर ...महात्मा गांधी के सादा जीवन के विचारों की होली जलाकर ...भ्रष्टाचार व महंगाई का कारण पैदा करते हैं....( गांधी की भांति विदेशी सामान की होली फिर से जलाना शायद इसका उपाय हो सकता है)
---३--ये लोग ही साठ करोड़ के कर की चोरी करके दस करोड़ टेक्स जमा करके स्वयं को अधिक कर प्रदाता बताते हैं और इनकम टेक्स विभाग को लांछन भी ...
---४--ये लोग ही खेळ व खिलाड़ियों पर पैसा लगाकर , खिलाड़ियों की कीमत पर अरबों कमाते व घुटाले में लिप्त होकर घर घर में भ्रष्टाचार तथा महंगाई का कारण बनाते हैं.....
---५-- ये लोग ही अमेरिका से क्लर्की के काम को ( मूलतः इन्फो-टेक अमेरिका का बाबूगीरी वाला काम ही है ) ठेके पर लेकर देश के युवाओं को लम्बी लम्बी तनखाओं के रूप में उनकी परचेजिंग पावर / खर्चे की पावर बढ़ाकर --उसी विदेशी माल पर उस तनखा को खर्च कराकर देश में , अति-सुविधाभोगी संस्कृति द्वारा महंगाई , भ्रष्टाचार एवं रात रात भर जाग कर कार्य करने की शैली द्वारा अनाचार की संस्कृति को प्रश्रय देते हैं....
---६-- ये उद्योगपति ही अपनी पत्नियों. प्रेमिकाओं को अरबों -खरबों के महलनुमा घर तोहफे देकर --देश के युवाओं को येन-केन -प्रकारेण शीघ्रातिशीघ्र ..अम्बानी, नारायनमूर्ती, माल्या , होने का सपना दिखाते हैं , जिसकी परिणति अंततः अति-सुविधाभोगी संस्कृति का दुश्चक्र द्वारा भ्रष्टाचार, महंगाई, अनाचार, दुराचार में ही होती है |
"चोरों ने संगठन बनाए,
मिलकर चोर-चोर चिल्लाए
चालें चल हरिचंद हटाये,
जोड़ तोड़ ,सत्ता में आये
जनता सिर धुन कर पछताए |"
बड़े बड़े उद्योगपति जो स्वयं ही महंगाई, भ्रष्टाचार, अनाचार, कुसंस्कार के मूल कारण हैं वही आज ६०-६२ साल तक जनता-देश को खूब लूटकर आज महंगाई के लिए सरकार को ख़त लिख रहे हैं.......
---१- ये उद्योगपति ही नेताओं व सरकार, मंत्रियों के साथ मिलकर अरबों का घुटाला करते हैं ,उन्हें (सरकारी अफसर /बाबू जिनका अक्सर ज़िक्र होता है वे तो बहुत पीछे हैं )बड़ी बड़ी रिश्वत देकर भ्रष्टाचार में लिप्त होकर महंगाई व नकली महंगाई की उत्पत्ति के कारण बनाते हैं |
---२--ये उद्योगपति ही व्यापार/बाज़ार स्पर्धा के कारण नित नए नए उपभोग के संसाधन ..कार,मोबाइल. टीवी आदि के नए नए माडल पेश करके, बनाकर, विदेशों से नक़ल करके उपभोगिता बाद को बढ़ावा देकर ...महात्मा गांधी के सादा जीवन के विचारों की होली जलाकर ...भ्रष्टाचार व महंगाई का कारण पैदा करते हैं....( गांधी की भांति विदेशी सामान की होली फिर से जलाना शायद इसका उपाय हो सकता है)
---३--ये लोग ही साठ करोड़ के कर की चोरी करके दस करोड़ टेक्स जमा करके स्वयं को अधिक कर प्रदाता बताते हैं और इनकम टेक्स विभाग को लांछन भी ...
---४--ये लोग ही खेळ व खिलाड़ियों पर पैसा लगाकर , खिलाड़ियों की कीमत पर अरबों कमाते व घुटाले में लिप्त होकर घर घर में भ्रष्टाचार तथा महंगाई का कारण बनाते हैं.....
---५-- ये लोग ही अमेरिका से क्लर्की के काम को ( मूलतः इन्फो-टेक अमेरिका का बाबूगीरी वाला काम ही है ) ठेके पर लेकर देश के युवाओं को लम्बी लम्बी तनखाओं के रूप में उनकी परचेजिंग पावर / खर्चे की पावर बढ़ाकर --उसी विदेशी माल पर उस तनखा को खर्च कराकर देश में , अति-सुविधाभोगी संस्कृति द्वारा महंगाई , भ्रष्टाचार एवं रात रात भर जाग कर कार्य करने की शैली द्वारा अनाचार की संस्कृति को प्रश्रय देते हैं....
---६-- ये उद्योगपति ही अपनी पत्नियों. प्रेमिकाओं को अरबों -खरबों के महलनुमा घर तोहफे देकर --देश के युवाओं को येन-केन -प्रकारेण शीघ्रातिशीघ्र ..अम्बानी, नारायनमूर्ती, माल्या , होने का सपना दिखाते हैं , जिसकी परिणति अंततः अति-सुविधाभोगी संस्कृति का दुश्चक्र द्वारा भ्रष्टाचार, महंगाई, अनाचार, दुराचार में ही होती है |
2 टिप्पणियां:
ये पब्लिक है, सब जानती है।
हां, पर चोर इतने शक्तिशाली होगये हैं( या शक्तिशाली चोर हो गये हैं) कि पब्लिक कुछ कर नहीं पा रही है....
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