....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
समाचार गुणात्मक होने चाहिये न कि व्यर्थ के जिनका हम से, हमारे समाज से , देश से , सन्स्क्रिति से कोई मतलब न हो और समाज सन्स्क्रिति के लिये विघटनात्मक हों.... अब देखिये कुछ समाचारों की बानगी....
१-युवा चाहते है कम किराये में बस सेवा.... कौन नहीं चाहेगा ? क्या यह कोई समाचार है? फ़िर क्यों युवाओं से निरर्थक सवाल पूछे जायं, जिन्हें अभी पढने -लिखने में समय लगाना चाहिये न कि इन सवालों में जिसका अभी उन्हें कोई ग्यान ही नहीं, बडों का, शासन का यह कर्तव्य है । क्या हम युवाओं के मन में यह सोच डालना चाह्ते हैं कि आपके बडे नाकारा हैं अब आप ही बताइये हल...
२-पेरेन्ट बनें सपोर्ट सिस्टम... क्या सदा से ही माता-पिता बच्चों के सपोर्ट-सिस्टम नहीं है?...भारत में तो हैं..किसी कानून के बिना भी... अपनी शक्ति भर, यथायोग्य सभी माता-पिता बच्चों के भले ,उनकी तरक्की के लिये प्रयास करते हैं....यह विदेशी विचार है जहां माता-पिता ,कानून के डर से बच्चों का पालन-पोषण करते हैं।......इस प्रकार के समाचार बच्चों में और असीमित अपेक्षायें व माता-पिता के विरुद्ध अवग्या भाव उत्पन्न होते हैं ...जो भविष्य के अनाचरण के कारण हैं...
३- विशेष्ग्यता से सम्बन्धित समाचारों का सिर्फ़ वह भाग ही प्र्दर्शित हो जिससे जनता को सीधा मतलब हो----देखिये .... अ-लखनऊ के पानी में नाइट्रेट की मात्रा चिन्ताजानक....क्या इस जानकारी का सामान्य जनता से कोई मतलब है...यह एक विशेषग्य ग्यान है और उन्हीं को जानना व उचित व्यवस्था करनी है....व्यर्थ के समाचार द्वारा सामान्य जन में घबराहट फ़ैलाने से क्या लाभ...क्या वे पानी पीना बन्द करदें...फ़िर क्या करें....क्या करपायेंगे..?ब सुपर बग से डरिये मत..यदि कोई डर है ही नहीं तो उसे जनता को अखबार में बताने की ही क्या आवश्यकता है---भ्रम, भय व अनास्था फ़ैलाने का जरिया हैं येऔर चिकित्सा-जगत में भ्रष्ट आचरण प्रारम्भ के कारक... स-चिकिन पोक्स से डरिये नहीं हटाइये---सामान्य जनता क्या चिकिन पोक्स को हटा सकती है..यह विशेष्ग्यों का कार्य है तो जानकारे का जनता क्या करे---हां भ्रम व भय अवश्य फ़ैल सकता है ....
---(ब).. मिस इन्डिया २०१५....वाह क्या नया नज़रिया है...सब लडकियों को बस मिस इन्डिआ बनने के प्रयत्नों में लग जाना चाहिये, न कि महा देवी वर्मा, इन्दिरा गान्धी, सीता, मदालसा, किरन बेदी अदि.....
४-इन पर भी नज़र डालिये ---
५- कुछ अन्य व्यर्थ के समाचार... जो व्यर्थ के पेज बढाकर अखबार का मूल्य व जनता का पैसा व समय बर्बाद करते हैं, जिसकी भरपाई के लिये वही...भ्रष्टाचार का छोटा सा रूप.....
---सऊदी अरब में बनेगी सबसे ऊंची इमारत---तो हम क्या करें, जब बनेगी देखा जायगा...
----आज का भविष्य---क्या अन्धविश्वास फ़ैलाना लक्ष्य है...
----सुडोकू..व्यर्थ के लतीफ़े अदि......क्या कोई औचित्य है ...?
---चेर्नोबल सन्कट में जापान...सामान्य जन क्या करे ...जब सरकारी स्तर पर कुछ होगा देखा जायगा...
---उपवास से कमजोर होता है शरीर----कौन कब से नहीं जानता.....क्या आवश्यकता है इस समाचार की..
--------और क्या कहाजाय आप तो सभी प्रतिदिन ही झेलते हैं...या सिर्फ़ हेडिन्ग पढकर कुड कुडाते हुए अपने काम में लग जाते हैं.....
समाचार गुणात्मक होने चाहिये न कि व्यर्थ के जिनका हम से, हमारे समाज से , देश से , सन्स्क्रिति से कोई मतलब न हो और समाज सन्स्क्रिति के लिये विघटनात्मक हों.... अब देखिये कुछ समाचारों की बानगी....
१-युवा चाहते है कम किराये में बस सेवा.... कौन नहीं चाहेगा ? क्या यह कोई समाचार है? फ़िर क्यों युवाओं से निरर्थक सवाल पूछे जायं, जिन्हें अभी पढने -लिखने में समय लगाना चाहिये न कि इन सवालों में जिसका अभी उन्हें कोई ग्यान ही नहीं, बडों का, शासन का यह कर्तव्य है । क्या हम युवाओं के मन में यह सोच डालना चाह्ते हैं कि आपके बडे नाकारा हैं अब आप ही बताइये हल...
२-पेरेन्ट बनें सपोर्ट सिस्टम... क्या सदा से ही माता-पिता बच्चों के सपोर्ट-सिस्टम नहीं है?...भारत में तो हैं..किसी कानून के बिना भी... अपनी शक्ति भर, यथायोग्य सभी माता-पिता बच्चों के भले ,उनकी तरक्की के लिये प्रयास करते हैं....यह विदेशी विचार है जहां माता-पिता ,कानून के डर से बच्चों का पालन-पोषण करते हैं।......इस प्रकार के समाचार बच्चों में और असीमित अपेक्षायें व माता-पिता के विरुद्ध अवग्या भाव उत्पन्न होते हैं ...जो भविष्य के अनाचरण के कारण हैं...
३- विशेष्ग्यता से सम्बन्धित समाचारों का सिर्फ़ वह भाग ही प्र्दर्शित हो जिससे जनता को सीधा मतलब हो----देखिये .... अ-लखनऊ के पानी में नाइट्रेट की मात्रा चिन्ताजानक....क्या इस जानकारी का सामान्य जनता से कोई मतलब है...यह एक विशेषग्य ग्यान है और उन्हीं को जानना व उचित व्यवस्था करनी है....व्यर्थ के समाचार द्वारा सामान्य जन में घबराहट फ़ैलाने से क्या लाभ...क्या वे पानी पीना बन्द करदें...फ़िर क्या करें....क्या करपायेंगे..?ब सुपर बग से डरिये मत..यदि कोई डर है ही नहीं तो उसे जनता को अखबार में बताने की ही क्या आवश्यकता है---भ्रम, भय व अनास्था फ़ैलाने का जरिया हैं येऔर चिकित्सा-जगत में भ्रष्ट आचरण प्रारम्भ के कारक... स-चिकिन पोक्स से डरिये नहीं हटाइये---सामान्य जनता क्या चिकिन पोक्स को हटा सकती है..यह विशेष्ग्यों का कार्य है तो जानकारे का जनता क्या करे---हां भ्रम व भय अवश्य फ़ैल सकता है ....
४-नया नज़रिया ----
--(अ) शैतान बच्चा या अगला सचिन.... वाह क्या नज़रिया है सभी बच्चे पढाई-लिखाई छोडकर खेलने में लग जायें और बच्चों में...अकर्म, अनास्था, टूटने दो कोई बात नहीं, सचिन बनना है...अर्थात गलतियों का नियमितीकरण की भावना उत्पन्न करता है।---(ब).. मिस इन्डिया २०१५....वाह क्या नया नज़रिया है...सब लडकियों को बस मिस इन्डिआ बनने के प्रयत्नों में लग जाना चाहिये, न कि महा देवी वर्मा, इन्दिरा गान्धी, सीता, मदालसा, किरन बेदी अदि.....
४-इन पर भी नज़र डालिये ---
-----मस्त केटरीना कैफ़.....
-----पूनम अवस्थी कपडे उतारने को तैयार....
-----नायर अब भी दिल के करीब --हर्ले.....
-----छ: करोड की डायमन्ड बस्टर...चोली...
-----बर्लुस्कोनी( इटली के पी एम ) को सेक्स के बदले पैसा देने की क्या जरूरत-- रूसी महिला मित्र......अखिर इन व्यर्थ के समाचारों का क्या महत्व है?...उत्तेजना, भ्रम, असान्स्क्रितिकता फ़ैलाना...५- कुछ अन्य व्यर्थ के समाचार... जो व्यर्थ के पेज बढाकर अखबार का मूल्य व जनता का पैसा व समय बर्बाद करते हैं, जिसकी भरपाई के लिये वही...भ्रष्टाचार का छोटा सा रूप.....
---सऊदी अरब में बनेगी सबसे ऊंची इमारत---तो हम क्या करें, जब बनेगी देखा जायगा...
----आज का भविष्य---क्या अन्धविश्वास फ़ैलाना लक्ष्य है...
----सुडोकू..व्यर्थ के लतीफ़े अदि......क्या कोई औचित्य है ...?
---चेर्नोबल सन्कट में जापान...सामान्य जन क्या करे ...जब सरकारी स्तर पर कुछ होगा देखा जायगा...
---उपवास से कमजोर होता है शरीर----कौन कब से नहीं जानता.....क्या आवश्यकता है इस समाचार की..
--------और क्या कहाजाय आप तो सभी प्रतिदिन ही झेलते हैं...या सिर्फ़ हेडिन्ग पढकर कुड कुडाते हुए अपने काम में लग जाते हैं.....
3 टिप्पणियां:
विचारणीय आलेख. आभार. वास्तव में पत्रकारिता सूचना ,शिक्षा ,ज्ञान और मनोरंजन का सशक्त माध्यम है .राष्ट्र-हित ,जन-हित और जन- जागरण इसमें सर्वोपरि होना चाहिए ,लेकिन कुछ एक अपवादों को छोड़ कर आज अधिकाँश प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में इसका भारी अभाव देखा जा रहा है. पेड-न्यूज की बीमारी बढ़ती जा रही है. बिचौलिया संस्कृति भारतीय पत्रकारिता को दूषित कर रही है. नीरा और प्रभु का मामला इसका एक बड़ा उदाहरण है. लगता है -जन-लोकपाल के प्रस्तावित क़ानून के दायरे में विधायिका ,न्यायपालिका और कार्यपालिका के साथ मीडिया को भी लाना होगा.
इन समाचारों से तो भला होने वाला नहीं।
धन्यवाद पान्डे जी---भले के लिये कहां धन्धे के लिये लिखे जाते हैं ये समाचार..रेटिन्ग बढाने के लिये..
धन्यवाद,स्वराज्य---उत्तम विचार है...
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